Sunday, August 11, 2019

80...मौसम के समझो नख़रे-तेवर...



सादर अभिवादन। 

है बरसात का सुहाना मौसम 
फैलते हैं डेंगू, मलेरिया ज्वर,
ऋतु परिवर्तन नियति-चक्र है
मौसम के समझो नख़रे-तेवर। 

आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं से रूबरू कराएँ-   


 

प्यार इक तरफा नहीं होता
कहीं कहीं किसी ने
बरगलाया है तुझे मेरे खिलाफ
पर दूसरों की दखलंदाजी
मुझे पसंद नहीं आती
मेरे पास बैठ कर
उलझन सुलझाई होती




जयचन्दों के पुरखों की

यह भारत अब जागीर नहीं,
सरहद पर ब्रह्मोस खड़ा है
लकड़ी की शमशीर नहीं,
आतंकी साम्रज्य मिटेंगे
अभिनन्दन के वारों से



 


उम्मीदों के पंख लगाकर

आशा की डोली में बैठकर
उड़ने को बेकरार रहता
दिल ही तो मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख किसी का
चुपके-चुपके रो देता


  

मेरी फ़ोटो

घडी दो घडी तो हर कोई हर किसी का कर लेता है 

तू सारी उम्र किसी का इंतजार कर तो जानू
निगाहों के इशारे तो अदब वालों की शिनाख़्त नही 

तू महफिल में ज़ुबान से इकरार कर तो जानू
   

मेरी फ़ोटो

जब ऊपर की पीढ़ी विदा होने लगी तो कुछ ही घरों पर छतें रह गयी बाकि ढह गयी और कुछ सालों बाद वो खंडहर बन बिकने लगे। जो संस्कार गाँवों से लाये थे वे चुकने लगे थे।  शिक्षा की चमक दमक ने संस्कारों पर कुठाराघात किया और उनकी आने वाली पीढ़ी डैड और ममी वाली रह गयी। सारे  रिश्ते अंकल और आंटी में सिमट गए।  मामा , मामी , बुआ , चाचा चाची दादी बाबा सब ख़त्म हो गए।  नयी पीढ़ी के हाथ क्या आया

आपसे प्रतिक्रियाओं की उम्मीद के साथ अब विदा लेता हूँ। 
मिलेंगे फिर अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

7 comments:

  1. शुभ संध्या भाई रवीन्द्र जी
    बेमिसाल रचनाए पढ़वाई...
    आभार..
    सादर...

    ReplyDelete
  2. शुभ सांध्य आदरणीय रवीन्द्र जी
    बहुत ही सुन्दर संकलन
    सादर

    ReplyDelete
  3. बेहद सुन्दर विविधरंगी सूत्रोंं संकलन रविन्द्र जी !

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर संकलन मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय

    ReplyDelete