Monday, December 9, 2019

200...यादों की इक छाँव में बैठा रहता हूँ

सादर अभिवादन
ठेलते-ठेलते
यहाँ तक तो आ गए
अब आगे की राम जाने...

रचनाएँ देखें आज की ..

कुछ हाइकु
सर्दी की रात
रश्मिरथी बनके 
आया है चाँद।
-*-*-
चंद्र- किरण
पतझड़ी तरु को
दे पुलकन।



भेड़िये अब घूमते चारों तरफ ऐसे,
लूटते हैं बेटियों की अस्मिता !कैसे
पापियों के पाप से अब नर्क है जीवन
नोच! जिंदा लाश करते दुष्ट ये कैसे ।
फैसला हो शीघ्रता से राह निकले तब।।


यादों की इक छाँव में बैठा रहता हूँ 
अक्सर दर्द के गाँव में बैठा रहता हूँ
तुमने मुझसे हाल जहाँ पूछा था मेरा
मैं अब भी उस ठाँव में बैठा रहता हूँ



बीत जाते हैं, न जाने ये वक्त कैसे! 
अभी तो, सुबह थी, ये नई जिन्दगी की, 
सिमट आई, आँखों में सांझ कैसे? 
कल-कल बही थी, इक धार सी ये! 
अभी तो, शुरुआत थी, इक प्रवाह की, 
रुकने लगी, अभी से ये धार कैसे? 


हजार सबूत दिये खुद के होने के 
लाख उपायों से हम नकारे जाते हैं

हजार नेमतें वह लुटा रहा कब से 
फटा दामन ही हम दिखाए जाते हैं 

आज बस इतना ही
फिर मिलेंगे कल
सादर

5 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर...

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  2. बेहतरीन संकलन ,

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  3. बहुत उम्दा प्रस्तुति
    बेहतरीन रचनाएं

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