Sunday, August 18, 2019

87..नशे से निकले तो सही कोई, तब जाकर तो कोई कहीं, एक सच लिखेगा

सादर अभिवादन..
कल भी हम थे
आज भी हम ही हैं
चिन्ताओँ को तलाक दें
कोई सजा नहीं मिलेगी
शर्तिया कह रहे हैं हम

आज की सद्य प्रकाशित रचनाओं पर एक नज़र..

तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन,
हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,

यूँ न उभरी होंगी लकीरें, इस जमी पर! 
बंध गई होगी, पांव में जंजीर कोई, 
चुभ गए होंगे, शब्द बन कर तीर कोई, 
या उठ गई होगी, दबी सी पीड़ कोई, 
खुद ही, कब बनी है लकीर कोई, 
या भर गया है, विष ही फिज़ाओं में कोई

प्रतीक्षारत रहती है
जीवित आँखें
मन सकूँ पाए
मन प्रतीक्षारत रहता है
क्षुधा तृप्त रहे
क्षुधा से सिंधु पनाह मांगे।
तथाकथित अपनों के भरोसे
शव प्रतीक्षारत रहे..

गर कथन यह सत्य है तो,
बोझ फिर क्यों ढो रही हो?
या मुकद्दर पर तरस खा
थक गयी हो, सो रही हो?
हारता, हालात से
अब क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं?

रस्मोरिवाज  के नाज़ुक बँधन से,
बँधे  हैं  हमारे  हर बँधन,
मातृत्व को  धारणकर ,
ममता को निखारा है हमने , 
धरा-सा कलेजा ,
सृष्टि-सा रुप निखारा है हमने,
हाँ अच्छी लड़कियाँ हैं हम |

आज अतिक्रमण कर बैठी
पर चलते-चलते एक खबर
सच में 
किसी दिन 
एक सच 

कोई 
कहीं 
तो 
लिखेगा 

झूठ 
लिखने 
का 
नशा 

बहुत 
जियादा 
कमीना है 
.......
अब सच में बस
सादर
यशोदा

6 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति 👌
    मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार दी जी
    सादर

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  2. हैं। निकलता है। जब कहीं बापू नजर आते हैं अब तो। सुन्दर प्रस्तुति आभार यशोदा जी। कल आज क्या आप सातों दिन आ कर सूत्र सजा सकती हैं हमे पता है कोई आये ना आये। जारी रहे । शुभकामनाएं।

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  3. बहुत सुन्दर संकलन ।

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  4. सांध्य दैनिक मुखरित मौन का हिस्सा बन पाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ व आभार।

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  5. मौन की सुन्दर भाषा ...

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  6. यशोदा जी ने कम शब्दों में बहुत बड़ी चिकोटी काटी है । हम झूठ के समंदर में रहते हैं । केवल आदर्श के स्वप्न बेचने के लिये ऐसा झूठ क्यों बोला जाय जो सिर्फ़ धोखे ही धोखे सजाता-सँवारता है । साहित्य के लिये यह एक चर्चा का विषय रहा है ... आगे भी रहेगा ।

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