Tuesday, August 6, 2019

75...अबूझ पहेली सी जिन्दगी.....

स्नेहाभिवादन ।
आज की सांध्य वेला प्रस्तुति में
आप सब का हार्दिक स्वागत   ।

सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान।
जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।
  
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

★★★

अबूझ पहेली-सी ज़िंदगी..
रोज ही चल पड़ती है
थामकर मेरा हाथ,
बड़ी चालाकी से ये ज़िंदगी
दिखाती है सुनहरे ख़्वाब.

सुकून की कली कब,
वहां खिली थी।
चमका जो सूरज,
डरे थे ये बादल।
घाटी से अब तो,
छंटेंगे ये बादल।
खुशियों के फिर से,
बरसेंगे बादल।

मैं चुनती रही रश्मियां बिना आहट रात भर ,
करीने से सजाती रही एक पर एक धर ,
संजोया उन्हें कितने प्यार से हाथों में,
रख दूंगी धर के कांच के मर्तबान  में ,


अब अपना कश्मीर है, भारत की पहचान।।
नहीं चलेंगे देश में, दो-दो आज निशान
--
लहरायेगा तिरंगा, दिखलायेगा शान।
पूरे भारतवर्ष में, होगा एक विधान।।


दिनकर की धूप पाकर 
भोजन बनाता है पेड़ दिनभर,
लक्ष्यहीन अतरंगित असम्पृक्त को 
भटकन से उबारता है पेड़ दिनभर।  

★★★★★

शुभ संध्या
🙏🙏

मीना भारद्वाज










9 comments:

  1. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार,सादर

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  2. शुभ संध्या..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार..
    सादर..

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  3. मीना जी, आज सभी मंचों से यह निवेदन किया है, यदि मुखरित मौन की सहमति हो तो यहां से भी एक पोस्ट इस बारे में डाल दी जाए तो बेहतर होगा -

    आजकल वैसे ही लोग सिर्फ अपनी हांकते दिखते हैं दूसरों की रचनाओं को पढ़ना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। शायद ही कोई पोस्ट पूरी पढ़ी जाती हो ! जब तक आपस में कुछ आत्मीयता ना हो ! फिर भी कभी-कभी कोई रचना दिल को छू जाती है तो प्रशंसा करना जरुरी लगता है ! पर जब सामने वाले के दरवाजे पर ''approval'' की कुंडी लगी दिखती है तो झुंझलाहट और अपने पर ही कोफ़्त होने लगती है कि क्या जरुरत थी ख्वामखाह, एवंई किसी की हौसला अफजाई करने की ! उस समय ऐसा लगता है कि किसी ने बाहर ही रोक दिया हो और ''साहब'' को इत्तला करने गया हो..............इसीलिए आजकल पाठकों की राय मिलनी लगभग बंद हो चुकी है।
    एक बार आप यदि एक पोस्ट इस मुद्दे पर, अप्रूवल हटाने की विधि के साथ डाल दें तो हो सकता है कुछ फर्क पड़े। क्योंकि यह भी हो सकता है कि अधिकाँश को इसके बारे में पता भी ना हो।

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    1. आपके कथन से मैं भी पूरी तरह सहमत हूँ । इस विषय पर अगली प्रस्तुति में एक निवेदन जरूर होगा । सादर आभार आपके महत्वपूर्ण सुझाव के लिए ।

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति मीना जी ।
    असाधारण लिंको के साथ मेरी रचना चयन हेतु तहे दिल से शुक्रिया।
    हरिऔध जी की बेसकीमती पंक्तियां।


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  5. बहुत सुंदर रचनाओं का संकलन है आज के अंक में।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति मीना दी।

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  6. सुन्दर रचनाओं से सजी मीना जी की रसमय प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    मेरी रचना इस पटल पर पाठकों के समक्ष रचने के लिये बहुत-बहुत आभार।


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  7. शानदार लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति...

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