Wednesday, August 11, 2021

727 ..ओ मेरी ज़ोहराजबीं, तुझे मालूम नहीं

सादर अभिवादन
आज एक ही ब्लॉग की अंतिम प्रस्तुति
वज़ह जो भी हो ...
कल से नियमित प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन स्टाईल में

आज सुबोध भाई की रचनाएँ.....

ज्वलंत समस्या दिवस ...
" इसीलिए तो दीदी हम .. कभी भी किसी समस्या पर लिखते ही नहीं। हमेशा प्राकृतिक सुन्दरता को लेकर शब्द-चित्र बनाते हैं। अरे दीदी, आप ठीक ही कह रही हैं, कि समस्या को दूर करने के लिए सरकार तो हैं ही ना ! फिर भगवान भी तो हैं ही ना दीदी ! बुजुर्गों की बात को आज कल हम नए फैशन में भुलते जा रहे हैं, कि - होइए वही जो राम रचि राखा। है कि नहीं ? "- यह शालिनी श्रीवास्तव जी बोल रही है। बोलते-बोलते कई दफ़ा उनकी जीभ, उनके होठों पर पुते 'लिपस्टिक' की परतों को मानों किसी राजमिस्त्री की "करनी" की तरह स्पर्श कर-कर के उसे अपनी जगह पर जमे रहने के आश्वासन देने का काम कर रही है।



यूँ तो
इक बग़ल में
मेरी सोयी होगी
अर्धांगिनी
हमारी,
हाँ .. मेरी धर्मपत्नी ..
तुम्हारी सौत।
फिर भी ..
दूसरी बग़ल में
पास हमारे
तुम सट कर
सो जाना,
लगा कर
मुझे गले
ऐ !!! मेरी प्यारी-प्यारी .. मौत .. बस यूँ ही ...


ख़त्म होते ही एक लिट्टी, दरवाज़े पर 'कॉलबेल' बजी ...
" ओ मेरी ज़ोहराजबीं, तुझे मालूम नहीं ... "
गैस का 'नॉब' उल्टा घुमा कर रामरती चच्ची दौड़ीं
उधर से रुखसाना भाभीजान का दिया हुआ
लिए हुए लौटीं एक तश्तरी में बादाम फिरनी
जो था क्रोशिए वाले रुमाल से ढका हुआ
अब भला कब थे मानने वाले ये 'डायबीटिक' चच्चा
अब एक लिट्टी भले ही कम खायेंगे


और वो किसी
संभ्रांत परिवार की
रसोईघर में जलने वाले
दिनचर्या के अनुसार
नियत समय या समय-समय पर
पर जलती दोनों ही हैं
हम वेश्याएँ और ब्याहताएँ भी
ठीक किसी जलते-सुलगते
चूल्हे की तरह ही तो साहिब !



तय करता हुआ, डग भरता हुआ जब अपने जीवन का सफ़र
बचपन के चौखट से निकल चला मैं किशोरावस्था की डगर
तुम्हारे प्यार की गंग-धार कुछ लम्हें ही सही .. ना कि उम्र भर
जाने या अन्जाने पता नहीं .. पर हाँ .. मिली ही तो थी मगर
अनायास मन मेरा बन बैठा था बनारसिया चौरासी घाट मचल ...


परम्पराएं हैं शायद सदियों से बनाई पुरखों की
कहते हैं सुसभ्य, सुसंस्कारी, अधिकारी भी सारे
भईया! इसको तो कर्ज़ लेकर भी निभानी पड़ेगी
होते ही हैं सभी बुद्धिजीवी भी हर बार शामिल
क़ीमती लिबासों में बन कर इनमें बाराती
टूटते क़ानूनों के साथ है सभ्यता बेबस कसमसाती
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...

....
कार्यक्रम एक ही ब्लॉग का आज अंतिम दिन
कल से कोशिश रहेगी कि प्रस्तुति नियमित हो
 एक शीर्षक पंक्ति में लिंक यथा संभव एक चित्र
और एक प्रख्यात/कुख्यात रचनाकार की एक ही रचना
कुल मिलाकर लिंक के पाँच शीर्षक और एक रचना
यदि कोई रचना का लिंक देना चाहे तो
संपर्क फार्म के माध्यम से दे करता हैै
कोई पुराना/नया चर्चाकार
(पाँच लिंकों का आनन्द के अलावा)
शामिल होना चाहें तो स्वागत है
सादर..




20 comments:

  1. जी ! यशोदा बहन .. नमन संग आभार आपका .. आज पटना की उमस भरी गर्मी में, अपने प्यार (हम पर नहीं, मेरी बतकहियों पर) झमाझम बरसाने के लिए .. वो भी किसी भोज के आख़िरी में मिठाईयों और आइसक्रीमों के परोसने की तरह ही, आज के अपने "सांध्य मुखरित मौन" की "एक ही ब्लॉग" वाली श्रृंखला के आख़िरी दिन आज मेरी कई सारी नयी और पुरानी बतकहियों को परोसा है आपने ... पुनः मन से आभार आपका और दिग्विजय भाई साहब का .. बस यूँ ही ... 🙏🙏🙏

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    1. मैं तो सोची थी आप नहीं आएंगे..
      दो रोज से पाठकों का जमावड़ा कम है,
      आखिर ऊब भी तो कोई चीज होती है..
      कल परिवर्तन कर रहें हैं..
      आपसे एक गुज़ारिश है एक आभजरभेसन चाहिए
      नमूना दे रही हूँ, सलिल जी का है..
      सादर..

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    2. आप भी कितनी भोली हैं यशोदा बहन .. अब घर के फ़्रिज में अगर 'थम्स अप', 'कोका कोला' आउर 'लिम्का-फेंटा' का 'चिल्ड' बोतलवा भरा रहेगा, तअ कद्दू आउर कड़इला के रस निकाल के, के अपना मुँहवा का सुआद के बिगाड़ेगा .. समझीं कि नहीं ! .. आ अगर केहू मेहमानों के शिकंजी आउर लस्सी चाहे रूह आफ़ज़ा आ 'ड्राई फ्रूट' डालल ठंडई बना के पीलावेगा, है कि नहीं ... अरे ! आज तो आपका आउरो रिकॉर्ड ब्रेक हो गया यशोदा बहन,आज खाली आप ही आउर हम खाली बइठल हैं .. दिग्विजय भाई साहब भी शायद कहीं काँवर के बेबस्था में लगल हैं। अब आप ही सोचिये ना अभी सावन का महीना चल रहा है .. जेतना मुर्गा, मछरी, खँसी, अंडा भकोसे वाला भक्त - भक्तिन लोग है, सब संकर भगवान् के लिंग पर जल ढारे में आउर उ पत्थर के नंदी के कान में फुस्फुसावे में लोग व्यस्त है , आखिर सुहाग के ज़िनगी के बात है .. अभी बहिन लोग भाई के राखी बांध के कौनो क़ीमती 'गिफ़्ट' ला मुँह फाड़ले बइठल शिव भजन गा रहीं हैं आउर ओने भाई-भौजाई अपन जेभी टटोल कर हलकान, परेसान हैं कि अबरी बहिन के का दिया जाए, ताकि ओकर ससुराल में थू, थू ना होवे ..
      सब लोग सावन के पावन महीना में सुध साकाहारी बन के व्रत-उपवास में एकदमे से व्यस्त हैं। अभिये से दिन अंगुरी पर गिना रहा हैं कि कब 22 तारीख़ बीत के जल्दी से 23 तारीख़ आवे कि गरम गरम मुर्गा के झोर आउर भात सपर सपर खाए ला, कसाई के दुकान पर भोरे से 23 तारीख़ के भेड़ियाधसान भीड़ में धक्का खा के मुर्गा आ चाहे खंसी के मीट लाबल जाए। अभियो तअ 12 -13 दिन बाँकी है। आउर संकर जी के किरपा से उ दिनो बढ़िया है, सोमवार। ससुरा, मंगर आ चाहे बीफे आ सनीचर पड़ जाता तअ एक दिन आउर मन के मसुआ के रखे पड़ता .. सब लोग एतना परेशान हैं, हलकान हैं .. आउर आप इ हँसुआ के बिआह में खुरपा के गीत गावे ला हमरा बतकही के आज परस्तुत कर के तअ ... आउर अपना पाठक/पाठकईन सभे के जमावड़ा के बैंड बजवा लिए ... कौनो सावनी गीत, सिब चालीसा, भईया-दीदी वाला गाना आ चाहे ग़ज़ल उजल वाला लिंक लगाने से जमावड़ा बढ़े के चानस बढ़ जाता है .. शायद ...😀😀😀😀😀
      संगीता जी के भाषा में मेरे थोड़का लिखलका के जादे समझ लीजिएगा .. अइसहीं (बस यूँ ही ...) ...

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  2. ई देखिएगा..
    सलिल जी हैं
    कभी-कभार ब्लॉग बुलेटिन में आते थे
    उनका आलेख..
    असली मजा सब के साथ आता है – ई बात भले सोनी-सब टीवी का टैगलाइन है, बाकी बात एकदम सच है. परब-त्यौहार, दुख तकलीफ, सादी-बिआह, छट्ठी-मुँड़ना ई सब सामाजिक अबसर होता है, जब सबलोग एक जगह एकट्ठा होता है. घर-परिबार, हित-नाता, भाई-भतीजा, नैहर-ससुराल... जब सब लोग मिलता है, मिलकर आसीर्बाद देता है, तब जाकर बुझाता है कि अनुस्ठान पूरा हुआ. सायद एही से लोगबाग कह गए हैं कि खुसी बाँटने से बढ़ता है. आप लोग को बुलाते हैं, त आपको भी बुलाया जाता है अऊर एही परम्परा चलता रहता है. कोई छूट न जाए ई बात का बहुत ख्याल रखा जाता है. केतना रिस्तेदारी अइसा होता है जहाँ न्यौता देने के लिये खुद जाना पड़ता है.

    मगर अब जमाना ऐड्भांस हो गया है.. एकदम हाई-टेक. आजकल त सादी बिआह का न्यौता भी व्हाट्स ऐप्प पर दे दिया जाता है. एगो हमरे दोस्त गुसिया गये ऑफिस में एगो स्टाफ के ऊपर कि ऊ उनके घर बेटा के जनम दिन में काहे नहीं गया. बेचारा बोला भी कि उसको इनभाइट कहाँ किया गया था. पता चला कि इंभिटेसन व्हाट्स ऐप्प पर भेजा गया था अऊर अगिला बेचारा ई समझा कि भोरे-भोरे भेजा जाने वाला गुड मॉर्निंग टाइप का मेसेज होगा जिसके किस्मत में पढ़ने से ज्यादा फॉरवर्ड होना लिखा होता है. हमको त अपना कलकत्ता का दिन याद आ जाता है जहाँ सादी बिआह के न्यौता में खास तौर पर लिखा होता था - हम व्यक्तिगत रूप से आपके समक्ष उपस्थित होकर आपको निमंत्रण नहीं दे सके, इसके लिये क्षमा-प्रार्थी हैं.

    लोग कहता है कि टेकनोलॉजी दुनिया को जोड़ता है, कोई किसी से दूर नहीं है, सबलोग “जस्ट अ क्लिक अवे” है. मगर ई टेकनोलॉजी का जरूरत सायद एही से बढ़ गया है कि सबलोग दूर हो गया है. रिस्ता अऊर सम्बंध सुबह का गुड मॉर्निंग से सुरू होकर स्वीट-ड्रीम्स पर खतम हो जाता है. सारा दिन फॉरवर्ड किया हुआ चुट्कुला, ज्ञान का बात अऊर बिदेसी वीडियो, चाहे राजनीति में इसका कमीज उसका कमीज से सफेद कैसे के संदेस से भरा रहता है.

    छुट्टी में कभी पटना गये त अपना कोई दोस्त नहीं देखाई देता है, ऊ रिस्तेदार लोग भी नहीं देखाई देते हैं जिनके बिना त्यौहार त्यौहार नहीं लगता था. हो सकता है एही बात ऊ लोग भी महसूस करते होंगे. केतना लोग हमसे सिकायत किये कि हम उनके कोई समारोह में सामिल नहीं हुए. माथा नवाकर उनसे माफी माँगकर चुप हो जाते हैं. नौकरी का मजबूरी अऊर तरक्की के साथ मिलने वाला अभिसाप त भोगना ही पड़ता है.

    आज एतना दिन के बाद जब अपना ब्लॉग पर आए, त ब्लॉग भी हमको लॉग-इन करने नहीं दे रहा था. बहुत समझाए बुझाए तब जाकर हमको अंदर आने दिया. अंदर जाकर देखे त लगबे नहीं किया कि हमरा अपना घर है. सबकुछ बदला हुआ, गोड़ थरथरा रहा था अऊर आवाज काँप रहा था. एक साथ नौ साल पुराना लोग का तस्वीर दीवार पर देखाई देने लगा, सबका बात सुनाई देने लगा, बिछड़ा हुआ लोग याद आने लगा. ई बात नहीं है कि लोग बदल गया है, लोग आज भी ओही हैं, ऊ लोग से सम्बंध भी ओही है, लेकिन ऊ जगह जहाँ प्रेम से बइठकर बतियाते थे, ऊ जगह बदल गया.

    कोसिस फिर से लौट आने का है... देखें केतना निबाह हो पाता है.
    आज हमारे ब्लॉग का जनमदिन है भाई!!

    फिलहाल त बड़े भाई रविंद्र शर्मा जी का सायरी दिमाग में आ रहा है:

    बिना वजह किसे मंज़ूर घर से दूरियाँ होंगी
    शजर से टूटते पत्तों की कुछ मजबूरियाँ होंगी

    प्रस्तुतकर्ता चला बिहारी ब्लॉगर बननेपर 1:47 pm
    लेबल: चला बिहारी, याद, सलिल वर्मा, Salil Varma

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    1. पहले आप से समझ लेते हैं ...

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    2. सुबोध जी,आपके पाठकों में हमारे जैसे गृहस्थी के सब काम समेट कर रात देर में ऑनलाइन होने वाले लेट लतीफ़ पाठक भी हैं अत इतनी जल्दी किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचना ठीक नहीं।अपने आप को कम मत समझे!🙏🙏

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    3. जी नहीं ! वो तो यशोदा बहन के साथ थोड़ी बहुत चुहलबाजी कर रहा था .. वैसे भी पुरख़े कह गए हैं कि जल्दी का काम शैतान का होता है .. और .. सबसे पहले तो आप स्वयं को "पाठिका" कहना शुरू कीजिए .. रही बात, कम या ज्यादा की, तो इनका क्या करना रेणु जी .. आज ना कल तो मिट्टी ही होना है सभी को .. शायद ...

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    4. एकदम 😃जी वो मैने बहूवचन मेँ लिखा था 😃🙏

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  3. सुबोध सर के असाहित्यक विचारों की दुनिया इस मंच पर सुसज्जित देखकर बहुत अच्छा लग रहा...।
    ऐसे रचनाकार जो सदैव समाजिक बदलाव वाला बड़कावाला टोकरा उठाये धर्म, जाति,समुदाय से फैलकर चिपके गहरे जिद्दी दाग वाले कचड़े को खखोरने के क्रम में झाड़ू के नुकीले रेशे आते-जाते लोगों को अनचाहे ही चोट पहुँचा देते हैं और लोग कभी कंधे हाथ धरकर उनके कार्यों की सराहना करते हैं,कुछ सहमति जताते हैं और कुछ लोग कभी गुस्से से बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ जाते हैं।
    तन्मयता से पूरे शुद्ध मन से अपने वैचारिकी कर्म की पूजा करते समर्पित नास्तिक का बैच लगाये व्यक्ति को
    उनके सतत् सुधार के प्रयास के उपहारस्वरूप या कह लें
    सामान्य समय से आगे की सोच रखने के दंड स्वरूप पाठकों से मिलने वाले अनदेखेपन को सहज स्वीकार करना क्या सचमुच सहज होगा?
    नीम,करेला,कुनैन की गोली बहुत सारी कड़वी स्वाद वाली,काँटे चुभाती अलग वैचारिकी बुनावट से बनी रचनाएँ,आपकी सोच सबसे अलग है जो निश्चित सहमत-असहमत पाठकों को एक बार सोचने पर मजबूर करती हुई अपना प्रभाव छोड़ती हैं।
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ सदैव है आपके लिए।
    सादर।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. एतना परसनसा सुन के मन जुड़ा गिआ आउर यशोदा बहन के पाठकों (फ़िलहाल तो पाठिकाओं) के जमावड़ा में बिरधी भी हो गिआ है .. बस यूँ ही ...
      एगो बात बोलें .. 'स्ट्रीट फ़ूड' को ना तो 'साइन बोर्ड' की जरूरत होती है आउर ना कौनो 'ब्रांडिंग', चाहे फ़्रिज की। रोड किनारे के आम के पेड़ के फरल आम के भी कौनो मार्केटिंग के जरूरत नहीं पड़ता है, जे एगो ढेला-पत्थर मारा , उहे टिकौला, आम चिख लिया। एही से हम "सर्वाधिकार सुरक्षित" और © - Copyright Reserve का 'टैग' कबहु नहीं लगाते हैं, इसका एगो आउर कारण है, उ जल्द ही अपनी बतकही वाले आलेख के मार्फ़त से बकेंगे .. आज यशोदा बहन सलिल जी को पढ़वा कर जुबाने बदल दीं हैं हमरा तो .. शायद ...

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  4. प्रिय दीदी,सुबोध जी की रचनाओं को आज इस मंच पर देखकर बहुत अच्छा लग रहा है।सुबोध जी को शुरु से ही पढ़ रही हूँ।उनके लेखन का सटीक विशलेषण हमारी छोटी बहन श्वेता कर चुकी। मैं भी इतना कहना चाहूंगी उनके लेखन की संवेदनशीलता से इंकार नहीं किया जा सकता !उनके लेखों के विषय बहुत ही झझकोरने वाले होते हैं।पिछ्ले दिनों उनके कुछ बहुत ही रोचक और विचारणीय लेख पढे जिनमें से कुछ पर समयाभाव के चलते प्रतिक्रिय संभव नहीं सकी,जिसका खेद रहा।कविताओं में उनके अपने बिम्ब हैं और अपने विधान! मौलिक प्रतीक सुबोध जी को औरों से अलग करते हैं।एक लेखक के साथ एक उत्तम अभिनेता भी हैं।बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी सुबोध जी को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार हो।उनकी लेखनी के निर्बाध प्रवाह की कामना करती हूँ।सादर!🙏🙏

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. इतनी तारीफों के बाद तो निश्चित रूप से कल सुबह ग्लूकोमीटर शुगर लेबल बढ़ा हुआ बतलाने वाला है .. शायद ...
      वैसे ये सब कुछ भी नहीं, आप सबों की ज़र्रानवाज़ी भर है, 🙏🙏 वर्ना कुछ भी तो नहीं है, बस मन के कुछ ऐहसास, कुछ भंडास हैं जो बतकही के शक़्ल में आ जाते हैं, बाकी क़ुदरत के मेहर हैं .. बस यूँ ही ...🙏🙏🙏

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  5. सुबोध जी की विविधता पूर्ण रचनाओं से सजा आज का संकलन तथा रोचक चिप्पणियों ने "मुखरित मौन" को और मुखर बना दिया,आंचलिक भाषा की सोंधी खुशबू ने भोर में सुंदर किरणें बिखेरने का काम किया,सुबोध जी की रचनाओं में विषय की पकड़ जड़ तक होती है, जो रचना को जीवंत कर देती है,मेरी सुबोध जी को हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई,यशोदा दीदी को सादर नमन। "चिप्पणियो" के लिए क्षमा🙏🙏

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. आपकी "चिप्पणी" और शुभकामनाओं के लिए .. और आपको क्षमा भी नहीं किया जाएगा, बल्कि सजा मिलेगी, क्योंकि आपने मात्र एक एकवचन में "चिप्पणी" चिपका कर, उसे बहुवचन में "चिप्पणियों" कह कर यशोदा जी को ठगा है .. आपके विरुद्ध "सांध्य मुखरित मौन" के थाने में FIR दर्ज़ की जायेगी .. बस यूँ ही ...

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  6. विविधता से भरपूर सुबोध जी की प्रस्तुति यों अक्सर पड़ा है समाज का दर्पण होती हैं सुबोध जी की रचनाएं ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ..मेरी बतकही को रचना का दर्ज़ा देने के लिए .. बस यूँ ही ...

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  7. यशोदा दी, सुबोध भाई की रचनाए मैं पढ़ती रहती हूं। उनकी रचनाए समयानुकूल, सोचने को विवश करने वाली और बिल्कुल हलके फुल्के अंदाज में कही गई होती है। मैं ने अभी अभी उनकी ज्वलंत समस्या दिवस पढ़ी। बहुत ही चुटीले अंदाज की रचना।

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    1. जी ! ज्योति बहन, नमन संग आभार आपका .. मेरे (मेरी बतकही के) लिए आपकी सकारात्मक समीक्षा, एक ज़र्रानवाज़ी भर है .. शायद ...

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  8. "सात समद की मसी करौ, लेखनी सब बरनाइ।
    धरती सब कागद करौ, 'सुबोध' बोध लिखा न जाईं।"
    बस इतना ही!!!!
    इस विराट व्यक्तित्व को सादर प्रणाम और भविष्य की शुभकामनाएँ!!! विलम्ब के लिए खेद!!!

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    1. जी ! विश्वमोहन जी, नमन संग आभार आपका .. आपके पद का तो पता है, पर उम्र की जानकारी नहीं है, फिर भी हमने आपको बिंदास नाम से सम्बोधित करने की ज़ुर्रत की है 🙏🙏🙏
      आपने दोहे में बहुत बड़ी बात कह दी है .. अतिशयोक्ति वाली लग रही .. शायद ...🤔🤔🤔
      आपकी शुभकामनाएं तो स्वीकार्य है, पर प्रणाम कदापि नहीं .. फिर कभी मुलाक़ात हुई और .. अगर आपको ऐतराज ना हो, तो हमलोग गले मिलेंगे .. बस यूँ ही ...
      और हाँ .. खेद जैसी कोई बात नहीं .. आप आये, यही बहुत है .. शायद ...

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