रामायण , महाभारत, इत्यादि पुराने श्रृंखला की वापसी
सरकार की लोगों को घर में बिठाए
सरकार की लोगों को घर में बिठाए
रखने की मंशा से नहीं हुई
वजह ये है असली...कि
लॉकडाउन के चलते नई शूटिंग
वजह ये है असली...कि
लॉकडाउन के चलते नई शूटिंग
नहीं हो पा रही है...और दूरदर्शन के पास
इन पुराने पॉपुलर, ब्लॉकबस्टर सीरियल्स का
अंबार है...और प्राइवेट चैनल्स खाली हाथ होने के
इन पुराने पॉपुलर, ब्लॉकबस्टर सीरियल्स का
अंबार है...और प्राइवेट चैनल्स खाली हाथ होने के
कारण टी.आर.पी खोते जा रहे हैं
और इस तरह लॉक डाउन भी सफल हो रहा है
अब लौटिए अंक की ओर...
और इस तरह लॉक डाउन भी सफल हो रहा है
अब लौटिए अंक की ओर...
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो
कभी मुंतज़िर चश्में
ज़िगर हमराज़ था
कभी बेखबर कभी
पुरज़ुनू ये मिजाज़ था
कभी गुफ़्तगू के हज़ूम तो
कभी खौफ़-ए-ज़द
कभी बेज़ुबां
कभी जीत की आमद में मैं
कभी हार से मैं पस्त था...
मेरे मन की रौनकें तुमसे है
पल में खिलती, पल में मुरझाती है
अडिग रखना विश्वास ईश्वर की तरह
न टूटना कभी न टूटने देना
ये आते जाते समय की मार है
जो निखारेगी तुम्हे, तपायेगी तुम्हे
इनसे पार जाना है...स्थिर रह डटे रहना
आज सुबह जून गोहाटी गए हैं, जाने से पहले पनियप्पम खाया.
दक्षिण भारतीय व्यंजन जो खमीर उठा के बनते हैं, देह में
भारीपन लाते हैं. आज फेसबुक पर गुरूजी की तस्वीर प्रकाशित की, कल शाम नैनी ने पूजा घर में सुंदर फूल सजाये थे,
तस्वीर सुंदर आयी है. आज सुबह सफाई कर्मचारी की
पत्नी फिर आयी थी, उसका पति रात को घर नहीं लौटा,
जिस स्त्री के घर वह रात को रुका था, वह सुबह डंडा
लेकर पहुँच गयी, पति के बाहर निकलते ही उसे मारा
पर आदमी न उलटे उसे ही मारना शुरू कर दिया.
वसुधैव कुटुम्बकम ..डॉ. किरण मिश्रा
अंधेरे तुम कितने खूबसूरत हो
जो आशा देते हो उजाले की
रास्ते तुम कितने सच्चे हो
जो मंजिल देते लक्ष्य की
पहाड़ तुम कितने दयावान
जो ऊंचे हो कर भी सुरक्षा देते हो
ओ बहती नदियां तुम कितनी प्यारी हो
जो बिना रुके बिना थके चलना सिखाती हो
वसुधैव कुटुम्बकम ..डॉ. किरण मिश्रा
अंधेरे तुम कितने खूबसूरत हो
जो आशा देते हो उजाले की
रास्ते तुम कितने सच्चे हो
जो मंजिल देते लक्ष्य की
पहाड़ तुम कितने दयावान
जो ऊंचे हो कर भी सुरक्षा देते हो
ओ बहती नदियां तुम कितनी प्यारी हो
जो बिना रुके बिना थके चलना सिखाती हो
..
आज यहीं तक
कल फिर
सादर
आज यहीं तक
कल फिर
सादर
बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति
ReplyDeleteनमन आपको ... अमृता प्रीतम के सुलगते सिगरेट की धुएँ के साथ-साथ अतुल्य प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआदरेषु
Deleteसुबह देखे हम
कोरोना ही कोरोना ही था
डर सा लगा..
कहीं चिपक गया तो
हम तो गए काम से
सो तलाश में लग गए
पुरानी रचनाओँ की
मिली तो धर दिये
यहां लाकर
अच्छा लगा
पसंद आया संकलन आजका
आपको...परिश्रम
सकारथ हुआ
सादर..
पठनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक ! आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
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