उन चारों अत्याचारियों की तो
सजाए मौत निश्चित थी
पर मौत उन लोगों को जल्दी चाहिए थी
सो उन लोगों ने पुलिस वालों से राइफल
छीनने की कोशिश कर अपनी मौत को स्वयं ही
आमंत्रित कर लिया...पुलिस का गोलियों से
मारे गए अत्याचारी....
एनकाउंटर हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर महबूब नगर ज़िले के चटनपल्ली गांव में हुआ। ये वही जगह है जहां 28 नवंबर को एक टोल प्लाज़ा के पास 26 साल की एक डॉक्टर का जला हुआ शव बरामद हुआ था। जांच में पता चला कि महिला के साथ गैंगरेप हुआ था और बाद में हत्या करने के बाद जला दिया था।
पुलिस ने उसी स्थान पर आरोपियों का एनकाउंटर किया जहां इस घटना को अंजाम दिया गया था। एनकाउंटर के बाद बड़ी संख्या में लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिसकर्मियों को कंधे पर उठा लिया। उन्होंने फूल बरसाकर पुलिस का स्वागत भी किया।
चलिए रचनाओं की ओर...
हादसे स्तब्ध हैं ...रश्मि प्रभा
हादसे स्तब्ध हैं, ... हमने ऐसा तो नहीं चाहा था !
घर-घर दहशत में है,
एक एक सांस में रुकावट सी है,
दबे स्वर,ऊंचे स्वर में दादी,नानी कह रही हैं,
"अच्छा था जो ड्योढ़ी के अंदर ही
हमारी दुनिया थी"
नई पीढ़ी आवेश में पूछ रही,
"क्या सुरक्षित थी?"
बुदबुदा रही है पुरानी पीढ़ी,
"ना, सुरक्षित तो नहीं थे, लेकिन ...,
ये तो गिद्धों के बीच घिर गए तुम सब !
जिन राहों पर चला नहीं मैं ....अमित निश्छल
व्यथित हृदय की कठिन वेदना
कर में थाम रखा कल्पों से,
अपनों का सहयोग मिलेगा
रहा प्रताड़ित इन गल्पों से।
आँखें भी अपने गह्वर में, क्लिष्ट वेदना को भर-भरकर
प्रलयकाल की जलसमाधि में, जन्मों से बर्बाद रही हैं।
प्रेम तो प्रेम है ....रोली अभिलाषा
उस रोज़
जब पतझड़ धुल चुका होगा
अपनी टहनियों को,
पक्षी शीत के प्रकोप से
बंद कर चुके होंगे अपनी रागिनी,
देव कर चुके होंगे पृथ्वी का परिक्रमण,
रवि इतना अलसा चुका होगा
कि सोंख ले देह का विटामिन,
सड़कों पर चल रहा होगा प्रेतों का नृत्य,
शलभ-सी प्रीत ...अनीता सैनी
शलभ-सी प्रीत पिरोये हृदय में,
तड़प ऊँघती कलिकाल में मुस्कुराती,
उम्मीद नयनों में ठहर,चराग़ जलेंगे,
पवन से गुस्ताख़ियाँ जता रहे |
उलूक नामा भी यही कहता है
बात अलग है
अचानक
बीच में
मोमबत्तियाँ
लिखे लिखाये पर
हावी होना
शुरु हो जाती हैं
आग लिखना
कोई नयी बात
नहीं होती है
हर कोई
कुछ ना कुछ
किसी ना किसी
तरह से
जला कर
उसकी
रोशनी में
अपना चेहरा
दिखाना चाहता है
....
बस इतना ही
खुशी का मौका है
पर वो डॉक्टर तो वापस आने से रही
पर अब दूसरी नहीं जलेगी ये तो तय है
सादर
सजाए मौत निश्चित थी
पर मौत उन लोगों को जल्दी चाहिए थी
सो उन लोगों ने पुलिस वालों से राइफल
छीनने की कोशिश कर अपनी मौत को स्वयं ही
आमंत्रित कर लिया...पुलिस का गोलियों से
मारे गए अत्याचारी....
एनकाउंटर हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर महबूब नगर ज़िले के चटनपल्ली गांव में हुआ। ये वही जगह है जहां 28 नवंबर को एक टोल प्लाज़ा के पास 26 साल की एक डॉक्टर का जला हुआ शव बरामद हुआ था। जांच में पता चला कि महिला के साथ गैंगरेप हुआ था और बाद में हत्या करने के बाद जला दिया था।
पुलिस ने उसी स्थान पर आरोपियों का एनकाउंटर किया जहां इस घटना को अंजाम दिया गया था। एनकाउंटर के बाद बड़ी संख्या में लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिसकर्मियों को कंधे पर उठा लिया। उन्होंने फूल बरसाकर पुलिस का स्वागत भी किया।
चलिए रचनाओं की ओर...
हादसे स्तब्ध हैं ...रश्मि प्रभा
हादसे स्तब्ध हैं, ... हमने ऐसा तो नहीं चाहा था !
घर-घर दहशत में है,
एक एक सांस में रुकावट सी है,
दबे स्वर,ऊंचे स्वर में दादी,नानी कह रही हैं,
"अच्छा था जो ड्योढ़ी के अंदर ही
हमारी दुनिया थी"
नई पीढ़ी आवेश में पूछ रही,
"क्या सुरक्षित थी?"
बुदबुदा रही है पुरानी पीढ़ी,
"ना, सुरक्षित तो नहीं थे, लेकिन ...,
ये तो गिद्धों के बीच घिर गए तुम सब !
जिन राहों पर चला नहीं मैं ....अमित निश्छल
व्यथित हृदय की कठिन वेदना
कर में थाम रखा कल्पों से,
अपनों का सहयोग मिलेगा
रहा प्रताड़ित इन गल्पों से।
आँखें भी अपने गह्वर में, क्लिष्ट वेदना को भर-भरकर
प्रलयकाल की जलसमाधि में, जन्मों से बर्बाद रही हैं।
प्रेम तो प्रेम है ....रोली अभिलाषा
उस रोज़
जब पतझड़ धुल चुका होगा
अपनी टहनियों को,
पक्षी शीत के प्रकोप से
बंद कर चुके होंगे अपनी रागिनी,
देव कर चुके होंगे पृथ्वी का परिक्रमण,
रवि इतना अलसा चुका होगा
कि सोंख ले देह का विटामिन,
सड़कों पर चल रहा होगा प्रेतों का नृत्य,
शलभ-सी प्रीत ...अनीता सैनी
शलभ-सी प्रीत पिरोये हृदय में,
तड़प ऊँघती कलिकाल में मुस्कुराती,
उम्मीद नयनों में ठहर,चराग़ जलेंगे,
पवन से गुस्ताख़ियाँ जता रहे |
उलूक नामा भी यही कहता है
बात अलग है
अचानक
बीच में
मोमबत्तियाँ
लिखे लिखाये पर
हावी होना
शुरु हो जाती हैं
आग लिखना
कोई नयी बात
नहीं होती है
हर कोई
कुछ ना कुछ
किसी ना किसी
तरह से
जला कर
उसकी
रोशनी में
अपना चेहरा
दिखाना चाहता है
....
बस इतना ही
खुशी का मौका है
पर वो डॉक्टर तो वापस आने से रही
पर अब दूसरी नहीं जलेगी ये तो तय है
सादर
उन चारों अत्याचारियों की तो
ReplyDeleteसजाए मौत निश्चित थी
पर मौत उन लोगों को जल्दी चाहिए थी
सो उन लोगों ने पुलिस वालों से राइफल
छीनने की कोशिश कर अपनी मौत को स्वयं ही
आमंत्रित कर लिया...पुलिस का गोलियों से
मारे गए अत्याचारी....
व्वाहहहह...
अद्यतन समाचारों का समावेश भी..
साधुवाद...
आभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय.
ReplyDeleteमुझे स्थान देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया आपका
सादर
अच्छी रचनाएँ
ReplyDeleteऐसे दुराचारीयों का यही हश्र होना था कहते हैं "भगवान के. घर देर है अंधेर नहीं"सुन्दर संकलन
ReplyDelete