सादर नमस्कार....
आखिर आ ही गया..
महीना दिसंबर का..
अब लोग करेंगे.. प्रतीक्षा
उत्सवों का....
बहुत सारे हैं इस दिसंबर में..
रचनाएं पहले देखें .....
उत्सवों का....
बहुत सारे हैं इस दिसंबर में..
रचनाएं पहले देखें .....
बंद ठण्डे कमरों में बैठी सरकार
नीति निर्धारित करती
पालनार्थ आदेश पारित करती
पर अर्थ का अनर्थ ही होता
मंहगाई सर चढ़ बोलती
नीति जनता तक जब पहुँचती
अधिभार लिए होती
हर बार भाव बढ़ जाते
या वस्तु अनुपलब्ध होती
पर यह जद्दोजहद केवल
आम आदमी तक ही सीमित होती
बहुत ख़ुश है आज वह लड़की,
आख़िर वह भी चखेगी कॉफ़ी,
देर तक महसूस करेगी उसका स्वाद,
घूँट-घूँट उतारेगी गले से नीचे,
आज महसूस करेगी वह
कि अमृत का स्वाद कैसा होता है.
आह‚ अंंतिम रात वह‚ बैठी रहीं तुम पास मेरे‚
शीश कंधे पर धरे घन कुंतलों से गात घेरे‚
क्षीण स्वर में कहा था‚ ‘अब कब मिलेंगे?’
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
‘कब मिलेंगे?’ पूछता मैं विश्व से जब विरह कातर‚
‘कब मिलेंगे?’ गूंजते प्रतिध्वनि निनादित व्योम सागर‚
‘कब मिलेंगे?’ प्रश्न उत्तर ‘कब मिलेंगे?’
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
मोमबत्तियां जल जाती हर बार
जुलूस भी निकाल लिये जाते
पर वासना से उत्पन्न
गंदी नाली के कीड़ों में
अब कहाँ बचा है होश
कागज पर उतरता आक्रोश ।
छिपा अरूप रूप के पीछे
उसे निहारा किन नयनों से,
सुख की गागर सदा लुटाये
व्यक्त हुआ ना वह बयनों से !
रूप, रंग, रस स्वाद अनूठा
कौन सुनाये अपनी गाथा,
कोई नहीं अलावा उसके
अरे ! दादी ये क्या बुदबुदा रही हैं.. क्या वे सच में बद्दुआ दे रही हैं..मम्मी तो यही कहती हैं कि यह बुढ़िया हमें शाप देती है..परंतु क्यों, वे ऐसी ही हैं..?
नहीं - नहीं, गलत है यहसब, हमारी दादी तो हम तीनों भाई-बहनों को कितना दुलार करती हैं..हिमांशु कुछ भी नहीं समझ पाता था कि यह उनका शाप था अथवा विलाप..।
....
आज बस..
कल फिर मिलते हैं
सादर
आज बस..
कल फिर मिलते हैं
सादर
सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसाभार
सादर...
यहाँ बात उत्सव की हो रही है, तो निश्चित ही सामूहिक उत्सव में सम्मिलित होना चाहिए..।
ReplyDeleteइससे उत्साह का संचार होता है । आपस में सद्भाव के लिए भी आवश्यक है ।
क्योंकि दबा हुआ विद्वेष छाती के भीतर सर्प के समान फुफकारता रहता है, यह कब स्वयं को ही घायल कर दे यह कहना कठिन होता है। अतः सामूहिक उत्सव के माध्यम से यह विद्वेष भाव भी नष्ट होता
है।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार यशोदा दी
सुन्दर अंक।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमन दी
ReplyDeleteबहुत शानदार मुखरित मौन ।
ReplyDeleteसभी रचनाएं बहुत सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
उम्दा लिंको के साथ लाजवाब मुखरित मौन...
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स|
मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी |
सुंदर भूमिका के साथ पठनीय सूत्रों का चयन, आभार यशोदा जी, मुझे भी शामिल करने हेतु ..
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