सादर अभिवादन..
जाने वाला है
अब दिसम्बर भी
न लाया कुछ
न ही दे गया कुछ
खाली-पीली पंगा ले लिया
हमें क्या...चलिए चलते हैं..
जाने वाला है
अब दिसम्बर भी
न लाया कुछ
न ही दे गया कुछ
खाली-पीली पंगा ले लिया
हमें क्या...चलिए चलते हैं..
बिखरो न यूँ, मन के मनके, चुनो तुम,
चलो, सपने बुनो तुम!
सँवार लो, अपनी ही रंगों में,
ढ़ाल लो, हकीकत में, इन्हें तुम!
साक़ी क्या मिलाई है, तू ने प्यालों में।
पीकर रहता हूँ, तेरे ही ख़यालों में।
तुम मुझे चाहो, मेरी चाहत है साक़ी,
मेरा कभी नाम हो, चाहने वालों में।
जब तुम्हें सोचती हूँ
तब सोचती हूँ रास्तों को
जो जितने लम्बे होते हैं
उतनी गहन होती है उनकी पुकार
उन रास्तों पर अचानक
तुम थाम लेती हो हाथ
और रास्तों की लम्बाई
खूबसूरत साथ में बदल जाती है
औ मेरे ब्लॉग ! देखो मैं आ गयी !
थोड़े समय के लिए ही सही
मन में खुशियाँ छा गयी !
जानते हो तुमसे मिलने को
क्या कुछ नहीं किया मैंने !
और तो और छोटों से किया
वादा ही तोड़ दिया मैंने !
चहरे पर मुस्कान रहती
ना कोई चिंता ना भय की लकीरें
सर्दी चाहे जितनी हो
सहन शक्ति अपार होती
प्रातः काल जला अलाव
चारो ओर गोला बना
सर्दी से लोहा लेते
ख़ामोश होने से पहले ...
ख़ामोशी बनी मीत,जब कोई न था साथ
दर्द अकेले सहा ,नहीं था कोई आसपास
चलो अच्छा हुआ तुम भी न समझे मुझको
अंधेरे से दोस्ती की ,दीपक जलाऊँ क्यों !!
.....
ख़ामोश होने से पहले ...
ख़ामोशी बनी मीत,जब कोई न था साथ
दर्द अकेले सहा ,नहीं था कोई आसपास
चलो अच्छा हुआ तुम भी न समझे मुझको
अंधेरे से दोस्ती की ,दीपक जलाऊँ क्यों !!
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कुछ खास
भाई पुरुषोत्तम जी का ब्लॉग हैंग हो जाता है
सूचना नहीं दे पाई खेद है
सादर
भाई पुरुषोत्तम जी का ब्लॉग हैंग हो जाता है
सूचना नहीं दे पाई खेद है
सादर
" सबका साथ - सबका विकास "
ReplyDeleteजब नेताजी मंच से यह उद्घोष करते हैं, तो सभा स्थल पर तालियों की गड़गड़ाहट करते लोग बांसों उछल पड़ते हैं। पिता जी कहते थें कि " गरीब हटाओ " का जुमला भी कभी इसीतरह सिर चढ़ कर बोलता था।
तब मैंने इस दुनिया में आँखें खोली थीं और अब अर्धशतकीय पाली खेलने की ओर हूँ। हर वर्ष का दिसंबर माह यूँ ही खिसक जाता है और आम आदमी की झोली खाली रहती है, क्यों कि हमारे देश की राजनीति राष्ट्र की पूरी सृजनात्मक उर्जा को गलत मार्ग पर भटका रही है। सत्ताधारी लोग राजनीति की नीति को भूल छल से सफलता अवश्य प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन , जिन्होंने उन्हें शीर्ष पर बैठाया है, उसका विश्वास वे खो बैठते हैं। और आपसी सद्भाव अंतर्कलह में परिवर्तित हो जा रहा है। इस वर्ष भी यहीं हुआ है, यह दिसंबर माह इसका साक्षी है।
खैर , हम पत्रकार, साहित्यकार और राजनेता सहित प्रबुद्ध वर्ग के लोग अपने-अपने चश्मे से वर्ष के अंत में इसकी समीक्षा करेंगे।
फिलहाल, तो मेरी अनुभूति को इस पटल पर स्थान देने केलिए हृदय से आपको धन्यवाद यशोदा दी, साथ ही रचनाकारों को भी मेरा प्रणाम।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर..
वाह सुन्दर
ReplyDeleteलाजवाब मुखरित मौन मंच की सभी उम्दा रचनाओं के साथ मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं के गुलदस्ते में अपनी रचना को देखना अच्छा लगा। बहुत दिनों के बाद सभी की रचनाओं को पढ़ कर टिप्पणी भी कर दी। भाई पुरुषोत्तम जी का ब्लॉग हैंग हो जाने के कारण रचना को पढ़ नहीं पाया और न ही टिप्पणी कर पाया। सुंदर प्रस्तुति, आभार।
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स|
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |