सादर नमस्कार
पता नहीं कैसे
आज रविवार की
छुट्टी मिल गई...
रायपुर का कबीर नगर
रिंग रोड की हाउसिंग बोर्ड की
एक कालोनी...जहाँ अधिकतर
बाहरी लोग..मसलन
ट्रक वाले ही निवास करते है
और होते रहते हैं अक्सर
अनियमित कृत्य
सामान्य सी बात है...
खैर छोड़िए...
रचनाओँ की ओर चलिए...
जो स्वप्न मुझे नहीं आते ..प्रतिभा कटियार
आज एक याद के साथ आँख खुली. उंहू तुम्हारी याद के साथ नहीं, पुराने घर में आने वाले पंछियों की याद के साथ. वो अब भी आते होंगे न टेरेस पर. उन्हें कोई दाना देता होगा न? तोतों के उस झुण्ड में शरारतन इंट्री लेने वाला कबूतर अब भी शरारत करता होगा शायद. और वो बुलबुल का जोड़ा जो सामने वाले आम के पेड़ पर आता था...तब मुझे लगने लगा था वो मुझसे मिलने ही आता था... वो सारे तोते, कबूतर, बुलबुल सब मेरे दोस्त थे...मुझे उनकी याद आती है. क्या उन्हें भी मेरी याद आती होगी? ओह...उन्हें नहीं आती होगी क्या मेरी याद?
चाहे किसी का बलिदान रहा हो ..आशा सक्सेना
चाहे किसी का भी बलिदान रहा हो
अब तो आजाद देश हमारा है
हम हैं स्वतंत्र देश के नागरिक
जिसकी हमें रक्षा करनी है |
बीते कल को क्यूँ याद करें
जो बीत गया बापिस नहीं आने वाला
देश को संकट से मुक्त कराना है
सोशल डिस्टेंस में मजबूरियाँ .....व्याकुल पथिक
नेता, अफ़सर और बुद्धिजीवी सभी लॉकडाउन को लेकर ज्ञान बाँट रहे हैं। जो महाकवि डॉ. हरिवंशराय बच्चन की यह कविता वाच रहे हैं -
शत्रु ये अदृश्य है
विनाश इसका लक्ष्य है
कर न भूल, तू जरा भी ना फिसल
मत निकल, मत निकल, मत निकल..।
मास्क पहन कर बोलना मना है ..समीर लाल
लगता है कि तुमने कहीं सुन लिया होगा कि नींबू का पानी कोरोना में फायदा करता है और तुम सरकार को भी नींबू की तरह निचोड़ कोरोना में फायदा उठाने की फिराक में लगे हो.
अरे तुम्हारा ही पैसा है जो तुमने टैक्स के माध्यम से सरकार को दिया है. खजाना खाली करा लोगे तब भी तुमको ही बाद में उस खजाने को भरना है देश को चलते रहने के लिए किन्तु आज तुम्हारी यह बेजा मांग कहीं जरुरतमंदो को उचित मांग से भी न वंचित कर दे.
अरी गिलहरी ...प्रतिभा सक्सेना
अरी भाग मत,रुक जा पल भर कर ले हमसे बात, गिलहरी . बना पूंछ को अपनी कुर्सी पीपल छैंया बैठ दुपहरी . धारीदार कोट फ़रवाला किससे नपवा कर सिलवाया , ये दमदार ,निराला कपड़ा कौन जुलाहे से बुनवाया सजा दिया है बड़ी दिज़ाइनदार और झबरीली दुम से हमको नाम बता दो जिसने यों पहनाया नेह जतन से सुन्दर भूरे श्यामल तन पर कितनी प्यारी रेख रुपहरी . साफ़ और सुथरा रख हरदम झाड़-पोंछ कैसे कर पाती, चिट्चिट् चिट्चिट् करती करती झट नौ-दो-ग्यारह हो जातीं
रेगिस्तान में आ यायावर ..रेणुबाला
बारिश की बूंदें या आंसू -
सब इसमें ज़ज़्ब हो जायेंगे .
मरुधरा पर हरियाली के
कहाँ स्वप्न पनपने पायेंगे ;
बींध देंगे कोमल पांव तेरे
ये राह के बबूल कंटीले !
कहाँ खोजता रेतीली राहों में --
खुशियों के रंग सजीले !
...
आज बस
एक ग़ज़ल सुनिए..
सादर
पता नहीं कैसे
आज रविवार की
छुट्टी मिल गई...
रायपुर का कबीर नगर
रिंग रोड की हाउसिंग बोर्ड की
एक कालोनी...जहाँ अधिकतर
बाहरी लोग..मसलन
ट्रक वाले ही निवास करते है
और होते रहते हैं अक्सर
अनियमित कृत्य
सामान्य सी बात है...
खैर छोड़िए...
रचनाओँ की ओर चलिए...
जो स्वप्न मुझे नहीं आते ..प्रतिभा कटियार
आज एक याद के साथ आँख खुली. उंहू तुम्हारी याद के साथ नहीं, पुराने घर में आने वाले पंछियों की याद के साथ. वो अब भी आते होंगे न टेरेस पर. उन्हें कोई दाना देता होगा न? तोतों के उस झुण्ड में शरारतन इंट्री लेने वाला कबूतर अब भी शरारत करता होगा शायद. और वो बुलबुल का जोड़ा जो सामने वाले आम के पेड़ पर आता था...तब मुझे लगने लगा था वो मुझसे मिलने ही आता था... वो सारे तोते, कबूतर, बुलबुल सब मेरे दोस्त थे...मुझे उनकी याद आती है. क्या उन्हें भी मेरी याद आती होगी? ओह...उन्हें नहीं आती होगी क्या मेरी याद?
चाहे किसी का बलिदान रहा हो ..आशा सक्सेना
चाहे किसी का भी बलिदान रहा हो
अब तो आजाद देश हमारा है
हम हैं स्वतंत्र देश के नागरिक
जिसकी हमें रक्षा करनी है |
बीते कल को क्यूँ याद करें
जो बीत गया बापिस नहीं आने वाला
देश को संकट से मुक्त कराना है
सोशल डिस्टेंस में मजबूरियाँ .....व्याकुल पथिक
नेता, अफ़सर और बुद्धिजीवी सभी लॉकडाउन को लेकर ज्ञान बाँट रहे हैं। जो महाकवि डॉ. हरिवंशराय बच्चन की यह कविता वाच रहे हैं -
शत्रु ये अदृश्य है
विनाश इसका लक्ष्य है
कर न भूल, तू जरा भी ना फिसल
मत निकल, मत निकल, मत निकल..।
मास्क पहन कर बोलना मना है ..समीर लाल
लगता है कि तुमने कहीं सुन लिया होगा कि नींबू का पानी कोरोना में फायदा करता है और तुम सरकार को भी नींबू की तरह निचोड़ कोरोना में फायदा उठाने की फिराक में लगे हो.
अरे तुम्हारा ही पैसा है जो तुमने टैक्स के माध्यम से सरकार को दिया है. खजाना खाली करा लोगे तब भी तुमको ही बाद में उस खजाने को भरना है देश को चलते रहने के लिए किन्तु आज तुम्हारी यह बेजा मांग कहीं जरुरतमंदो को उचित मांग से भी न वंचित कर दे.
अरी गिलहरी ...प्रतिभा सक्सेना
अरी भाग मत,रुक जा पल भर कर ले हमसे बात, गिलहरी . बना पूंछ को अपनी कुर्सी पीपल छैंया बैठ दुपहरी . धारीदार कोट फ़रवाला किससे नपवा कर सिलवाया , ये दमदार ,निराला कपड़ा कौन जुलाहे से बुनवाया सजा दिया है बड़ी दिज़ाइनदार और झबरीली दुम से हमको नाम बता दो जिसने यों पहनाया नेह जतन से सुन्दर भूरे श्यामल तन पर कितनी प्यारी रेख रुपहरी . साफ़ और सुथरा रख हरदम झाड़-पोंछ कैसे कर पाती, चिट्चिट् चिट्चिट् करती करती झट नौ-दो-ग्यारह हो जातीं
रेगिस्तान में आ यायावर ..रेणुबाला
बारिश की बूंदें या आंसू -
सब इसमें ज़ज़्ब हो जायेंगे .
मरुधरा पर हरियाली के
कहाँ स्वप्न पनपने पायेंगे ;
बींध देंगे कोमल पांव तेरे
ये राह के बबूल कंटीले !
कहाँ खोजता रेतीली राहों में --
खुशियों के रंग सजीले !
...
आज बस
एक ग़ज़ल सुनिए..
सादर
बिल्कुल सच कहा होश वालों को यह नहीं पता कि ओरों की जिंदग़ी भी होती है। उनकी भी समस्या है, उनकी भी पीड़ा है। वह तो उपदेश देना जानता है। निर्देश देना जानता है।
ReplyDeleteख़ैर मेरे लेख " सोशल डिस्टेंस में मजबूरियाँ " को पटल पर स्थान देने के लिए आपका अत्यंत आभार भैया जी।
बहुत बढियां प्रस्तुति
ReplyDeleteबढ़िया..
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति। यहाँ तो पता ही नहीं चलता है कि आज कौन सा वार है!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुती आदरणीय बड़े भैया | मेरी साधारण सी रचना को मंच पर पाठकों के समक्ष लाने के लिए हार्दिक शुक्रिया | सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं| सादर प्रणाम और आभार
ReplyDeleteअच्छा लगा यहाँ आकर ,आपको धन्यवाद.
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा संकलन आज का |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद दिग्विजय जी |
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति