सादर अभिवादन...
ऋतु संधि का असर
बड़ा गहरी होती है
आलस, और कुछ अलग सी
गुदगुदाहट होती है मन में
खैर जो भी हो..
आइए रचनाएँ देखें...
फूल भर वसंत, देह फागुनी हुई।
पंखुराई प्यास, आस दरपनी हुई।
सिर्फ़ एक नाम बार-बार होंठ पर
सिर्फ़ एक चाह बढ़ी, सौ गुनी हुई।
धूप-धूप सूरज, दिन सुनहरे हुए
यादों का चांद, रात चांदनी हुई।
रोकती रही, ये कशमकश,
कर गई, कुछ विवश,
छीन चला,
इस मन का वश,
पर रहा खुला, ये मन का द्वार,
सोचता हूँ,
इक सत्य को, गर न यूँ नकारता,
वैश्याओं के दहलीज पर
क्या किसी ने कभी प्रेम निवेदन रखा होगा
क्या उसके देह का नमक चखते समय
उसके मन के घाव गिने होंगे
क्या कभी कोठें के दरवाजे से निकलकर
कोई औरत घर तक पहुंची होगी
कोई राँझा-हीर तो कोई राधा रानी लिखता है
लिखने वाला अपने मन की प्रेम कहानी लिखता है
मीरा को भी सबने देखा अपनी-अपनी नज़रों से
कोई कहता जोगन कोई प्रेम दीवानी लिखता है
सांझ से बतियाते
तिनके देखे और सुने हैं तुमने...
मैंने सुना है...
जाते सूर्य को
ऊंची घास के
सिर पर बैठ देखते हैं...।
तिनकों का समाज
पैरों तले रौंदा जाता है
लेकिन चीखता नहीं है,
शोर भी नहीं मचाता,
विरह की उष्मा
पिघलाती है बर्फ़
पलकों से बूँद-बूँद
टपकती है वेदना
भिंगाती है धरती की कोख
सोये बीज सींचे जाते हैं,
....
बस
कल की कल देखेंगे
सादर
बस
कल की कल देखेंगे
सादर
प्रिय यशोदा अग्रवाल जी,
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंक संयोजन...
मेरी ग़ज़ल को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
आशा है कि अब आप पूर्ण स्वस्थ होंगी। सदैव स्वस्थ रहें, ख़ुश रहें...इस ब्लॉग पर आपका श्रम स्तुत्य है। हम सभी ब्लॉगर्स को इसी तरह जोड़े रखें। मेरी असीम शुभकामनाएं सदैव आपके लिए,
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत रोचक सामग्रियों की प्रस्तुति कज लिए यशोदा जी आपको साधुवाद 🌹🙏🌹
ReplyDeleteबहुत आभार आपका मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं का संकलन..आपको बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं..
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