सादर नमस्कार
आज वेल इन टाईम
सप्ताह का तीसरा दिन
सप्ताह का तीसरा दिन
आज चॉकलेट डे है.....
आज जाने भी दो
खेलने भी दो
और खाने भी दो
देखिए आज के पिटारे ंमें.....
छिने हुए को
वापस छिनने की
खूबसूरत जिद भी
दिल को गुमराह
करने के लिए काफी है .
ओस की नन्हीं बूँदें
हरी दूब पर मचल रहीं
धूप से उन्हें बचालो
कह कर पैर पटक रहीं |
देखती नभ की ओर हो भयाक्रांत
मेरी भी आँखें तरसती
रह गईं उसके लिए
जिसके आगोश में अब तक जिए
जो न रुका है न रुकेगा
न थका है न थकेगा
वह चलायमान था चलता रहेगा
न तुम्हारा था न मेरा है न किसी का बनेगा
प्रलय, ले आई है, भविष्य की झांकी,
त्रिनेत्र, अभी खुला है हल्का सा,
महाप्रलय, बड़ी है बाकी!
प्रगति का, कैसा यह सोपान?
चित्कार, कर रही प्रकृति,
बैठे, हम अंजान!
व्यथा बने विषहर समय के संग,
कुछ सुख उलझे रहे अकारण
सवालों में, रात गुज़रती
है जब, उन आँखों
से हो कर, सुकूं
मिलता है
रूह को
तब सुबह के उजालों में, अदृश्य
छाया सा ढक लेता है
शर्म थी वो तुम तो शर्म कर ही सकते थे
दामन में उसके इज्जतें भर भी सकते थे।
माना के बेबसी में वो बदन बेचती रही
समझौता हालातों से तुम कर भी सकते थे।
.....
आज बस
कल की कल
सादर
.....
आज बस
कल की कल
सादर
बेहतरीन अंक..
ReplyDeleteसादर..
उव्वाहहहह
ReplyDeleteबढ़िया अंक..
आभार..
सादर..
अच्छी रचनाएं...। सभी को खूब बधाई।
ReplyDeleteवेल इन टाईम ... क्या बात है । एकदम चाकलेट की तरह मीठी प्रस्तुति । हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय दिग्विजय जी - - नमन सह।
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध हूँ .... मेरी रचना के अंश को शीर्षक हेतु चयन कर, रचना का मान बढाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteशुभ संध्या।
सारे चॉकलेट को संजो कर रख ली.. शुक्रिया
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन
बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार एवं अभिनंदन.. आपको मेरा सादर प्रणाम व नमन..
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