Tuesday, August 13, 2019

82.... हसरतों की इमलियाँ....

स्नेहाभिवादन !
आज के "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" संकलन में
आप सबका हार्दिक स्वागत ।
इस सप्ताह एक ही दिन स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन
का पर्व है अतः अग्रिम हार्दिक शुभेच्छाएँ ।
आज के चयनित सूत्र.. आप सब के अवलोकनार्थ--


हसरतों की इमलियाँ गिरती नहीं हैं सोच से
हौसला फ़िर पत्थरों का इनपे बरसाने लगा

रोक सकता ही नहीं हों ख्वाइशें जिसकी बुलंद
ख़ुद चढ़ा दरिया ही उसको पार पहुँचने लगा

★★★

**पूर्ण से शून्य की यात्रा
शून्य से फिर पूर्णता की
यात्रा ,शून्य का शून्य हो जाना ही
पूर्णता की यात्रा है...

कोयले की खान से
हीरे चुन कर लाने हैं
ये जिन्दगी बारूदी
सुरंग है, संभलकर चलना ज़रा ....

★★★


''मम्मी, मेरे स्कूल में राखी बनाओं स्पर्धा हैं। उसके लिए मुझे राखी की कोई अच्छी सी डिजाइन बताकर उसे बनाना सिखाओं न...'' सातवी कक्षा में पढ़ने वाली अनिता ने कहा। मैं कुछ बोलती उसके पहले ही सासू जी बोल पड़ी- ''तू क्या करेगी राखी बनाना सीख कर? तेरा तो कोई भाई ही नहीं हैं...तू किसको राखी बांधेंगी? इसलिए टीचर से कहना कि मुझे नहीं लेना स्पर्धा में भाग...ऐसी राखी बनाने से क्या फ़ायदा, जो किसी को बांध ही न सको!''
''दादी माँ, टीचर ने कहा हैं कि राखी का महत्व सिर्फ़ इतना ही नहीं हैं कि एक बहन अपने भाई को राखी बांधे। सदियों से चले आ रहे रिवाज के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती थी, जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन कहा जाता था ।

★★★

आज बहुत दिनों बाद 'कल्याण' के 'जीवनचर्या अंक' में वेदों के सुंदर मन्त्र पढ़े, अद्भुत प्रार्थनाएं की गयी हैं उनमें. इन्हें स्कूलों में पढ़ाना चाहिए. लोपामुद्रा और अगस्त्य मुनि का जीवनचरित पढ़ा. सूर्य उपासना के बारे में एक अध्याय है, बाद में पढ़ेगी. जून का बुखार उतर गया है पर स्वास्थ्य अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, पर उनमें गजब की जीवट शक्ति है, दफ्तर गये हैं. कल दोपहर पदोन्नति के लिए उनका साक्षात्कार है. सौ में दस अंक ही हैं इसके. पचास एपीआर, बीस इडीसी और अन्य बीस भी किसी अन्य परीक्षा के जो पहले ही हो चुकी है. परिणाम अप्रैल में आएगा. वर्षा दोपहर को रुक गयी थी पर शाम होते-होते बादल फिर से जुट गये और वर्षा आरंभ हो गयी तेज हवा के साथ. शाम को ही अचानक सैकड़ों पतंगे बरामदे के बल्ब पर मंडराने लगे, कुछ ही घंटों में उनकी जीवनलीला समाप्त हो गयी और सब जमीन पर गिर गये. पर्वत भी मानवों को देखकर सोचते होंगे, कितना क्षणिक है इनका जीवन.

★★★

आज़ाद देश के,
जिम्मेदार बुद्धिजीवी
बहुत शर्मिंदा हैं,
देश की बदहाल हवा में,
दिन-ब-दिन विषाक्त होता
पानी पीकर भी 
अफ़सोस ज़िंदा हैं।
आज़ादी की वर्षगांठ पर
विश्लेषण का भारी पिटारा लादे
गली-चौराहों,
नुक्कड़ की पान-दुकानों पर,

★★★

शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"

6 comments:

  1. वाह सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी
    सादर

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  3. अतिसुन्दर ...हर पहलू को स्पर्श करती रचनाएँ ...

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  4. व्वाहहहह...
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार..
    सादर..

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  5. सुंदर प्रस्तुति मीना दी..सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
    मेरी रचना शामिल करने के लिए सादर शुक्रिया दी बहुत आभार।

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तूति मीना दी..मेरी रचना को मुखरित मौन में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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