Thursday, August 22, 2019

91...मुट्ठियों में बंद लम्हें सुनहरे .....

स्नेहाभिवादन !
आज की "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" प्रस्तुति
में आप सब का हार्दिक स्वागत…
आपके अवलोकनार्थ आज के चयनित सूत्र---

बूँदे भी कुछ कहना चाहती है,
कुछ बताना चाहती है |
और कुछ सुनना चाहती है,
जब मैं गिरूँ इस धरती पर,
तो मुझे एक सरोवर में बचा लेना।

★★★

अब ईमानदारी की रोटी की इज्जत होने की उम्मीद जगी है। बेईमानी की रोटी जहर बनती जा रही है। जिस दिन लोग पैसे और सुख में अन्तर कर लेंगे उस दिन शायद देश सुखी हो जाएगा और जो हम सुख के इण्डेक्स में बहुत नीचे चल रहे हैं, उसमें भी ऊपर आ जाएंगे। लेकिन अभी तो भागमभाग देखने के दिन शुरू हो चुके हैं।

★★★

बंधे  हाथ दोनो
समाज के नियमों से
है बंधन इतना सशक्त 
तिलभर भी नहीं  खसकता
कोई इससे बच  नहीं पाता 
यदि बचना भी चाहे तो
वह नागपाश सा कसता  जाता

★★★

रिश्तों को बीच खड़ी
द्वेष की शिला
सपनों को कुचलती
तोड़ती नन्ही आशाएं
दिलों के बीच खड़ी
बिखेरती है जज़्बात
चुभती रहती मन में 
तोड़कर प्रेम विश्वास

★★★

आओ तुमको मैं दिखाऊँ
मुट्ठियों में बंद कुछ
लम्हे सुनहरे,
और पढ़ लो
वक्त के जर्जर सफों पर
धुंध में लिपटे हुए
क़िस्से अधूरे !
आओ तुमको मैं सुनाऊँ
दर्द में डूबे हुए नग़मात
कुछ भूले हुए से,

★★★

फिर मिलेंगे.. 
शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"

8 comments:

  1. सारगर्भित और सुंदर रचनाओं से सजी सुंंदर प्रस्तुति दी।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी

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  3. बहुत लाजवाब प्रस्तुति। स
    लिंक शानदार।

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  4. सुन्दर सूत्रों से सजा आज का यह अंक ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी !

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  5. सारगर्भित रचनाओं का संग्रह |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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