Monday, August 17, 2020

449..बीमार था आदतन भरे पेट रोटियों पर झपट रहा था

अगस्त का महीना
चाहे सामान्य हो
चाहे कोरोना काल का हो
हरदम अस्त-व्यस्त ही रहता है
अब मैं एक हूँ...जो
एक कार की पिछली सीट पर बैठ 
प्रस्तुति बना रहा हूँ...सामने
मेरा मित्र ड्राइविंग कर रहा है
और सामान्य दिनों में हमेशा की तरह
बहनों के साथ गप-शप नहीं ..उनके
पास तीज का सामान पहुँचाने जा रहा हूँ...अस्तु

आज का प्रस्तुति देखें..

दरअसल, हर अंतिम बिंदु के बाद ही
होती इक नयी शुरुआत, फूलों
को हर हाल में है खिलना
उम्र से लम्बी नहीं
ये काली रात।
सांप और
सीढ़ियों का खेल छुपा है माथे की - -
इन लकीरों में,


देखे कई उतार चढ़ाव
इस छोटी सी जिन्दगी में
बड़ी विषमता देखी
बचपन और जवानी में  |
युवावस्था आते ही
भोला बचपन  तिरोहित हुआ
दुनियादारी में ऐसा उलझा
परिवर्तन आया व्यक्तित्व में |


दादी-नानी के यहाँ छुट्टियों में  
साथ पूरे कुनबे के बच्चों के 
धमाल करना 
बस कहानियों में ही रह जायेगा
स्कूल, बड़े भाई-बहनों से सुने किस्सों में जीवित 
उनकी दुनिया हो जाएगी क्या 
एक चारदीवारी में सीमित !



प्रकृति ने तीन मौसम बनाये है 
एक ग्रीष्म ,एक सर्दी और एक बरसात 
पर इंसान ने बनाई है एक ऐसी चीज , 
जो तीनो मौसम का अहसास , 
कराती हो एक साथ 
गरम हो तो लगे सुहानी 
सर्दी में बहुत मन को लुभानी 
जिसे जब भी देखो ,मुंह में आ जाए पानी 
जिसको गरम गरम पाने के लिए , 
लोग लाइन लगाए रहते है 
ऐसे हर ऋतु में सर्वप्रिय और 
सर्वश्रेष्ट व्यंजन को लोग समोसा कहते है



रोशनी की बातों को 
रोशनी में
बहुत जोर दे दे कर सामने से 
जनता के रख रहा था 

एक खोखला चिराग रोशन चिराग का पता
अपनी छाती पर चिपकाये 
पता नहीं कब से कितनों को ठग रहा था 

अंधा ‘उलूक’ 
अंधेरे में बैठा दोनों आँख मूँदे 
ना जाने कब से रोशनी ही रोशनी 
बस बक रहा था । 
...
अब बस एक स्टापेज आया है
एक घण्टे रुक कर फिर आगे बढ़ना है
सादर..

5 comments:

  1. आभार आदरणीय मित्र - - नमन सह।

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  2. आभार..
    व्यस्तता में भी जानदार प्रस्तुति
    सादर...

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  3. रोचक भूमिका, सुंदर प्रस्तुति, आभार !

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  4. सुन्दर प्रस्तुति |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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