Saturday, August 17, 2019

86...तुम सूरज की जगह चाँद देखते हो

सादर अभिवादन..
73 वीं आजादी के बाद का दूसरा दिन
शान्ति तो है..काश बनी रहे
ज्यादा कुछ न लिखते हुए...
चलें आज की मिली-जुली रचनाएँ देखें...

तुम सूरज की जगह चाँद देखते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम गाय को नहीं, बच्चे को बचाते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम राम नहीं, ईश्वर कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम जय भारत नहीं, जय हिंद कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

स्वतंत्रता दिवस की परेड में खड़े
इस महादेश के बच्चे
आपस में बातें कर रहें हैं
कि जहां
मजदूर,किसान,खेत और रोटी की 
बात होनी चाहिए
वहां हथियारों की बात हो रही है


होता रहा वार्तालाप मूक
अजनबी थे दोनो ही,
मुक्ति की समाधि में उतरते हुए
दोनो की मुट्ठियाँ गुंथी थी..


सारे मनोरम रंगों को 
यूँ ही उलीच दिया है या 
अपनी विलक्षण तूलिका से 
तूने आसमान के कैनवस पर  
यह अनुपम नयनाभिराम
चित्र बड़ी दक्षता के साथ
धीरे-धीरे उकेरा है !


अवनि से अंबर तक दे सुनाई
मौसम का  रुनझुन  संगीत ,
दिवाकर के उदित होने का
दसों दिशाएं गाये मधुर गीत।
आज बस
शायद कल फिर मिलें..
सादर


6 comments:

  1. लाजवाब प्रस्तुति जब तक लगेगा आजाद हैं रोज मिलेंगे गुलामों को कहाँ किसी से मिलने दिया जाता है :‌)

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  2. विविधता लिए सुन्दर सूत्रों का संकलन ।


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  3. सुन्दर सार्थक मनमोहक रचनाओं के साथ मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  4. https://mannkepaankhi.blogspot.com/2019/08/86.html
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