सादर वन्दे
आल ईज़ वेल
जनम दिन हमारा तो
मिलेंगे लड्डू भी हमको ही
आज का अंक देखिए...
......
मां-बाप उम्र से नहीं बल्कि
फिकर से बूढ़े होते हैं
कड़वा है मगर सच है
जब बच्चा रोता है तो पूरी
बिल्डिंग को पता चलता है
मगर साहब
जब मां-बाप रोते होते हैं तो बाजू
वाले को भी पता नहीं चलता है
ये जिंदगी की सच्चाई है
......
आइए चलें रचनाओं की ओर
यूँ तो किसी
चुनावी मौसम के
रंगबिरंगे पोस्टरों की
मानिंद मुझे
अपनी उम्र की
बासंती हलचल में
अपने दिल की
दीवार पर
है सजाया
इक यज्ञ सा जीवन, मांगती है आहुति!
हार कर, जो छोड़ बैठे!
तीर पर ही, रहे बैठे!
ये तो धार है, बस बहे जाना है!
डुबकियाँ ले, पार जाना है!
वो कोई फ़रिश्ता न था,
इन्सां का मुकर जाना है लाज़िम,
शाख़ फिर लद जाएंगे,
गुलों का बिखर जाना है लाज़िम,
सूरत के साथ सीरत भी हो,
उतना ही रौशन ज़रूरी नहीं,
जब ढल जाए उम्र की धूप,
कोने में ठहर जाना है लाज़िम,
सारे मौसम झोली में भर लाया दिन
सांझ हुई तो फिसला उन में ही अक्सर
यूं तो पत्थर को भी पूजा है हमने
बेशक पत्थर से ही खाई है ठोकर
पत्ते की
सूखी
पसलियों में
देखिये
कितना पानी है।
जमीन
के सूखने
का
दर्द
कुछ कम हो जाया करता है
....
आज बस
सादर
आज बस
सादर
प्रिय दिव्या अग्रवाल जी,
ReplyDeleteहमेशा ख़ूब ख़ुश रहिए, लम्बी उमर पाईए... देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी दोनों की कृपा सदा आप पर बनी रहे।
अनंत शुभकामनाएं आपको आपके शुभ जन्मदिन पर 🙏❤️🙏
बहुत अच्छी लिंक्स का चयन किया है आपने, साधुवाद 🙏
मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
सस्नेह,
पुनः असीम मंगलकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
बधाइयां..
ReplyDeleteशुभकामनाएं..
जनम दिन के नाम से ट्यूशन की छुट्टी मार दी
उपहार भी बटोर लिए..
अब क्या लड्डुओं पे भी नज़र
बढ़िया अंक
आभार..
सादर...
जन्मदिन पर शुभकामनाएं दिव्या जी।
ReplyDeleteअर्थपूर्ण प्रस्तावना व सुन्दर संकलन के साथ मुखरित मौन हमेशा की भाँति मुग्ध करता हुआ, जन्म दिवस की शुभकामनाएं, मेरी रचना को शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया दिव्या जी - - नमन सह।
ReplyDeleteरचना को शामिल करने हेतु आभार
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक बधाई जन्मदिन हेतु
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई, दिव्या दी। बहुत खुश रहो...आपकी हर इच्छा पूरी हो...
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स।