Sunday, December 15, 2019

206 ...अँधियारा फैला गलियों में, रस्ता कौन दिखाएगा

सादर अभिवादन
रविवार को कम ही रहते हैं
लिखने वाले...पर
पढ़ने वाले काफी रहते हैं
चलिए चलें पढ़ने...

इस अंजुरी में समाई है
सारी दुनिया मेरी
माँ की ममता,
बाबूजी का दुलार,
दीदी का प्यार
भैया की स्नेहिल मनुहार
ये सारे अनुपम उपहार


कुहासे का स्‍वेटर
सूरज ने पहना
कुहासे का स्‍वेटर
और
बच्‍चों की तरह
हौले-हौले
कदम रख चल पड़ा है
आकाश के पथ पर
सफर में अपने


कहीं हम बैठ किनारे पर रच लेंगे
नन्हा-प्यारा गीत,
नीतियाँ, जो भी कहती इस दुनिया की
हमको क्या है मीत?
कि हमको जाना है पैदल ही चलकर, पगडंडी के पार।
बहारें बिछी मिलेंगीं, उन राहों पर, तारों का आगार।।


दिल है बंजर सूनी बस्ती,
कौन यहाँ अब आएगा
बादल भी जिस घर से रूठे,
बारिश कौन बुलाएगा

उम्मीदों का सूरज डूबा,
अब ना फ़िर से निकलेगा
अँधियारा फैला गलियों में,
रस्ता कौन दिखाएगा
...
बस
सादर

5 comments:

  1. व्वाहहहह...
    प्यारी प्रस्तुति..
    सादर..

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  2. वाह ! अनुपम सूत्रों का संकलन आज के अंक में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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