अलविदा
अब कभी नहीं मिलेंगे
सादर अभिनन्दन..
बस अब
घण्टों में बताया जाए तो
कुछ ही घण्टे और
चलिए आज मिलें
सखी पम्मी सिंह से
सखी पम्मी सिंह से
सखी पम्मी सिंह के बारे में
एक ही शब्द में वर्णन करना मुश्किल है -
व्यावहारिक दृष्टिकोण, थोड़ा सा हास्य, मृदुभाषी,
शांत और आरक्षित व्यक्तित्व,
अच्छी किचनक्वीन,
देखभाल करने वाली और बातूनी महिला
प्रस्तुत है उनके ब्लॉग की चुनिन्दा रचनाएँ
जब भी घिरती हूँ
बाकी सब जहाँ के रवायतों में सहेज रखा ..
पर.. जब भी घिरती हूँ दुविधाओं में
माँ..सच तेरी, बहुत कमी खलती है,
मुख्तलिफ राहों में तूने ही तो संभाला है
अब हवा दुखों की तब्दील होती नहीं
सर पे हथेलियों की गर्माहट महसूस करती नहीं
अनर्गल प्रलाप फेर में, क्यूँ नित्य मचाएं शोर।
तर्क करें ठोस बात पर, यही अस्तित्व की डोर।।
आस्था धर्म न तर्क जाने, न जाने सर्व विज्ञान।
परंपरा के निर्वहन में, न खीचें दुजें .. कान।।
मुक्कमल हर बात हुई
कदम पड़े छत पे
दिन में चाँद खिल गई
...
अमावस के स्याह में
शाम गुजार रहा
बेखुदी में जल रहा
इंसानियत मादूम हुए,
आँखों में बाजार समाएं बैठे हैं
देखे थे जो सब्ज़-ए-चमन,
वो ख्वाबोंं में समाएं बैठे हैं
किस तरह भूलें वो बस्ती
ओ बच्चों की ठहरी निगाहें
ये दर्द गहरा,जख़्म ताजा
बजारों के शोर उठाएं बैठे हैं
एहतियात जरूरी है,घर को बचाने के लिए।
पेड़-पौधे ज़रूरी है,ज़मीन को संवारने के लिए।।
कर दिया ख़ाली ,जो ताल था कभी भरा ।
मौन धरा पूछ रही, किसने ये सुख हरा।।
दरक रही धरती की मिट्टी, उजड़े सारे बाग।
त्राहि - त्राहि मचा रहा, छेड़ो अब नये राग।।
अहो! क्या कहते हो..
गुजरते वक्त में अफ़साने दर्ज है
तमाम पल कुरबत के
जेहन की सरगोशियां बन सांसों में दर्ज है
अहो!
शानों की रेखाओं संग गुस्ताखियाँ भी खूब चली..
पर,अपनी मनमर्जियां भी खूब रही,
स्वागतम्
स्वागतम्
लाजवाब।
ReplyDeleteव्वाहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन अंक..
सादर..
आभार हूँ ..दी
ReplyDeleteइतनी मुखरित हो मेरी व्याख्या करने के लिए।
बहुत अच्छा लगा। मुखरित मौन का हिस्सा बनाने के लिए।
धन्यवाद।