Friday, April 10, 2020

321..चिकित्सक योद्धाओं का मनोबल दृढ़ करने का दायित्व

सादर अभिवादन
घृणा सी हो गई है
नामुराद 2020 से
जाने कौन नक्षत्र में पैदा हुआ था ये
शायद ये सजा दे रहा है हमें
हम ही न हैं जो पर्यावरण से खिलवाड़
करते रहे जीवन भर
अब पशु-पक्षी बेखौफ हैं
ताल-तलैय्या स्वच्छ हो गई है
अब तो चेत जाओ मानवों..
लीजिए देखिए आज का आनन्द....

सुरक्षा घेरा बनाते
अपने प्राण हथेलियों पर लिये
मानवता के
साँसों को बाँधने का यत्न करते,
जीवन पुंजों के सजग प्रहरियों को
कुछ और न सही
स्नेह,सम्मान और सहयोग देकर
इन चिकित्सक योद्धाओं का
मनोबल दृढ़ करना
प्रत्येक नागरिक का
दायित्व होना चाहिए।


पंछियों, इतना मत इतराओ,
किसी भ्रम में न रहो,
हम अभी यहीं हैं,
इसी दुनिया में,


बीमारी अप्रत्याशित! प्राण घातक! संशय की स्थिति! कोई दवाई नहीं! इसके स्त्रोत का कोई अता-पता नहीं! तरह-तरह की भ्रांतियाँ! अफ़वाह! न रुकने वाले संक्रमण और मौत का सिलसिला! ऊपर से रोटी सेंकनेवाले असामाजिक तत्व! कुल मिलाकर एक ऐसी स्थिति बनने लगती है कि महामारी का यह मनोविज्ञान  स्वयं  धीरे-धीरे एक ‘अभिशप्त-मनोविज्ञान’ की महामारी बन जाता है और यह 'अभिशप्त-मनोविज्ञान' भी  स्वयं एक महामारी की तरह ही  फैलने लगता है, जो महामारी से कम घातक नहीं।


कई बार तुम्हें
सपनों में आवाज़ लगायी
धुंध में ढूंढने की कोशिश की
अपनी खुली बाँहों में
संभालना चाहा 
तनहाइयों में भी 
तुम्हें अपने साथ पाया 


अब अधिकार है, सिर्फ तुझको!
आँखें फेर लो, या, अंक-पाश में घेर लो,
चलो, गगन में, संग दूर तक,
या, मध्य राह में, कहीं, मुँह मोड़ लो,
जल चुके थे, धू-धू हम तो,
उसी अग्नकुंड में!
जल चुकी थी, मेरी कामनाएँ,
बाकि, रही थी, एक इच्छा!
तुम करोगे, एक दिन,
मेरी समीक्षा!


मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……

फिर समुन्द्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया

हैरान थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..
...
बस
शायद कल फिर
सादर



4 comments:

  1. वाह! अमृता जी की कविता ने मन मोह लिया। बहुत सुंदर। आभार।

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  2. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. आभार.

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  3. कोरोना से जुड़ी जानकारी देते पठनीय लिंक्स

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