सादर अभिवादन
चौबीस दिन परवरी के
आज के अखबार में पढ़ी कि कोरोना
फिर से आ रहा है
छत्तीसगढ़ शासन ने कहा है
यदि कोई बाहर बगैर मास्क दिखा तो
चालान होगा और
10 घंटे की जेल होगी
दहशत तो है
खैर..
होइहैं वही जो राम रचि राखा
हमारे भारत में भगवान भी रहते हैं
आइए रचनाएं देखें..
गेसुओं में खिले गुलाब तरोताज़ा थे
उन हांथों के स्पर्श से
भोर में जो रख देते थे माथे पर एक मीठा चुम्बन,
उसने नहीं देखा था सुबह का सूरज कभी,
माँ के चरणों से छनती स्नेह-धूप
हजार सूरजों पर भारी थी...
तारों ने बिसात उठा ली, असर अब गहरा होगा ।
।
फक़त खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा।
मुसलसल बह गया तो, समन्दर लहरा होगा ।
हे इमली के पेड़
तुम्हारे स्वभाव में
इतनी खटास क्यूँ ?
क्या तुम कभी
मीठे हुए ही नहीं |
पिता, तुम्हें याद है न,
कौए मुझे कितने नापसंद थे,
सख़्त नफ़रत थी मुझे
उनकी काँव-काँव से,
उनका मुंडेर पर आकर बैठना
बिल्कुल नहीं सुहाता था मुझे,
उड़ा देता था मैं उन्हें
तरह-तरह के उपाय करके.
1970 में आयी किशोर साहू जी की फ़िल्म -
'पुष्पांजलि' का वो गाना , जिसे आनंद बक्षी साहब ने लिखा था ,
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी ने संगीतबद्ध किया था और
मुकेश जी ने गाया था ; की आवाज़ बेसाख्ता
कानों में गूँजने लगती है .. शायद ..
अब बस
सादर
सादर
सुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल की. आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरी रचना की पंक्तियों को सम्मान देकर शीर्षक्रम पर रखा इसके लिए मैं हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूं।
सुंदर लिंक सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सादर