सादर अभिवादन
तर्ज बन गई है
बनी रहेगी 31 दिसंमबर तक
आज के श़ायर हैं
पद्मश्री ज़नाब बशीर बद्र साहब
तर्ज बन गई है
बनी रहेगी 31 दिसंमबर तक
आज के श़ायर हैं
पद्मश्री ज़नाब बशीर बद्र साहब
डॉ. बशीर बद्र (जन्म १५ फ़रवरी १९३६) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए उन्हें १९९९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
इनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था। आज के मशहूर शायर और गीतकार नुसरत बद्र इनके सुपुत्र हैं।
आइए पहते पढ़ते हैं कुछ चुनिंदा अश़आर
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
अब पढ़िए चंद ग़ज़लें
.......
मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है
मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ
मगर इस राह में खतरा बहुत है
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है
इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुँआ है और ये गहरा बहुत है
उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है
समंदर है मगर प्यासा बहुत है
-*-*-*-*-
बाहर ना आओ घर में रहो तुम नशे में हो
सो जाओ दिन को रात करो तुम नशे में हो
दरिया से इख्तेलाफ़ का अंजाम सोच लो
लहरों के साथ साथ बहो तुम नशे में हो
बेहद शरीफ लोगो से कुछ फासला रखो
पी लो मगर कभी ना कहो तुम नशे में हो
कागज का ये लिबास चिरागों के शहर में
जरा संभल संभल कर चलो तुम नशे में हो
क्या दोस्तों ने तुम को पिलाई है रात भर
अब दुश्मनों के साथ रहो तुम नशे में हो
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ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे
ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे
चाँद इन बदलियों से निकलेगा
कोई आयेगा दिल को आस रहे
हम मुहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे
मेरे सीने में इस तरह बस जा
मेरी सांसों में तेरी बास रहे
आज हम सब के साथ ख़ूब हँसे
और फिर देर तक उदास रहे
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सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा, तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा
सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा
......
सारी रचनाएँ कविता कोश से
कल का पता नहीं कौन आएगा
सादर..
कल का पता नहीं कौन आएगा
सादर..
लाजवाब
ReplyDeleteवाह दी शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर आभार।
@जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता...........!
ReplyDeleteएक सच बोलने जाओ तो दस झूठ उसे चुप कराने आ खड़े होते हैं