एक लघु अंतराल के बाद
फिर आपके समक्ष
लॉकडाऊन
बड़े फायदे, बड़ी बचत
देश के पेट्रोलियम भण्डार में इज़ाफा
पुरुष वर्ग का रंग निखर रहा है
घर में बैठे-बैठे ...और सीख रहे हैं
कुछ न कुछ नया..
..
चलिए आज की रचनाएँ देखें...
फिर आपके समक्ष
लॉकडाऊन
बड़े फायदे, बड़ी बचत
देश के पेट्रोलियम भण्डार में इज़ाफा
पुरुष वर्ग का रंग निखर रहा है
घर में बैठे-बैठे ...और सीख रहे हैं
कुछ न कुछ नया..
..
चलिए आज की रचनाएँ देखें...
दुनिया हक्की-बक्की है इन दिनों
जैसे उड़ा दिए हैं रंग किसी ने
खनकती सुबह की सबसे दुर्लभ तस्वीर के
और पोत दिया है उस पर
लम्बी अवसाद भरी रातों का सुन्न सन्नाटा
दूर हैं तुमसे तो क्या
खुशियां बांट तो सकते ही हैं
हाथ में हाथ नहीं तो क्या
साथ निभा तो सकते ही हैं
रात है लम्बी तो क्या
मसाल जला तो सकते ही हैं
दौर है ये आज़माइश का,
ज़रा धीरज धरो
कुछ दिनों की बात है
फिर ख़ूब मनचाहा करो
स्याह पन्ने फाड़ कर
उजली कथाएं कुछ लिखो
पृष्ठ जो हैं रिक्त,
उनमें रंग जीवन का भरो
अजनबी हूँ इस अजनबी शहर में
तलाश अपनेपन कि यहाँ जारी है
होश को होश नहीं मय के आगोश में
ख़तम न होने वाली ये बेकरारी है
रंग भरे होते
असीम
सम्भावनाएं होती
ऊँचाइयों
के
ऊपर कहीं
और
ऊँचाइयाँ होती
होड़
नहीं होती
दौड़
नहीं होती
स्वच्छंद होती
सोच
भी उड़ती
पंछी होकर
कलरव करती
...
आज बस
कल फिर
सादर
आज बस
कल फिर
सादर
बहुत अच्छे links....
ReplyDeleteलॉकडाउन के इस आज़माइश भरे दौर में ब्लॉग पठन बहुत बड़ा सहारा है।
शुक्रिया मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए 🙏
जी नहीं हम नहीं उड़ा रहे जिसके उड़ रहे हैं चारो ओर उसके देख रहे हैं :) आभार ।
ReplyDeleteऐसे संकट के समय में भी कुछ नासमझ विपदा बढ़ाने का, जाने-अनजाने कारण बन रहे हैं
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