इकत्तीस मार्च
माह का अंतिम दिवस
एक बटे चार वर्ष
बीत गए... और बड़े बुरे बीते
आगे भी नहीं दिख रहा है अच्छा
जब पता था कि लॉक्डाऊन हो गया है
कारखाने वालों को मजदूरों की व्यवस्था
चौकस करनी थी....छोड़ दिया उन्हें
मंझधार में....पड़ गई खतरें में कामगारों जिन्दगी..
सरासर गलती कारखाने के मालिकों की है...
और मिल गया मुद्दा पत्रकारों को....
एक ही पंक्ति याद आ रही है
होइहैं वही तो राम रचि राखा...
चलिए कुछ पढ़ें.....
ठहराव ...किरण की दुनिया
और एक दिन जब
मनुष्य ने ईश्वर को फड़
पर बैठने को कहा
ईश्वर ठिठका
मनुष्य की बिछाई बिसात देख,
अप्सरा ..... मन से-नीतू ठाकुर
श्रृंगार सुस्त उस यौवन का,
जो कुंदन गल में पड़ा हुआ।
आहट उसकी पाकर व्याकुल,
अवगुंठन में नग जड़ा हुआ।
मानव मन अवसाद न कर ...गूंगी गुड़िया
खिलेंगे किसलय सजा बँधुत्त्व
मोती नैनों के ढ़ोते हैं,
स्नेह मकरंद बन झर जाए,
अंतरमन को समझाते हैं,
विनाश रुप के काले मेघ,
धरा से विधाता विपदा हर।
यहां सपत्नीक पूजे जाते हैं हनुमान ...कुछ अलग सा
सूर्य देव ने हनुमान जी को बताया कि मेरी मानस पुत्री सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है उसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो, और उससे विवाहोपरांत तुम दोनों उन चार विद्याओं के तेज को संभाल पाओगे ! उससे विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको। इसके अलावा और कोई उपाय उन विद्याओं को हासिल करने का नहीं है ! अब हनुमान जी भी धर्म संकट में पड़ गए, क्योंकि वो सूर्य देव से विद्याएं लेना तो चाहते थे, लेकिन साथ ही वो ब्रह्मचारी भी बने रहना चाहते थे। तब सूर्य देव ने उन्हें समझाया कि विवाह होते ही सुवर्चला तपस्या में लीन हो जाएगी। इससे तुम्हारे संकल्प पर कोई आंच भी नहीं आएगी
मन के पलाश ...मेरी धरोहर
सुनो, तुम आज मेरा आंगन बन जाओ,
और मेरा सपना बनकर बिखर जाओ।
मैं...मैं मन के पलाश-सी खिल जाऊं,
अनुरक्त पंखुरी-सी झर-झर जाऊं।
सुनो, फिर एक सुरमई भीगी-भीगी शाम,
ओढ़कर चुनर चांदनी के नाम ।
मैं........तुम्हारी आंखों के दो मोती चुराऊं
और उसमें अपना चेहरा दर्ज कराऊं।
.....
आज के लिए बस
कल शायद हम ही आएँगे
पहली अप्रैल जो है..
सादर
माह का अंतिम दिवस
एक बटे चार वर्ष
बीत गए... और बड़े बुरे बीते
आगे भी नहीं दिख रहा है अच्छा
जब पता था कि लॉक्डाऊन हो गया है
कारखाने वालों को मजदूरों की व्यवस्था
चौकस करनी थी....छोड़ दिया उन्हें
मंझधार में....पड़ गई खतरें में कामगारों जिन्दगी..
सरासर गलती कारखाने के मालिकों की है...
और मिल गया मुद्दा पत्रकारों को....
एक ही पंक्ति याद आ रही है
होइहैं वही तो राम रचि राखा...
चलिए कुछ पढ़ें.....
ठहराव ...किरण की दुनिया
और एक दिन जब
मनुष्य ने ईश्वर को फड़
पर बैठने को कहा
ईश्वर ठिठका
मनुष्य की बिछाई बिसात देख,
अप्सरा ..... मन से-नीतू ठाकुर
श्रृंगार सुस्त उस यौवन का,
जो कुंदन गल में पड़ा हुआ।
आहट उसकी पाकर व्याकुल,
अवगुंठन में नग जड़ा हुआ।
मानव मन अवसाद न कर ...गूंगी गुड़िया
खिलेंगे किसलय सजा बँधुत्त्व
मोती नैनों के ढ़ोते हैं,
स्नेह मकरंद बन झर जाए,
अंतरमन को समझाते हैं,
विनाश रुप के काले मेघ,
धरा से विधाता विपदा हर।
यहां सपत्नीक पूजे जाते हैं हनुमान ...कुछ अलग सा
सूर्य देव ने हनुमान जी को बताया कि मेरी मानस पुत्री सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है उसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो, और उससे विवाहोपरांत तुम दोनों उन चार विद्याओं के तेज को संभाल पाओगे ! उससे विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको। इसके अलावा और कोई उपाय उन विद्याओं को हासिल करने का नहीं है ! अब हनुमान जी भी धर्म संकट में पड़ गए, क्योंकि वो सूर्य देव से विद्याएं लेना तो चाहते थे, लेकिन साथ ही वो ब्रह्मचारी भी बने रहना चाहते थे। तब सूर्य देव ने उन्हें समझाया कि विवाह होते ही सुवर्चला तपस्या में लीन हो जाएगी। इससे तुम्हारे संकल्प पर कोई आंच भी नहीं आएगी
मन के पलाश ...मेरी धरोहर
सुनो, तुम आज मेरा आंगन बन जाओ,
और मेरा सपना बनकर बिखर जाओ।
मैं...मैं मन के पलाश-सी खिल जाऊं,
अनुरक्त पंखुरी-सी झर-झर जाऊं।
सुनो, फिर एक सुरमई भीगी-भीगी शाम,
ओढ़कर चुनर चांदनी के नाम ।
मैं........तुम्हारी आंखों के दो मोती चुराऊं
और उसमें अपना चेहरा दर्ज कराऊं।
.....
आज के लिए बस
कल शायद हम ही आएँगे
पहली अप्रैल जो है..
सादर
भले पधारे आप
ReplyDeleteआते रहिए तब तक
जब तक आप घर पर हैं
रोज बरतन जलने से परेशान थी
यहां भी आइए और पांच लिंकों का आनन्द में भी आइए
सादर
सुंदर ज्ञानवर्धक लेख , कविता , गीत सभी कुछ बहुत खास और सार्थक भूमिका | वाह ! शानदार अंक |
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर मेरी रचना को संध्या दैनिक में स्थान देने के लिये. सभी रचनाएँ बेहतरीन बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसादर
देरी से आने के लिए क्षमा एवं रचना को स्थान देने का शुक्रिया।
ReplyDeleteआदरणीय दीदी
Deleteआपकी रचना इस अंक खी शोभा बढञा रही है
कृपया पहली रचना देखिए
आपके ब्लॉग किरण की दुनिया से लाई गई है
सादर नमन
आदरणीय दीदी
Deleteआपकी रचना इस अंक की शोभा बढ़ा रही है
कृपया पहली रचना देखिए
आपके ब्लॉग किरण की दुनिया से लाई गई है
सादर नमन
एक रचना का शीर्षक लाइन -- अंधेरे तुम कितने खूबसूरत हो.... मेरी कविता की लाइन है। यहां कैसे कृपया बताएं। सादर।
ReplyDeleteशीर्षक में दी गई पंक्ति आपकी रचना
Deleteवसुधैव कुटुम्बकम से ली गई है
सादर..
एक रचना का शीर्षक लाइन -- अंधेरे तुम कितने खूबसूरत हो.... मेरी कविता की लाइन है। यहां कैसे कृपया बताएं। सादर।
ReplyDeleteकोई बात नही यशोदा , मैं कृतज्ञ हुई।
ReplyDeleteआभार दीदी
Deleteआपकी रचना वसुधैव कुटुम्बकम आज को अँक में आएगी
सादर नमन