Monday, February 1, 2021

618 ...मगर तुमहरे पास रहै, और तुम झूठ बोली

सादर वन्दे

तहज़ीब में उनकी,
क्या खूब अदा थी
नमक भी अदा किया तो,
ज़ख़्मों में लगाकर

अब रचनाए देखें

सर्दी की रात
ठिठका सा कोहरा
ठिठुरा गात

कोई दे जाता
चाय का एक प्याला
ज़रा सी बात


यह प्रेम पत्र ही था जो
असफल प्रेमी को
सफल शायर बना दिया करता था
वरना...
प्रेम की इतनी मजाल कि ...
टूटे दिल का मुशायरा कर ले।।


चाँद तारे सूरज धरती अम्बर पानी
सब थे हैं और रहेंगे
जीवन के आने-जाने का क्रम भी
यूँ हीं चलता रहा है और रहेगा
अपनों से मिलने से लेकर
उनसे बिछड़ने की पीड़ा
हर किसी को जीवन में
सहनी पड़ती है और
यही इस जीवन का परम सत्य है


घिसी हथेली की रेखाएं
जाने कहां-कहां ले जाएं।

घर के बाहर
सिर के ऊपर
सूरज बिना तपन
अंगुल-अंगुल
उभर गया अब
मन का सूनापन

अपनेपन का दाग़ दिखा कर
रिश्ते किरच हो जाएं।


संकट चौथ ...
अब जब सुबह जेठानी उठी, तो पैर धरते ही फिसल के गिर पडी,
अब तो जो उठे वही फिसल फिसल गिरे। सारी घर में
दुर्गंध भरी थी। किसी तरह सफाई करते कराती,
गुस्से से आग बबूला होती पहुंची देवरानी के घर और बोली-
काहे रे हमका सब उल्टा उल्टा बताई रहो।
सारे घर मा नरक हुई रहा है।

तब देवरानी ने नम्रता से कहा-
जिज्जी, हम तो सब सच ही बताया रहै,
मगर हमै पास तो कुछ रहिबै नाही,
मगर तुमहरे पास रहै, और तुम झूठ बोली,
अब सकठ माता से का छुपा है।
.....
आज बस
कल दीदी का उपवास था
लस्त है दीदी आज
शाम तक मस्त हो जाएगी
सादर


 

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया...
    सादर..

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. सुन्दर एवं रोचक प्रकाशन के लिए हार्दिक शुभकामनायें दिव्या जी..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..

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  4. शानदार अंक..
    सादर..

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति

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