या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा
सादर अभिवादन
आज वसंत पंचमी है
और आज ही
महाप्राण निराला जी का जन्मदिवस भी
पढ़िए आज की केसरिया प्रस्तुति
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जन्मदिवस - 16 फरवरी
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे!
वर दे, वीणावादिनि वर दे!
--'निराला'
बसन्त तुम आओ
या फिर न आओ
जब भी खिली होगी सरसों
नज़रें दूर तलक जाएंगी
और तुम मुझे हमेशा
पाओगे अपने इन्तज़ार में ,
बस बसन्त !
एक बार तुम आओ ।
चँदन केर बिरवा मइया तोरे अँगना
कइस होई चँदन क फूल !
कनिया रहिल माई बाबा से कहलीं ,
लेइ चलो मइया के दुआर !
केतिक बरस बीति गइले निहारे बिन
दरसन न भइले एक बार !
हार बनाइल मइया तोहे सिंगारिल ,
चुनि-चुनि सुबरन फूल !
बासंती पवन चली चहुओर
खेतों में और खलियानों में
वासंती पुष्पों ने घेरा सारे परिसर को
मन हुआ अनंग किया विचरण बागों में |
अपनी मौजूदगी को हर हाल में दर्शाना है ज़रूरी,
भीतर से हम ख़ुश रहें या न रहें,
बाहर से ख़ुशी दिखाना है ज़रूरी,
पुरानी किताबों की तरह कई रिश्ते
यूँ ही पड़े रहते हैं शीशे के ताक़ों में,
पढ़ें या न पढ़ें, लेकिन जिल्द पे लिखे
उनके नाम बताना है ज़रूरी,
...
बस
कल फिर
सादर
...
बस
कल फिर
सादर
सरस्वती पूजा व बसंत पंचमी की सभी को असंख्य शुभकामनाएं। सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteहर्षित बसंत मुखरित बसंत
ReplyDeleteआया समस्त पुष्पित बसंत
बेहतरीन प्रस्तुति
धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए |
ReplyDelete