Saturday, August 21, 2021

737 नया अध्याय...साप्ताहिक अवलोकन

सादर नमस्कार
आज साप्ताहिक अवलोकन
आज मिली है समसामयिक रचना
ये बात 1965 के भारत - पाक  युद्ध  के समय की है.   जिसे मैंने अपने घर के बड़े    बुजुर्गों के   मुँह से कई बार  सुना  है |  हमारे  गाँव  में वायुसेना  स्टेशन है . सो युद्ध  की   आहट होते ही वहां   सुरक्षा  व्यवस्था  बढ़ा दी जाती   है   |  उस  समय  क्योंकि   संचार के साधन इतने नहीं थे ,सो  लोग बाग़ रेडियो  या अखबार के जरिये ही  युद्ध की सारी खबरें पाते थे |  सीमा पर   लड़ाई  चल रही थी |  अफवाहें भी उडती रहती थी| लोग   डर के साए में जीते थे कि कहीं   दुश्मन  एयरफोर्स स्टेशन  और गाँव  पर   बम  ना गिरा दे | लड़ाई के बीच एक सुबह पता चला कि अम्बाला के  सेंट पॉल चर्च पर पाक सेना के एक हवाई जहाज से हमला हुआ है , जिसका पायलट   पकड़ा भी गया है |   सेना द्वारा की गई पूछताछ  में   पता चला  कि वह पायलट  हमारे गाँव के   एक मुस्लिम परिवार का बेटा है .  जो   बँटवारे  के समय 1947 में   अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चला गया था | उस समय उसकी उम्र  मात्र  6-7 साल की थी |बाद में वह पढ़-लिख कर पाक वायुसेना में पायलट  बन गया और  उसने अपने मिशन के तहत भारत -पाक   युद्ध में भाग लिया ,  जहाँ वह  इस  बमबारी के बाद पकड़ा गया |
 ये भी पता चला कि वह अम्बाला  जेल में बंद है | गाँव के कुछ  लोग जो उनके परिवार के परिचित थे , उससे मिलने  अम्बाला गये और बड़ी मुश्किल से उससे मिलने में सफल हुए
ऐसा  इसलिए  हुआ  होगा  शायद  ,  बँटवारे  को  ज्यादा  दिन  नहीं  हुये  थे और लोगों  में  बिछड़े  लोगों  के  प्रति  आत्मीयता  की  उष्मा  शेष  थी। | गाँव के लोगों को देखकर वह  पाक वायु सैनिक बहुत  खुश हुआ और उसने जो बताया उसे सुनकर सभी  हैरान रह गये ! उसने बताया  कि पहले  हमारे गाँव का  एयरफोर्स स्टेशन उसके निशाने पर था.  पर उसे अपनी जन्मभूमि याद थी , सो उसने  उसकी बजाय  ऐसी जगह को निशाना बनाया जो यहाँ से  बहुत दूर थी |  क्योंकि  अम्बाला हमारे गाँव से   लगभग 25 किलोमीटर दूर  है .  सो हमारे गाँव  को  ज़रा भी नुकसान  नहीं हुआ | मिलने गये लोगों से मिलकर  बड़ी भावुकता से अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उसने .  उनके जरिये  अपने  बचपन के साथियों  और  परिचितों के साथ ,  अपनी जन्मभूमि  को भी  सलाम भेजा | |  उसके बाद   उसका कुछ पता नहीं चला | कुछ लोग कहते हैं कि उसे कुछ समय बाद छोड़ दिया गया था तो कुछ लोग कहते हैं वह  काफी  दिन जेल में बंद रहा |उस लड़ाई के बरसों बाद भी  हमारे गाँव में  .अपनी   जन्मभूमि  के उस  अनन्य प्रेमी .  गाँव के बेटे को बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है जिसने युद्ध  की विभीषिका के बीच  भी  अपनी जन्मभूमि की गरिमा को खंडित होने नहीं दिया और उसके प्रति अपना स्नेह कम होने नहीं दिया | बल्कि अपनी  साँसों की कीमत पर उसका मान बढ़ाया|

अंत में इस प्रार्थना के साथ कि मानवता को युद्ध   की विभीषिका से कभी गुजरना ना पड़े --
 दिवंगत शायर  साहिर की एक अमर नज़्म--

टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें,
कोख धरती की बांझ होती है.
फ़तह का जश्न हो या हार का सोग,
जिंदगी  मय्यतों पर रोती है.
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों,
जंग टलती रहे तो बेहतर है.
आप और हम सभी के आंगन में,
शमा जलती रहे तो बेहतर है.
-रेणुबाला

अंत में सुनिए ये गीत


 

11 comments:

  1. व्वाहहहहह
    नया अध्याय..
    आभार..
    सादर..

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  2. बहुत- बहुत आभारी हूँ आदरनीय बड़े भैया।मेरे इस पुराने संस्मरण को मंच पर सजाकर मान बढाया ,अभिभूत हूँ ! आज दुनिया में चर्चा है शान्ति और मानवतावाद की।पर कथित मानवतावादी चुप हैं! एक मार्मिक प्रश्न जिसका कोई उत्तर कभी नहीं मिल पाया कि सैनिक देश के लिए लडता है अथवा किसी मानव हठ की पूर्ति के लिए लिए युद्ध करता है??मानव हठ से भी ऊपर धर्मोन्माद ने कथित सभ्य ,सुसंस्कृत विश्व को आदिमकाल में ला खड़ा किया है।जाने कितनी बार और कितना खून बहेगा इंसानियत का?मानव हठ हो या धर्म के नाम पर उन्माद,हारती इंसानियत ही है और दोनोँ के पीछे सत्ता की असीम लालसा व्याप्त रहमे है ।मेरी रचना को यहाँ प्रस्तुत करने के लिए एक बार फिर आभार🙏🙏आजकल ब्लॉग से दूर हूँ पर आप सबने बुलाया तो आना ही पड़ा 🙏🙏😃

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  3. आज बहनों पर भी हमला होता है!

    दूर किसी कोने में मज़हब रोता है।

    मार्मिक गीत,सबको सुनना चाहिये 🤔

    सुनो जरा ओ सुनने वालो, आसमान पर नज़र घुमा लो
    एक गगन में करोडो तारे, रहते हैं हिलमिल के सारे
    कभी ना वो आपस में लड़ते,

    कभी ना देखा उनको झगड़ते
    कभी नहीं वो छुरे चलाते,

    नहीं किसी का खून बहाते
    लेकिन इस इंसान को देखो, धरती की संतान को देखो
    कितना है यह हाय कमीना, इसने लाखों का सुख छीना

    सटीक 👌👌👌🙏🙏🙏🤔

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    1. आभर रेणु बहन
      अगले सप्ताह फिर कोई ओर
      कहते हैं गांधारी का शाप फलीभूत हो रहा है
      उसके सौ पुत्रों को शकुनि ने जानबूझ कर मरवाया था,कालांतर उन सौ पुत्रों के पुत्र गांधार में बस गए, कुछ जैन धर्म और कुछ ने बौद्ध धर्म अपना लिया..
      करता हूँ खुदाई, अवशेष तो मिलेगा ही..
      पुनः आभार..

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    2. आभार सखी,
      एक अरसे के बाद एक रत्न चुना है उन्होंने
      सादर.।

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    3. जी दीदी,आपका स्नेह है बस जो एक आम संस्मरण को खास बना दिया!🙏🙏🌷🌷

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    4. बड़े भैया,इन्तजार रहेगा आपके शोध लेख का।दुखद है कि अखंड भारतवर्ष की पौराणिक और एतहासिक महत्व की सभी जगहें आतताइयों के अधीन हो गई हैं।बुद्ध ने मानवता को नई राह दिखाई पर आत्म रक्षा के ज़ज़्बे को निष्क्रिय कर दिया। जबकि शान्ति के लिए सदैव युद्ध अथवा युद्ध की क्षमता का होना जरुरी समझा गया।पर अहिंसा और मानवता के लिए जीने वाले लोगों को अशक्त समझ, अराजक तत्व सक्रिय हो सब पर हावी गये ।और एक बहन के परिवार को षडयंत्र के अधीन मिटाने वाले शकुनि का शापमुक्त होना तो प्रकृति और ईश्वर के विधान के विरुद्ध होता। क्रिया की प्रतिक्रिया संसार का नियम है।आपकी जिज्ञासा और लगन को नमन है।प्रस्तुति विशेष की प्रतीक्षा रहेगी।सादर प्रणाम और आभार 🙏💐💐💐🌹💐

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  4. 'जननी जन्मभूमि: च स्वर्गात अपि गरीयसी....' बहुत मर्मस्पर्शी लेख। आभार और बधाई!!!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏

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  5. नमन आदरणीय,
    आभार, गुज़ारिश भी
    एक आलेख अगले शनिवार के लिए
    गांधार का इतिहास..और
    देवी गांधारी का शाप
    सामग्री मैं कुछ इकट्ठा किया हूँ..
    वैसे तो आप सक्षम हैं, तक्षशिला छूट गया हमसे
    मेल करता हूँ..
    सादर नमन

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