Tuesday, August 17, 2021

733 ..हलाहल कंठ में लिए, करें निज जग कल्याण

सादर अभिवादन
सखी पम्मी जी स्वयं अपने से कह रही हैं कि
गुफ़्तगू
अनभिज्ञ हूँ
काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से ,
शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का,
कुछ ख्यालों और
कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ
जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....

निर्गुण,निराकार,नियंता,धारे रूप विशाल।
शिव रूपी सत् सनातनी,मुदित हुए शिवशाल।।

हलाहल कंठ में लिए, करें निज जग कल्याण।
ऊँ कारा के बोल से, करो शिवम् का ध्यान।।



छोड़ो भी..
प्रश्न के बदले प्रश्न को
लम्हो की खता वर्षो में गुज़र जाएगी..
पत्थरो को तराश कर ही बनती है,
जिन्दगी के क्या का जबाब.


तलाश रहे..
अब भ्रष्टाचार में शिष्टाचार,
न कर प्रश्न जम्हूरियत पर
सब है कुर्सी के आस - पास ,
हो दौर किसी का भी
रहबर -ए-कौम तो थे आप,
कर रहे है हम गुजर,
बचे खुचे नम निवाले से,
घटा क्या बढ़ा क्या
इक़्तेदार के ख़जाने में बस

व्यथा भरी विरह वेदना से
आश की चादर बुन रही,
अश्रुपूरित दृगों से
जीवन की जिजीविषा गुन रही
अब तो समझों.. है न..
एक अभिशाप सी ये निर्धनता।


हादसों के फ़लसफ़े केवल हमीं तक तो नहीं
आज़माने के हुनर से, हाँ.. निगहबाँ हूँ अभी,

मूझसे रूठा हुआ है आसमाँ.. मेरा ज़मीं
आस की शम्मा जलाकर अब फ़िरोजाँ हूँ अभी।


नव भोर की आश से
स्वर्णी तारे गुथ रही

खिल रही निलांजना
धुंध ऊर्मि मुखर रही

मौन सी अभिव्यंजना
कागज पर बिखर रही
....
उपरोक्त रचनाएं सखी पम्मी जी को ब्लॉग से हैं
शाबाशी सारी उनके खीसे में
और गलियाँ मेरे डस्टबिन में
सादर

11 comments:

  1. मुखरित मौन में अपनी पोस्ट देखकर मन प्रफुल्लित हो गया। कमाल..कमाल कमाल हैं आप दी कि शाबाशी सारी उनके खीसे और ग...।
    पुरानी रचनाओं को संलग्न कर मानों पुनः पंख मिल गया। हार्दिक आभार💐 हम जैसों की
    जन मन की यहीं मधु गीत है
    यही प्रणय की रीत है
    शब्दों का ही संगीत है।



    ReplyDelete
  2. पसंद आया..
    शेयर कीजिए
    सादर..

    ReplyDelete
  3. पम्मीजी की रचनायें हमारे लिए न केवल साहित्यिक महत्व की हैं, बल्कि एक महत् शैक्षणिक अनुष्ठान भी हैं। बहुत सीखा है उनसे। उनकी उर्दू की मिठास हमें हमेशा एक लाजवाब अहसास से लबरेज़ करती रही हैं। इनकी रचनाओं से रुबरु होना एक अद्भुत आह्लाद का विषय है। हमारी ख़ुद की ब्लॉग यात्रा में इनके प्रोत्साहन को कभी विस्मृत नहीं कर सकते हम। इनकी रचना-यात्रा यूँ ही अनवरत चलती रहे और माँ भारती की अनुकंपा इन पर बनी रहे। इतनी सुंदर रचनाओं की प्रस्तुति का आभार और बधाई भी!

    ReplyDelete
  4. इतनी बड़ी बात आपने कह दी। प्रोत्साहित करती शब्दावलियों के हृदय से आभार।

    ReplyDelete
  5. सुंदर प्रस्तुति. आभार

    ReplyDelete
  6. यद्यपि आजकल ब्लॉग से दूर हूँ पर फेसबुक पर पम्मी जी की रचनाओं से सजी इस सुंदर प्रस्तुति को देखकर , इस पर लिखने से खुद को रोक ना पायी | ब्लॉग जगत में पम्मी जी की रचनाओं में उर्दू की मिठास है तो हिंदी की सुंदर काव्यात्मकता है | चर्चाकार , रचनाकार और एक पाठक के रूप में भी उनकी उपस्थिति सदैव गरिमामयी रही है | आज की भावपूर्ण रचनाओं में जीवंत शब्द चित्र भी है तो मन को छूने वाले शेर भी हैं | पम्मी जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं| माँ सरस्वती की कृपा आप की लेखनी पर बनी रहे पम्मी जी | सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार यशोदा दीदी |

    ReplyDelete
  7. व्यथा भरी विरह वेदना से

    आश की चादर बुन रही,

    अश्रुपूरित दृगों से

    जीवन की जिजीविषा गुन रही

    अब तो समझों.. है न..

    एक अभिशाप सी ये निर्धनता।

    ReplyDelete
  8. पम्मी जी की सुंदर,सुमधुर रचनाओं का संकलन, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete