Thursday, August 8, 2019

77...नीले समन्दर में सूरज का डेरा....

स्नेहाभिवादन !
आज की सांध्यकालीन प्रस्तुति में
आप का स्वागत है --

झर पड़ता जीवन-डाली से
मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!
केवल, केवल जग-कानन में
लाने फिर से मधु का प्रभात!

"सुमित्रानंदन पंत"
★★★

बचपन के दिन नहीं दिखते,अब बेफिक्र,सुनहरे ,
सबको ही शक से देखते हैं नवनिहालों के चेहरे ,
बोल फूटते ही,ये सीखते हैं,फरेबों के ककहरे ,
ये यूँ इक दूजे को,हराने की लगी कतार क्यों है ?

सौम्य, सुशील, सुसंस्कृत, संतुलित और भारतीय संस्कृति की साक्षात प्रतिमूर्ति. सुषमा स्वराज की गणना देश के सार्वकालिक प्रखरतम वक्ताओं और सबसे सुलझे राजनेताओं में और श्रेष्ठतम पार्लियामेंटेरियन के रूप में होगी. जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को लोग याद करते हैं, वैसे ही उनके भाषण लोगों को रटे पड़े हैं. संसद में जब वे बोलतीं, तब उनके विरोधी भी ध्यान देकर उन्हें सुनते थे. सन 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का उनका भाषण हमेशा याद रखा जाएगा ।

एक सूनी-पुरानी
इमारत की
किसी बदरंग दीवार पर
अनायास उग आये
पुष्पविहीन फर्न की तरह
पनप जाते हैं अनायास
कुछ रिश्ते ..जो ...
बेशक़ बागों में पनाह
पायें ना पायें पर ...
मन की आँखों में
प्रेम की हरियाली
सजाते हैं अनवरत

कोई वस्तु 
या फिर 
प्रक्रिया हो 
कोई भी....
इतनी बलशाली नहीं
कि हमारे मन पर
कब्ज़ा कर सके
वो भी बगैर हमारी 
मर्जी....और हम
मन से..करते हैं 
कोशिश...और
तलाश लेतें हैं
खुशियाँ…


नीले समन्दर में सूरज का डेरा
फिर हो गया है हसी इक सवेरा

बुझ गया चंदा बुझ गये दीपक
रात तक रुक गया ख्वाबों का फेरा

मोड़कर सिरहाने लिहाफो के नीचे
छुप गया साँझ तक तन्हाई का लुटेरा

★★★★★★★
 शुभ संध्या
🙏 
"मीना भारद्वाज"









9 comments:

  1. भूमिका की शानदार पंक्तियाँ और सुंदर पठनीय रचनाओं से सजाई है दी आपने आज की प्रस्तुति।
    मेरी पुरानी रचना को इस संकलन में देखना बहुत सुखद लग रहा है। बहुत आभार आपका बहुत शुक्रिया दी।

    ReplyDelete
  2. व्वाहहहह..
    बेहतरीन प्रस्तुति...
    सादर..

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
  4. मेरी चंद बेजान-सी पंक्तियों को इस संकलन में स्थान देकर मेरी रचना को प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक आभार महोदया !
    ब्लॉग की दुनिया में कुछ माह पहले रखे मेरे कदम इन आलम्बनों से नई छलांग के लिए उत्साहित हो रहे हैं .....

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सखी
    सादर

    ReplyDelete
  6. वाह बेहतरीन प्रस्तुति

    ReplyDelete
  7. आभार आपका मीना भारद्वाज जी "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मेरी कविता " ये क्यों है ? " को स्थान देने के लिए। 🙏 😊

    ReplyDelete