आज-कल ये रिवाज चल पड़ा है
कही भी भीड़ का चित्र देख और कापी कर
फेसबुक में चिपकाने का
फिर शेयर दर शेयर होते हुए
महामारी बन जाता है
आज के युग में सभी
को जिन्दगी प्यारी है..फिर क्योंकर
अपने आपको जोखिम में डालें
कहते ही हैं वह सच ही है
अफवाहों के पांव नहीं होते
चलिए डालें रचनाओं पर एक नज़र..
हत्यारे के घर में चाय-पानी ...रवीन्द्र सिंह यादव
मैंने मित्र को छेड़ते हुए कहा-
"जोड़ा बेमेल था।"
"पहली
इसके कुकर्मों के चलते
आग लगाकर जल मरी
दूसरी के हाथ
पहली की हत्या की
चिट्ठी हाथ लग गई
अब तलाक़ का
केस चल रहा है
सच ...श्वेता सिन्हा
किसी सिक्के की तरह
सच के भी दो पहलू
होते हैं...!
आँखों देखी सच का
अनदेखा भाग
समझ के अनुसार
सच होता है।
साझा नभ का कोना ... विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
एक दिन मुझसे मंडला आर्ट पर विमर्श कर रही थी तो मैंने कहा ,-
"बनाने की कोशिश करो।"
"कैसे बनाएं क्या आप मुझे बनाना सीखा देंगी?"
"गूगल में सर्च कर देख कर अभ्यास कर लो!"
"इतना समय अब कहाँ बचा कि गोल बनाने के लिए
कुछ आधार खरीद कर लाया जाए?"
"आस-पास चौके से हर कमरे में नजर दौड़ाओं हर चीज का जुगाड़ घर में होता है।"
कभी सलमा की साँसों में ... सुबोध सिन्हा
बस यूँ ही ...
हवा के लिए मन में उठे
कुछ अनसुलझे सवाल ..
मन को मंथित करते कुछ सवाल ..
जिनके उत्तर की तलाश के
उपकर्म को आगे बढ़ाते हुए ..
हवा के ही कुछ मुहावरों में पिरो कर ...
बस .. एक प्रयोग .. बस यूँ ही ...
" वाह .. वाह ...
वाह्ह्ह्ह् री .. हवा !!! ...
चंद चित्र हाइकु .....साधना वैद
आती हूँ पास
तुम्हारी शरण में
इस द्वार से
शाख से गिरे
धरा पर बिखरे
रौंदे जाने को
लॉकडाउन का बोझ ...व्याकुल पथिक
जो मानवता मरूस्थल में परिवर्तित हो गयी थी,
अब उसपर इन विपरीत परिस्थितियों में
स्नेह रूपी बादल उमड़ने लगे हैं।
हाँ, गरजने के साथ -साथ
वे बरसते कितने हैं,इसकी परख शेष है।
अतीत ...दीप्ति शर्मा
जब किसी की खामोशी डरा जाती है
उन खामोशी की आवाजें
मेरे भीतर का रक्त उबाल रही हैं "
उसने मुस्कुराते हुए
किसी की खामोशी नहीं वहम डराते हैं
मैं चुप हूँ रो रही कि हाँ
वहम या हकीकत पुरानी
उसकी टीस डराती है
आज बस..
एक गीत याद आ रहा है
सुनिए..
कही भी भीड़ का चित्र देख और कापी कर
फेसबुक में चिपकाने का
फिर शेयर दर शेयर होते हुए
महामारी बन जाता है
आज के युग में सभी
को जिन्दगी प्यारी है..फिर क्योंकर
अपने आपको जोखिम में डालें
कहते ही हैं वह सच ही है
अफवाहों के पांव नहीं होते
चलिए डालें रचनाओं पर एक नज़र..
हत्यारे के घर में चाय-पानी ...रवीन्द्र सिंह यादव
मैंने मित्र को छेड़ते हुए कहा-
"जोड़ा बेमेल था।"
"पहली
इसके कुकर्मों के चलते
आग लगाकर जल मरी
दूसरी के हाथ
पहली की हत्या की
चिट्ठी हाथ लग गई
अब तलाक़ का
केस चल रहा है
सच ...श्वेता सिन्हा
किसी सिक्के की तरह
सच के भी दो पहलू
होते हैं...!
आँखों देखी सच का
अनदेखा भाग
समझ के अनुसार
सच होता है।
साझा नभ का कोना ... विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
एक दिन मुझसे मंडला आर्ट पर विमर्श कर रही थी तो मैंने कहा ,-
"बनाने की कोशिश करो।"
"कैसे बनाएं क्या आप मुझे बनाना सीखा देंगी?"
"गूगल में सर्च कर देख कर अभ्यास कर लो!"
"इतना समय अब कहाँ बचा कि गोल बनाने के लिए
कुछ आधार खरीद कर लाया जाए?"
"आस-पास चौके से हर कमरे में नजर दौड़ाओं हर चीज का जुगाड़ घर में होता है।"
कभी सलमा की साँसों में ... सुबोध सिन्हा
बस यूँ ही ...
हवा के लिए मन में उठे
कुछ अनसुलझे सवाल ..
मन को मंथित करते कुछ सवाल ..
जिनके उत्तर की तलाश के
उपकर्म को आगे बढ़ाते हुए ..
हवा के ही कुछ मुहावरों में पिरो कर ...
बस .. एक प्रयोग .. बस यूँ ही ...
" वाह .. वाह ...
वाह्ह्ह्ह् री .. हवा !!! ...
चंद चित्र हाइकु .....साधना वैद
आती हूँ पास
तुम्हारी शरण में
इस द्वार से
शाख से गिरे
धरा पर बिखरे
रौंदे जाने को
लॉकडाउन का बोझ ...व्याकुल पथिक
जो मानवता मरूस्थल में परिवर्तित हो गयी थी,
अब उसपर इन विपरीत परिस्थितियों में
स्नेह रूपी बादल उमड़ने लगे हैं।
हाँ, गरजने के साथ -साथ
वे बरसते कितने हैं,इसकी परख शेष है।
अतीत ...दीप्ति शर्मा
जब किसी की खामोशी डरा जाती है
उन खामोशी की आवाजें
मेरे भीतर का रक्त उबाल रही हैं "
उसने मुस्कुराते हुए
किसी की खामोशी नहीं वहम डराते हैं
मैं चुप हूँ रो रही कि हाँ
वहम या हकीकत पुरानी
उसकी टीस डराती है
आज बस..
एक गीत याद आ रहा है
सुनिए..
https://todaysindia.news/stomach-fire-on-one-side-and-heat-road-on-the-other-side-in-mirzapur/
ReplyDeleteआपने भीड़ के संदर्भ में कहा है, तो इसे भी पढ़ें।
पुनः विचार करें।
यह मेरे होटल के समीप का दृश्य है।
मेरे लेख को पटल पर स्थान देने के लिए आपका अत्यंत आभार , यशोदा दी।
प्रणाम।
अच्छी प्रस्तुति..
ReplyDeleteसादर...
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
सुंदर प्रस्तुति 👌🏻👌🏻👌🏻
ReplyDeleteवाह गीत भी सुंदर और प्रस्तुति भी लाजवाब |
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति मुखरित मौन की। बेहतरीन सरस, सामयिक चिंतन की रचनाओं का कौशलपूर्ण चयन। ध्यानाकर्षण करती संक्षिप्त भूमिका। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteमेरी रचना इस प्रतिष्ठित पटल पर प्रदर्शित करने हेतु सादर आभार आदरणीया यशोदा बहन जी।
वीडियो में अपना प्रिय गाना सुनकर मन प्रसन्न हुआ।
बेहतरीन संकलन यशोदा जी ,सभी पोस्ट अच्छी लगी ,धन्यवाद आपका
ReplyDeleteसभी के ब्लॉग पर जाकर सभी रचनाओ को पढ़ आई ,अच्छी प्रस्तुति रही यशोदा जी ,बधाई हो आपको ,नमन आपकी कोशिशों को
ReplyDeleteअगली पोस्ट दिखने पर फिर आती हूँ ।
ReplyDeleteसादर नमन...
Deleteआज शाम पांच बजे नई पोस्ट
इन्तजार करूँगी
सादर...
क्षमाप्रार्थी हूँ यशोदा जी ! आजकल इतनी व्यस्तता और थकान है कि कल आपका सन्देश देखने के बाद भी आभार ज्ञापन के लिए आ ही नहीं सकी ! मेरी रचना के चयन के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !
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