Tuesday, December 17, 2019

208..आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास

सादर अभिवादन
नगर निगम चुनाव का हल्ला
जोरों पर है
इस बार छत्तीसगढ़ मे ईवीएम
का जगह बेलेट पेपर डाले जाएँगे व्होट
मतलब..हंगामा होगा
हो जाए.... हमें क्या..
चलिए चलें रचनाओं की ओर...


एक ऊहापोह ...

था सुनता आया बचपन से
अक़्सर .. बस यूँ ही ...
गाने कई और कविताएँ भी
जिनमें ज़िक्र की गई थी कि
गाती है कोयलिया
और नाचती है मोरनी भी
पर सच में था ऐसा नहीं ...


जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध

हे कविवर जो तटस्थ हैं वो देख पा रहें हैं कि ये युद्ध सत्ता की हैं जिसमे आम जन बस मोहरे से ज्यादा कुछ नहीं हैं | वो सत्ताधारी और सत्ता के लालची हैं जो किसी युद्ध , आंदोलन को धर्म युद्ध , जन आंदोलन नाम दे कर उसमे आम जन को आहुति देने का आवाहन करतें हैं और स्वयं बाद को सत्ता का भोग करते हैं उसके करीब पहुंचते हैं | आम जनता पहले भी खाली हाथ होती हैं और ऐसे हर आंदोलन , युद्धों के बाद भी | हां ये जरूर होता हैं कि कई बार उसके पास जो हैं वो भी चला जाता हैं |


टूटे पँखों को लेकर.....

टूट के बिखरे सपने जो,
इस दिल पे आघात लगा।
 बनके साथी छोड़े साथ,
वो साथी बेकार लगा।
रोकर जीवन अब न गुजरे,
दुख को परे झटकना हो,
टूटे पँखों को लेकर के,
कैसे जीवन जीना हो।


मन ही तो है ...

मन ही तो है कागज़ की नाव सा 
बहाव के साथ बहता 
तेज बहाव के साथ वही राह पकड़ता
डगमग डगमग करता |
या तराजू के काँटों सा
पल में  तोला पल में  माशा
है अजब  तमाशा इस  का



उलूक का ताजा तरीन पन्ना

एक 
खूबसूरत 
समय की 
बदसूरत 
बकवास 
सारे 
आबंटित 
कामों को त्याग 
विशेष 
काम पर लगे 
सारे 
आसपास के 
तगड़े 
घोड़ों की 
प्रतिस्पर्धाएं

आज अब बस
सादर






5 comments:

  1. बहुत सुंदर..
    सादर..

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  2. बढ़िया प्रयास...बढ़िया रचनाओं को प्रस्तुत किया है आपने।

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी।

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