Tuesday, August 20, 2019

89...दो रास्ते एक साथ नहीं होते हैं

स्नेहाभिवादन !
स्वागत आप सब का…
आज की सांध्य दैनिक प्रस्तुति में ।
आज के चयनित सूत्र मेरी ओर से…

सांची के संग्रहालय में सन 1818 के बाद सांची से प्राप्त बहुमूल्य संग्रह है।
यह मौर्यकाल और उसके बाद 1000 सालों तक बने बौद्ध दर्शन से जुड़े दौर में आपको ले जाता है।
शुंग काल, सातवाहन काल, कुषाण काल, गुप्त काल, उत्तर गुप्त काल की कलाकृतियों से रूबरू कराता है।
यहां सातवाहन काल की यक्षी की प्रतिमा तो अदभुत है। यहां तीसरी सदी ई.पू. का
अशोक स्तंभ भी आप देख सकते हैं जो बलुआ पत्थर से बना है।

आ.विद्युत प्रकाश मौर्य जी
★★★

वो एक चोट में ही कैसे टूट फूट गया
शज़र वो शख़्त ही कुछ बेहिसाब था शायद।

तुम्हारे पास है जो बस उसी में खुश रहना
मसाफ़-ए-जीस्त का ये ही जवाब है शायद।

आ.डॉ. राजीव जोशी जी
★★★

मैनें आँखों में प्यार भरकर कहा
देखो कितना प्यारा चाँद है
साँवली बोली..
ऊपर देखने की फुरसत किसे है...
मेरे धान के हर क्यारे में
एक चाँद चमक रहा है..
मैं हतप्रभ ठगी सी
खड़ी रह गई

आ.मालिनी गौतम जी
★★★

प्नलयंकारी न बन
हे जीवन दायिनी,
विनाशिनी न बन
हे सिरजनहारिनी,
कुछ तो दया दिखा
हे जगत पालिनी,
गांव के गांव
तेरे तांडव से
नेस्तनाबूद हो रहे,
मासूम जीवन
जल समाधिस्थ हो रहे,

आ. कुसुम कोठारी जी
★★★

लिखें 
और 
पढ़ें भी 

पढ़ें और 
लिखें भी 

दो रास्ते 

एक 
साथ 
नहीं होते हैं 

सीखने वाले 
सीख लेते हैं 
लिखते पढ़ते 

कुछ ना कुछ 
लिखना पढ़ना 
‘उलूक’ 

इतना 
भी 
हताश 
नहीं होते हैं

आ. सुशील जोशी जी
★★★

शुभ संध्या
🙏
'मीना भारद्वाज'


8 comments:

  1. मीना दी बहुत शानदार सूत्र पिरोया है आपने...बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति...
    सादर...

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  3. आभार मीना जी जगह देने के लिये आज की लाजवाब प्रस्तुति के साथ।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति दी
    सादर

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  5. बहुत बहुत आभार मीना जी, इन शानदार सूत्रों के साथ मुझे शामिल करने के लिए।
    सांध्य दैनिक मन मोहक सूत्रों के साथ ।

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