Monday, February 22, 2021

639 ...दुनिया को समझने के लिए जानने के लिए जिंदगी ही काफी है

सादर अभिवादन
2222021
अगले वर्ष आज के दिन
उपरोक्त संख्या  बदली हुई दिक्खेगी
अब
अपने खेत में भी
अपना ही
अनाज उगाना
जैसे
कोई गुनाह होते जा रहा है

जिसे देखो
जोर लगा कर पूछते हुऎ
जरा भी
नहीं शरमा रहा है 
हड़ताल व
दंगे किए जा रहा है
और फ्री मे
लंगर खा रहा है
दाढ़ी वाला
तेल और
तेल की धार
देख रहा है

......अब रचनाएँ देखें

जीवन से सारे संबंध धीरे-धीरे वि‍लग क्‍यों होते जाते हैं ?
अलग होने पर ही नए पत्‍ते आते हैं। शायद एक दि‍न मैं भी...
तुम पत्‍ता नहीं हो मेरे लि‍ए !
तो क्‍या हूं ?


हिमयुग का अंत हो न हो, बसंत दिलों
में रहे हमेशा बरक़रार, न जाने क्या
ढूंढती हैं, नीलाकाश की ओर,
चिनार की वो टहनियां
नोकदार, शीत -
निद्रा के
भंग होते ही उभर आते हैं अनगिनत
झिलमिलाते हुए, अवशिष्ट
तुषार कणिका, शायद
उन्हें है किसी
अलौकिक
पलों
का इंतज़ार,


दोराहे पर खड़ा राहगीर
सोच रहा
कदम किधर बढायें
मौन को कैसे साधें
विकट समय है
निर्णयन की घड़ी है
वरदान या अभिशाप


मुक्कमल जहां किसी को
मिलता नही
न मिले न सही
कोई बात नही ,
दुनिया को समझने के लिए
जानने के लिए
जिंदगी ही काफी है
यहाँ जिंदगी ही बहुत कुछ
दे देती है हमें
ये भी कम नहीं ,
ये जिंदगी ही
सही सलामत रहे
बहुत है कही ।
...
सादर


5 comments:

  1. आभार। संगत का कुछ असर तो होगा ही ।

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  2. सुंदर रचनाओ का संग्रह है , सभी रचनाकारों को बधाई हो, आपका हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यबाद यशोदा जी सादर नमन

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  3. सुंदर रचनाओ का संग्रह है , सभी रचनाकारों को बधाई हो, आपका हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यबाद यशोदा जी सादर नमन

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  4. सुंदर रचनाओ का संग्रह है , सभी रचनाकारों को बधाई हो, आपका हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यबाद यशोदा जी सादर नमन

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  5. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन , मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।

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