सादर अभिवादन
खबर ये है कि
खबर ही नहीं है आज
इसीलिए चलें सीधे रचनाओँ की ओर
"एक यादगार सफर" ...कामिनी सिन्हा
वो कहते हैं न कि -" शामें कटती नहीं और साल गुजर जाते हैं ",देखें न, कैसे एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला,हाँ आज मेरे ब्लॉग के सफर का एक साल पूरा हो गया। कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपना ब्लॉग बनाऊँगी ,ब्लॉग की छोड़ें कभी कुछ लिखूँगी ये भी नहीं जानती थी ,हाँ कुछ लिखने के लिए हर पल दिल मचलता जरूर था। तो ,जहाँ चाह होती हैं वहाँ राह खुद -ब -खुद मिल जाती हैं। हाँ ,कभी -कभी देर हो जाती हैं पर मिलती जरूर हैं और मुझे भी मिली। आज ही के दिन सखी रेणु ने मेरे ब्लॉग को आप सभी से साझा किया था और पहली टिप्पणी भी की थी और देखते ही देखते 4 -5 दिनों में ही आप सभी ने सहर्ष मुझे अपना लिया था।
स्वप्न या हकीकत ....अमित मिश्रा 'मौन'
गाँव में एक आम का पेड़ है जिसमें नए नए फल लगे हैं। फल बड़े हो रहे हैं। कुछ को कच्चा तोड़ लिया गया अचार बनाने के लिए। अचार बन गया उन आमों का दायित्व पूरा हुआ, जो बचे थे उनको पकने के बाद तोड़ा गया, लोगों ने खाया और उस आम का काम भी ख़त्म। अब फ़िर से नए आम आएंगे और अपना दायित्व निभाएंगे। आम आते जाते रहते हैं पर पेड़ वहीं रहता है।
यहाँ पेड़ पृथ्वी है और आम का फल मनुष्य है।
परिन्दे ख़्वाब के ...लोकेश नदीश
न जाने हाथ में कैसे हसीं खज़ाने लगे
खिज़ां के रोजो-शब भी आजकल सुहाने लगे
तेरी यादों की दुल्हन सज गई है यूँ दिल में
किसी बारात में खुशियों के शामियाने लगे
किताब का एक पन्ना ...दिगम्बर नासवा
कहते हैं गंगा मिलन
मुक्ति का मार्ग है
कनखल पे अस्थियाँ प्रवाहित करते समय
इक पल को ऐसा लगा
सचमुच तुम हमसे दूर जा रही हो ...
गाँव शहर हो जाते हैं ...श्वेता सिन्हा
सूखे बबूल के काँटों में
उलझी पतंगे,आँख-मिचौली
मांदर-ढोल,भूल गये बिरहा,चैता
टूटी आस की बँसुरी,ढफली
'प्रेमचंद',' रेणु' की चिट्ठियाँ
'गोंडवी' के संदेशे पढ़ते-पढ़ते
गाँव शहर हो जाते है....।
मलिन मन के ... सुबोध सिन्हा
कई दफ़ा तो गढ़ते हो नई रजाई
तकिए .. मसनद और तोशक भी
नई विवाहित जोड़ों के लिए भी
नई-नई हल्की-मुलायम रुइयों से
और कई दफ़ा तो तुम
फैलाते हो आस-पास प्रदूषण भी
धुनते वक्त पुरानी रुइयाँ
खैर! जाने भी दो ना तुम
एक तुम ही तो नहीं हो जो
फैला रहे प्रदूषण
पर्यावरण में चहुँओर
दोस्ती जब भी कीजिए... सुनीता शानू
दोस्ती जब भी किसी से की जाए, पहले जांच परख ली जाए, जांच लिया जाए कि आपने जिससे दोस्ती की है उसे आप पर भरोसा है भी कि नहीं, यह भी देख लिया जाए कि वह आपकी निस्वार्थ दोस्ती को आपकी मतलबपरस्ती तो नहीं मान बैठेगा, आपको जानना पड़ेगा आपके दोस्त के दोस्त कैसे हैं, इंसान किसी की न सुनता हो मगर हर वक्त कान के पास आने वाली आवाजें दिमाग में घर बना लिया करती हैं।
आपको देखना होगा मौकापरस्त दोस्तो की दोस्त को पहचान है भी की नहीं?
....
आज बस
कल फिर मिलते हैं....
या सुनीता दीदी को ही कहेंगे
मंगल की प्रस्तुति आप बना दें
सादर
खबर ये है कि
खबर ही नहीं है आज
इसीलिए चलें सीधे रचनाओँ की ओर
"एक यादगार सफर" ...कामिनी सिन्हा
वो कहते हैं न कि -" शामें कटती नहीं और साल गुजर जाते हैं ",देखें न, कैसे एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला,हाँ आज मेरे ब्लॉग के सफर का एक साल पूरा हो गया। कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपना ब्लॉग बनाऊँगी ,ब्लॉग की छोड़ें कभी कुछ लिखूँगी ये भी नहीं जानती थी ,हाँ कुछ लिखने के लिए हर पल दिल मचलता जरूर था। तो ,जहाँ चाह होती हैं वहाँ राह खुद -ब -खुद मिल जाती हैं। हाँ ,कभी -कभी देर हो जाती हैं पर मिलती जरूर हैं और मुझे भी मिली। आज ही के दिन सखी रेणु ने मेरे ब्लॉग को आप सभी से साझा किया था और पहली टिप्पणी भी की थी और देखते ही देखते 4 -5 दिनों में ही आप सभी ने सहर्ष मुझे अपना लिया था।
स्वप्न या हकीकत ....अमित मिश्रा 'मौन'
गाँव में एक आम का पेड़ है जिसमें नए नए फल लगे हैं। फल बड़े हो रहे हैं। कुछ को कच्चा तोड़ लिया गया अचार बनाने के लिए। अचार बन गया उन आमों का दायित्व पूरा हुआ, जो बचे थे उनको पकने के बाद तोड़ा गया, लोगों ने खाया और उस आम का काम भी ख़त्म। अब फ़िर से नए आम आएंगे और अपना दायित्व निभाएंगे। आम आते जाते रहते हैं पर पेड़ वहीं रहता है।
यहाँ पेड़ पृथ्वी है और आम का फल मनुष्य है।
परिन्दे ख़्वाब के ...लोकेश नदीश
न जाने हाथ में कैसे हसीं खज़ाने लगे
खिज़ां के रोजो-शब भी आजकल सुहाने लगे
तेरी यादों की दुल्हन सज गई है यूँ दिल में
किसी बारात में खुशियों के शामियाने लगे
किताब का एक पन्ना ...दिगम्बर नासवा
कहते हैं गंगा मिलन
मुक्ति का मार्ग है
कनखल पे अस्थियाँ प्रवाहित करते समय
इक पल को ऐसा लगा
सचमुच तुम हमसे दूर जा रही हो ...
गाँव शहर हो जाते हैं ...श्वेता सिन्हा
सूखे बबूल के काँटों में
उलझी पतंगे,आँख-मिचौली
मांदर-ढोल,भूल गये बिरहा,चैता
टूटी आस की बँसुरी,ढफली
'प्रेमचंद',' रेणु' की चिट्ठियाँ
'गोंडवी' के संदेशे पढ़ते-पढ़ते
गाँव शहर हो जाते है....।
मलिन मन के ... सुबोध सिन्हा
कई दफ़ा तो गढ़ते हो नई रजाई
तकिए .. मसनद और तोशक भी
नई विवाहित जोड़ों के लिए भी
नई-नई हल्की-मुलायम रुइयों से
और कई दफ़ा तो तुम
फैलाते हो आस-पास प्रदूषण भी
धुनते वक्त पुरानी रुइयाँ
खैर! जाने भी दो ना तुम
एक तुम ही तो नहीं हो जो
फैला रहे प्रदूषण
पर्यावरण में चहुँओर
दोस्ती जब भी कीजिए... सुनीता शानू
दोस्ती जब भी किसी से की जाए, पहले जांच परख ली जाए, जांच लिया जाए कि आपने जिससे दोस्ती की है उसे आप पर भरोसा है भी कि नहीं, यह भी देख लिया जाए कि वह आपकी निस्वार्थ दोस्ती को आपकी मतलबपरस्ती तो नहीं मान बैठेगा, आपको जानना पड़ेगा आपके दोस्त के दोस्त कैसे हैं, इंसान किसी की न सुनता हो मगर हर वक्त कान के पास आने वाली आवाजें दिमाग में घर बना लिया करती हैं।
आपको देखना होगा मौकापरस्त दोस्तो की दोस्त को पहचान है भी की नहीं?
....
आज बस
कल फिर मिलते हैं....
या सुनीता दीदी को ही कहेंगे
मंगल की प्रस्तुति आप बना दें
सादर
व्वाहहहह...
ReplyDeleteशुभकामनाएं कामिनी जी को
उनके ब्लॉग की पहली वर्षगाँठ के लिए..
बेहतरीन रचनाएँ..
सादर....
सहृदय धन्यवाद सर ,आप सभी के सहयोग और स्नेह के बिना ये सफर कभी यहाँ तक नहीं आता ,देर से आने के लिए माफी चाहती हूँ ,सादर नमस्कार आपको
Deleteबहुत सारी शुभकामनाएँँ।
ReplyDeleteसरल, मधुर, समसामयिक एवं जनोपयोगी लेखन है आपका।
लिखते रहें।
प्रणाम।
जी कामिनी जी,
रेणु दी ने मेरे ब्लॉग को भी सुंदर और सुलभ बना दिया था।
इसीकारण तो मैं आप सभी तक पहुंच सका। इस ब्लॉग जगत में स्नेह करने वाले मुझे अनेक लोग भी मिले है।
प्रणाम।
मुखरित मौन और यशोदा दी के प्रति भी आभार।
बहुत उम्दा संकलन
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
वाह सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति आज की ...
ReplyDeleteआभार मेरी भावनाओं को समिलित करने के लिए ...
सुंदर प्रस्तुति आदरणीय दीदी | सभी रचनाकारों के लेखन की जितनी सराहना करूं कम है लोकेश जी की गजल शानदार तो दिगम्बर जी की माँ को समर्पित भावों से भरी रचना अत्यंत हृदयस्पर्शी है |सुबोध जी की रचना अपनी मिसाल आप है | धोबी चाचा से लेकर धुनिया तक उनकी रचनाओं में विस्तार पाते हैं | सखी कामिनी को ब्लोगिंग के एक वर्ष पूरा करने पर ढेरों शुभकामनायें और बधाई | |प्रिय कामिनी ब्लॉग जगत में अपना मौलिक लेखन और चिंतन लेकर आई थी , जिनके चलते उन्हें अपार लोकप्रियता मिली | सच कहूं तो लेखन के समानांतर शिष्टाचार और शालीन व्यवहार भी लोकप्रियता में अहम् भूमिका निभाते हैं |सखी कामिनी में सब खूबियाँ मौजूद हैं | उनका ब्लॉग पर सरल , स्नेहिल व्यवहार और विमर्श को आगे बढ़ाने की लालसा उन्हें विशेष बनाती है | सखी तुम यूँ ही आगे बढो | मेरा प्यार और शुभकामनायें अहर्निश तुम्हारे लिए रहेंगी |
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद यशोदा दी ,मेरी ख़ुशी को सबके साथ साझा कर आपने इसे दुगुना कर दिया ,आदरणीय सभी सहयोगी जनों को दिल से आभार ,देर से आने के लिए माफी चाहती हूँ ,सभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं ,सादर नमस्कार आपको
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