सादर अभिवादन
कल दिव्या ने सही लिक्खा
शान्त सा है फरवरी
पर अन्दाजा नहीं न है उसे
ये तूफां से पहले की शान्ति है
खैर जो है सो...
रचनाएँ देखें..
तन को पुकारती बूंदें
मन से गुजरती रागिनी
नयन की अनबुझ प्यास
कर्णप्रिय ये मधुर नाद
प्रतीत होता मुझे हृदयवास..
मरुथल में
एक फूल खिला
कैक्टस का ,
तपते रेगिस्तान में
दूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष !
हो गए निष्प्राण रिश्ते, गुम हुआ अपनत्व भी
कोबरा से भी विषैला, स्वार्थपरता का ज़हर
खाईयां इतनी खुदी हैं दो दिलों के बीच में
अब नहीं आता मुझे पहचान में मेरा शहर
श्रृंगार बन सका तेरा, उद्गार ले लो,
इन साँसों का, उपहार ले लो,
इक निर्धन, और दे पाऊँ भी क्या,
मैं, याचक हूँ तेरा ही!
बसंत फिर आया तो है !
पर यह कैसा हो गया है,
सुस्त, मलिन सा !
जर्जर सी काया !
कांतिहीन चेहरा !
मुखमण्डल पर विषाद की छाया !
पहले कैसे इसके
आगमन की सूचना भर से
प्रेम-प्यार, हास-परिहास,
मौज-मस्ती, व्यंग्य-विनोद का
वातावरण बन जाता था !
प्रेम स्वीकृति चाहता है,
अंदर की सत्ता का
चाहे वो जैसा भी हो,
क्योंकि उस भीतर की सुंदरता में ही रहता है,
परम सत्य का वास,
बाह्य खोल समय के साथ
अपनी मौलिकता खो देता है,
...
आज बस
सादर
आज बस
सादर
शुभ सन्ध्या
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन
प्रिय यशोदा जी,
ReplyDeleteसच कहा आपने .... तूफान से पहले की शांति आशंकित करती ही है। बहुत अच्छे लिंक्स संजोए हैं आपने... मेरी पोस्ट को भी शामिल किया है। हार्दिक आभार आपके प्रति 🙏
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
शुभ संध्या ....
ReplyDeleteफरवरी शान्त क्यूँ ना रहे, बाकि महीनो की तरह इसके पास 30-31 दिन तो हैं नहीं।
वो भी 28 में 19 गुजर गए!!!!
प्रसंगवश, सागर की शांत मुद्रा को शांति न समझें!!!! इक अन्तः प्रवाह है, बस दिखती नहीं!!!
आभार दी।।।। आभार पटल।
उम्दा लिंक्स।
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