अलविदा
अब कभी नहीं मिलेंगे
सादर अभिवादन
आज से तीन दिनों तक आस्वादन कीजिए
चर्चाकार की रचनाओँ का
आज की चर्चाकारा हैं
सखी श्वेता सिन्हा
वे भी महादेवी के नक़्शे-क़दम पर ही हैं
मोह-भंग ...
भोर का ललछौंहा सूरज,
हवाओं की शरारत,
दूबों,पत्तों पर ठहरी ओस,
चिड़ियों की किलकारी,
फूल-कली,तितली
भँवरे जंगल के चटकीले रंग;
धवल शिखरों की तमतमाहट
बादल,बारिश,धूप की गुनगुनाहट
झरनो,नदियों की खनखनाहट
समुंदर,रेत के मैदानों की बुदबुदाहट
मौन हूँ मैं ...
हवायें हिंदू और मुसलमान हो रही हैं,
मौन हूँ मैं,मेरी आत्मा ईमान खो रही हैं।
मेरी वैचारिकी तटस्थता पर अंचभित
जीवित हूँ कि नहीं साँसें देह टो रही हैं।
सौंदर्य-बोध ...
दृष्टिभर
प्रकृति का सम्मोहन
निःशब्द नाद
मौन रागिनियों का
आरोहण-अवरोहण
कोमल स्फुरण,स्निग्धता
रंग,स्पंदन,उत्तेजना,
मोहक प्रतिबिंब,
महसूस करता सृष्टि को
प्रकृति में विचरता हृदय
कितना सुकून भरा होता है
चिरयौवन प्रेम ....
तुम्हारे गुस्से भरे
बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर
देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ
भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में
बैशाख की दुपहरी का ताव
देख पाना मेरे बस का नहीं न
हमेशा की तरह चुपचाप
सिर झुकाये,
गीली पलकों का बोझ लिये
मैं सहमकर तुम्हारे सामने से हट जाती हूँ
रात ....
सर्द रात के
नम आँचल पर
धुँध में लिपटा
तन्हा चाँद
जाने किस
ख़्याल में गुम है
झीनी चादर
बिखरी चाँदनी
लगता है
किसी की तलाश है
....
आज शनिवार से 2019 की विदाई की सिलसिला
आज के बाद तीन दिनों तक
एक ही ब्लाग की रचनाएँ पढ़वाएँगे
सादर
स्वागतम्
अब कभी नहीं मिलेंगे
सादर अभिवादन
आज से तीन दिनों तक आस्वादन कीजिए
चर्चाकार की रचनाओँ का
आज की चर्चाकारा हैं
सखी श्वेता सिन्हा
वे भी महादेवी के नक़्शे-क़दम पर ही हैं
मोह-भंग ...
भोर का ललछौंहा सूरज,
हवाओं की शरारत,
दूबों,पत्तों पर ठहरी ओस,
चिड़ियों की किलकारी,
फूल-कली,तितली
भँवरे जंगल के चटकीले रंग;
धवल शिखरों की तमतमाहट
बादल,बारिश,धूप की गुनगुनाहट
झरनो,नदियों की खनखनाहट
समुंदर,रेत के मैदानों की बुदबुदाहट
मौन हूँ मैं ...
हवायें हिंदू और मुसलमान हो रही हैं,
मौन हूँ मैं,मेरी आत्मा ईमान खो रही हैं।
मेरी वैचारिकी तटस्थता पर अंचभित
जीवित हूँ कि नहीं साँसें देह टो रही हैं।
सौंदर्य-बोध ...
दृष्टिभर
प्रकृति का सम्मोहन
निःशब्द नाद
मौन रागिनियों का
आरोहण-अवरोहण
कोमल स्फुरण,स्निग्धता
रंग,स्पंदन,उत्तेजना,
मोहक प्रतिबिंब,
महसूस करता सृष्टि को
प्रकृति में विचरता हृदय
कितना सुकून भरा होता है
चिरयौवन प्रेम ....
तुम्हारे गुस्से भरे
बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर
देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ
भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में
बैशाख की दुपहरी का ताव
देख पाना मेरे बस का नहीं न
हमेशा की तरह चुपचाप
सिर झुकाये,
गीली पलकों का बोझ लिये
मैं सहमकर तुम्हारे सामने से हट जाती हूँ
रात ....
सर्द रात के
नम आँचल पर
धुँध में लिपटा
तन्हा चाँद
जाने किस
ख़्याल में गुम है
झीनी चादर
बिखरी चाँदनी
लगता है
किसी की तलाश है
....
आज शनिवार से 2019 की विदाई की सिलसिला
आज के बाद तीन दिनों तक
एक ही ब्लाग की रचनाएँ पढ़वाएँगे
सादर
स्वागतम्
इस मान के ललिए बहुत आभारी हूँ दी।
ReplyDeleteसादर।
वाह लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर!आदरणीय दीदी, ये नया प्रयोग बहुत बढिया है। प्रिय श्वेता की रचनाएँ प्रेम, प्रकृति और सम सामयिक मुद्दों और घटनाओं पर विहंगमता से दृष्टिपात करती हैं। नये बिंब विधान में गूंथा गया लेखन तुकांत, अतुकांत, गीत , ग़ज़ल या फिर निबन्ध काव्य के माध्यम से अपनी गहरी छाप छोड़ने में सक्षम है । श्वेता को हार्दिक शुभकामनायें । सभी रचनाएँ बढिया हैं। पुरानी रचनाओं ने अंक को सार्थकता दी है, अच्छा लगा पढकर्।
ReplyDeleteवाह ... कमाल का अंक आज का ...
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