Monday, August 23, 2021

739 ..अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है !

सादर अभिवादन
चला गया सावन
सूखा - सूखा
क्या भी करे बिचारा
अपना सारा पानी
अषाढ़ में ही गिरा दिया
चलिए रचनाओं की ओर...

अब इस शब्द पर प्रतिबंध तो लग गया ! पर देखना यह है कि वर्षों से कव्वालियों और भजनों में प्रयुक्त होता आया यह शब्द, अपने सकारात्मक अर्थ को कब फिर से पा सकेगा ! क्या लोग इस शब्द के सही अर्थ को समझ इसे फिर से चलन में ला सकेंगे ! गुरु गोरखनाथ जी के ही शब्दों में, कोई बाहरी रोक-टोक तो कर सकता है पर अंदरूनी रोक खुद ही करनी पड़ती है ! अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है !  

हमने देखा है शुभ्र वस्त्रों में लोगों
का वीभत्स अट्टहास, वो
बामियान हो, या
उत्तर कोलकाता
मूर्ति तोड़ने
वाले
कहाँ नहीं मौजूद, हमने देखा है - -


पता तो है तुझे
कि बात जब स्पष्टीकरण पर आ जाए
तो मानो,तुम गलत हो चुके हो
कुछ भी कहना जब समय की मांग नहीं,
तो बेहतर है एक लंबी ख़ामोशी
और ख़ामोशी की प्रतिध्वनि में
अपने 'अति' का मूल्यांकन !


सुनो
ये जो कुछ रातें है न,
थोड़ी खाली सी है
आबनूसी काली सी है!

कहती है वे,
तुम्हारी यादों के
शज़र के ही
टूटी कोई डाली ही है!


पेश हैं कुछ ऐसे शब्द और बातें जो सिर्फ बिहार के लोग सही से बोल पायेंगे:-
हमलोग के यहाँ idiot नहीं "बकलोल"होता है।।

हमलोग कटने पे बोरोलीन लगाते हैं, क्यूंकि
dettol से "परपराने" लगता है।।

हमलोग जान से नहीं ना मारते हैं
"मार के मुआ देते हैं"।।

हमलोग गला दबाते नहीं
"नट्टी टीप देते हैं"।।

हमलोग awsome काम नहीं करते
"गर्दा उड़ा देते हैं"।।

अब बस
सादर

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