सादर अभिवादन
माह पूष
ठण्ड की अधिकता
दो दिन की बदली के बाद
आज खिली है धूप
माह पूष
ठण्ड की अधिकता
दो दिन की बदली के बाद
आज खिली है धूप
जाहिर है आज रहेगी
वो तथाकथित ठण्ड..
चलिए रचनाओं की ओर
वो तथाकथित ठण्ड..
चलिए रचनाओं की ओर
"शब्द भी एक तरह का 'भोजन' है"
किस समय कौन सा 'शब्द' परोसना है,
यदि वो आ जाये तो..
दुनियां में उससे बढ़िया 'रसोइया' कोई नहीं है!
में तो इससे आगे यह कहूंगा कि--
'जिंदगी' अगर.'फाइन' हैं.!
तो, समझ लो..
उसमे जरूर ईश्वर के साइन हैं. !!
मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके
गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ ।
हर सुबह थोड़े वक्फे
मैं वहां ठहरना चाहता हूँ ।
हंसी उसे फबती है
जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्हाइट मुझे ज्यादा पसंद है ,
व्हाइट में वो अच्छी भी लगती है
स्मृतियों के चटखते
अलाव की गरमाहट में
साँझ ढले
गहन अंधकार में
बर्फ के अनंत समुन्द्र में
हिचकोले खाती नाव पर सवार
घर वापसी की आस में
दिन-गिनते,
कभी-कभी बर्फीले सैलाब में
सदा के लिए विलीन हो जाते हैं
कभी लौट कर नहीं आते हैं
वीर सैनिक।
बेहतर हुए हैं कि नहीं हालात चमन के,
अर्ज़ यही है अमराइयों से ज़रा पूछ तो लो,
नफ़रतों के तंज़ कसे तो होंगे दिलों पर,
हर्ज क्या है आईना ज़रा देख तो लो |
लगता है ठण्ड पड़ रही है
बस चार ही रचनाएँ पसंदीदा मिली
सादर
लगता है ठण्ड पड़ रही है
बस चार ही रचनाएँ पसंदीदा मिली
सादर
बहुत मिली। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया दी जी.
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति दी सभी रचनाएँ अच्छी हैं।
ReplyDeleteसादर आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आज की पोस्ट है मुझे स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
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