Wednesday, August 18, 2021

734 ...इस्लाम से पहले बौद्ध ही उनका धर्म था ...

सादर अभिवादन
वह प्राइमरी स्कूल की टीचर थी |  
सुबह उसने बच्चों का टेस्ट लिया था और उनकी कॉपियां जांचने के लिए घर ले आई थी |
बच्चों की कॉपियां देखते-देखते उसके आंसू बहने लगे. उसका पति वहीं लेटे-लेटे मोबाइल देख रहा था |  

उसके रोने का कारण पूछा ।

टीचर बोली , “सुबह मैंने बच्चों को  
‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश ’ विषय पर कुछ  पंक्तियाँ लिखने को कहा था ;

एक बच्चे ने इच्छा जाहिर की है कि- भगवन उसे  "मोबाइल" बना दे |
यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे |
टीचर बोली , “आगे तो सुनो बच्चे ने लिखा है-

यदि मैं mobile बन जाऊंगा, तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और  
सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा |  
जब मैं बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे |
मुझे रोका टोका नहीं जाएगा
और नहीं उल्टे सवाल होंगे |  

जब मैं mobile बनूंगा, तो पापा ऑफिस से आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे साथ बैठेंगे |


मम्मी को जब तनाव होगा,
तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ रहना चाहेंगी |

मेरे बड़े भाई-बहनों के बीच मेरे पास रहने के लिए झगड़ा होगा |  

यहाँ तक की जब mobile बंद रहेंगा, तब भी उसकी अच्छी तरह देखभाल होगी |  

और हाँ, mobile के रूप में मैं सबको ख़ुशी भी दे सकूंगा | “

यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा गंभीर होते हुए बोला -


 ‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं  देते !’

टीचर पत्नी ने आंसू भरी आँखों से  

पति की तरफ देखा और बोली-

“जानते हो, यह बच्चा कौन है? …हमारा अपना बच्चा……

.. हमारा छोटू |”

सोचिये, यह छोटू कहीं आपका बच्चा ....
तो नहीं ।

आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पायेंगे।
**आज की स्टोरी**

गांधीजी चले गए,
मेरी नींद टूट गई,
मैं सोचता हूँ,
सपने देखना आसान नहीं है,
रात को सपने आते नहीं,
और दिन में सपने देखने का
न समय है, न साहस.


चिंता तो तब की थी जब
बामियान में तोड़े गए बुद्ध
मैने बुद्ध से कहा भी था कि वे हार जायेंगे अंततः
हथियारों के आगे
बुद्ध मुस्कुराते रहे
मुस्कुराते हुए बुद्ध को देख मुझे आया था क्रोध भी
लेकिन बुद्ध बेफिक्र थे
मैं कभी बुद्ध से मिला नहीं इसलिए मुझे नहीं करनी चाहिए चिंता
बुद्ध की भी।


किसी अंध मोह के लिए
मैं धृतराष्ट्र नहीं बन सकता,
साथ चलना हो ग़र तुम्हें,
उतार फेंकों अंधकार की पट्टी,
ये पथ है शूलों से भरा,
ये कोई अंतःपुर नहीं है,


कुछ नहीं होता है पढ़कर उस लिखे पर
जो होता है खुद का किया हमेशा
लिखने वाले रोज मरते हैं रोज जीते हैं
लिखना लिखाना तू कर और बता
तूने तो खुदा लिखा


7 comments:

  1. बच्चे की ख्वाहिश से बहुत ही सुंदर सन्देश मिलता है। सुंदर लिंक्स।

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  2. बहुत सुन्दर लिंक्स.

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  3. शुक्रिया यशोधरा जी। बाकी रचनाएं भी बेहद अच्छी हैं।

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  4. सुंदर, पठनीय सूत्रों का संकलन ।आपको बहुत बहुत बधाई
    पम्मी जी ।

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