Friday, August 20, 2021

736 ..नज़रिया बदल रहा है लेखन का..

सादर अभिवादन..
आज मोहर्रम है
आज ही मानवता के लिए इमाम हुसैन ने दी शहादत,
दो ही शब्द याद रखिए मानवता और शहादत

आज का अंक...
"उन्हें मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का संदेश भेज रही हूँ!मेरी माँ अपने भाई को राखी कभी नहीं बाँधा। पण्डित जी से राखी लेकर अपने सिंहोरा में लपेट दिया करती थीं। सुयश तुम मेरा साथ देना ...!"

"जी अवश्य दादी माँ!" सुयश ने कहा

"जब तक हुमायूं अपनी सेना लेकर मेवाड़ पहुँचे, रानी कर्णावती का जौहर हो चुका था। आज तक कन्याओं का गुहार लगाना जारी है। इस साल से मैं भी भैया को राखी नहीं बाँधूगी...!" पोती सुमन का दृढ़ निश्चयी स्वर गूँजा।

"स्त्रियों को वल्लरी बनने के नसीब को बदलकर बरगद बनना तय करना होगा...।" पोता-पोती को अपने बाँहों में समेटते हुए दादी ने कहा।


एक अद्भुत अनुभूति लिए तुम होते हो क़रीब,
हिमशैल की तरह उन पलों में
निःशब्द बहता चला जाता है मेरा अस्तित्व,
गहन नील समुद्र की तरह
क्रमशः देह प्राण से हो कर तुम,
अपने अंदर कर लेते हो अंतर्लीन,


आज किसी को कम हम आँक रहे हैं
कल हमें कोई कम आँक रहा था

आज जिनके दुख पर हम हँस रहे हैं
कल हम पर शायद कोई हँस रहा था


राजनीति के
घिनौने खेलो में से
दंगा एक है।

मानवता को
हर धर्म से बड़ा
मान लो तुम।


इस्लामी आतंक में लुटा है कश्मीर भी कभी ऐसे ही
कश्मीरी पंडित यह किस्सा दबी जुबान लाए हैं

सेक्यूलरों ने सर्वदा हैवानियत के शोलों को हवा दी है
बचा कर इन की दोजख से अपनी जान लाए हैं
.....
नज़रिया बदल रहा है
लेखन का..
नियम है जो बात नागवार गुज़रती है
वही याद रह जाती हैं बरसों
सादर


3 comments:

  1. बहुत सुंदर समयानुसार प्रस्तुति।
    सेक्यूलरों ने सर्वदा हैवानियत के ...ग़जलों के शगल में हर शे'र वक्त के खेल को बयां कर रही है।

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  2. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद

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  3. समय सन्दर्भ से जुड़ा आज का एक एक सूत्र सुंदर और संदेश देने वाला है,बहुत आभार और शुभकामनाएं आदरणीय दीदी 🙏🙏

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