Sunday, August 15, 2021

731...स्वर्णिम युग में प्रवेश करना ही है ! इसी विश्वास के साथ सबको इस दिवस की शुभकामनाएँ

सादर नमस्कार
शुभकामनाएं आजादी की

वर्षों तक लोग स्वंय-स्फुर्त हो घरों से निकल आते थे। पूरे साल जैसे राष्ट्रीय दिवस का इंतजार रहता था ! पर अब लोग इनसे  जुडे समारोहों में खुद  नहीं आते, उन्हें बरबस वहां लाया जाता है। दुःख होता है, यह देख  कर कि अब इन पर्वों  को मनाया नहीं, बस  किसी तरह निपटाया  जाता है। इससे भी इंकार नहीं है कि देश-दुनिया का माहौल, अराजकता, आतंक, असहिष्णुता जैसे कारक भी इनसे दूरी बनाने के कारण हैं, पर कटु सत्य यही है कि लोगों की भावनाएं अब पहले जैसी नहीं रहीं ............!


15 अगस्त, वह पावन दिवस जब देशवासियों ने एकजुट हो आजादी पाई थी।कितनी खुशी, उत्साह और उमंग थी तब। वर्षों तक लोग स्वंय-स्फुर्त हो घरों से निकल आते थे, पूरे साल जैसे इस दिन का इंतजार रहता था। पर धीरे-धीरे आदर्श, चरित्र, देश प्रेम की भावना का छरण होने के साथ-साथ यह पर्व महज एक अवकाश दिवस के रूप मे परिवर्तित होने पर मजबूर हो गया। इस कारण और इसी के साथ आम जनता का अपने तथाकथित नेताओं से भी मोह भंग होता चला गया।
   
फिर स्वर्णिम युग में प्रवेश करना ही है ! इसी विश्वास के साथ सबको इस दिवस की, जिसने हमें भरपूर खुश होने का मौका दिया है, ढेरों शुभकामनाएं। वंदे मातरम, जय हिंद, जय हिंद  की सेना!  


असंख्य गुमनाम चीखें .. आहें ..
सिसकियाँ .. चित्कार भी ना जाने कितने
और इन्क़लाबी नारे भी शहीदों के
संग जले थे सपने भी कई उनके --
सयानी होती बेटियों को ब्याहने के सपने
सयाने होते बेटों के भविष्य के सपने
बेटे, भावी बहू, भावी पोते-पोतियों के सपने
बीमार अम्मा-बाबू जी के बुढ़ापे की
लाचारी को दूर करने के सपने
नवविवाहिता युवा पत्नी के वीरान दिनों
और सूनी रातों को गुलज़ार करने के सपने
प्रेयसी को किए गए रूमानी वादों को
अपनी बाँहों में भर कर पूरे करने के सपने ...
सब के सब .. जल गए .. सब राख हुए ..
और राख की धूसर कालिमा से
तैयार हुई साहिब ! .. काली स्याही ..
हाँ .. हाँ ...  काला पानी  की काली स्याही


यूँ तो .. ग़ुम रह जाती हैं ..
आज भी गुमनाम, ना जाने ..
एक मीरा नहीं, कईं मीराएँ,
अनगिनत कामकाजी मीराएँ,
थिरकाती हुईं,
'शेप' में बढ़ाए हुए,
रंगे 'नेलपॉलिश' से
अपने नाखूनों वाली
टपटपाती उंगलियाँ,
किसी दफ़्तर के
'कंप्यूटर' वाले
'क्वर्टी की-बोर्ड' पर ही।
कुछ कुशल गृहिणी मीराएँ,


इतने में सरदार पटेल  की आत्मा ने
अम्वेडकर  की आत्मा से पूछा
भाई संविधान में ये आरक्षण का
क्या चक्कर चलाया था ?
बेचारी सकपका कर बोली कि
मैंने तो बेहतरी के लिए ही
कानून बनाया था ।
मुझे क्या पता था कि
देश के नेता इतने नीचे गिर जायेंगे
कि इसी को अपना वोट बैंक बनाएँगे ।


कहो शान से
शायर ने भी कहा
दिलो जान से
सारे जहाँ से अच्छा
हिन्दोस्तान हमारा !

आन रखेंगे
अपने भारत का
मान रखेंगे
सूर्य से भी ऊपर
तेरा नाम रखेंगे !

,,,,
अब बस
कल लगा तो बुला लिया जाऊँगा
सादर 


4 comments:

  1. स्वतंत्र भारत के 75 वें वर्ष में पदार्पण करने पर सभी को बधाइयाँ। गर्व है भारतीय होने पर। सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।

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  2. स्वतंत्रता दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। सुंदर लिंक्स।

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  3. जी ! नमन संग आभार आपका .. इस सांध्य मंच पर, देश-प्रेम से सराबोर आज की अपनी प्रस्तुति के माध्यम से हमारी दो-दो बतकहियों को और भी आम करने के लिए .. साथ ही पुनः नमन आपको .. भविष्य में सफलता के आकाश में उड़ान भरने वाले सपने को संजोए, इस मंच के पंखों की रक्तवाहिनियों में अनवरत हौसले के रक्तसंचार को बहाने के लिए .. बस यूँ ही ...
    एक अचरज .. आठवाँ या नौवां या दसवां अचरज .. कि .. स्वदेश-प्रेम एक अच्छी बात है, लेकिन हमें इतना भी अँधा प्रेम नहीं होना चाहिए, कि केवल अपनी ही औलाद 'टॉपर' दिखे और मुहल्ले या शहर भर की फिसड्डी .. शायद ...

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  4. स्वाधीनता दिवस की हीरक जयंती पर देश प्रेम में रंगी बहुत ही सुन्दर रचनाओं का संकलन है आज के मुखरित मौन में ! बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें दिग्विजय जी ! मेरी रचना को आज की इस विशिष्ट प्रस्तुति में सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार बंधु ! स्वाधीनता दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं ! जय भारत ! वन्दे मातरम् 1

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