सादर अभिवादन
21 दिन और अंदर
विष का नाश हो जाएगा
देश के लिए ..और
अपने जीवन के लिए
अत्यावश्यक है
फेसबुक और व्हाट्सएप्प में
नकारात्मक प्रस्तुति न डालें
अपने सकुशल होने की सूचना
अपनों को जरूर दें
...
रचनाएं देखें...
21 दिन और अंदर
विष का नाश हो जाएगा
देश के लिए ..और
अपने जीवन के लिए
अत्यावश्यक है
फेसबुक और व्हाट्सएप्प में
नकारात्मक प्रस्तुति न डालें
अपने सकुशल होने की सूचना
अपनों को जरूर दें
...
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सालों बाद ख़ुश हैं
अलमारी में रखी किताबें,
शायद कोई निकालेगा उनको,
शायद धूल झड़ेगी उनकी.
बुकमार्क काम आएगा शायद,
पलटे जाएंगे उनके पन्ने,
पढ़े जाएंगे उनमें लिखे शब्द,
सराहा जाएगा शायद उनको
इंसानियत की बलि ...श्वेता सिन्हा
कंधे पर लटकाये
क्रांति का वाहक
उंगलियों पर नचाता
पीला कारतूस
दिशाहीन विचारों को
हथियारों के नोंक से
सँवारने का प्रयास,
ये रक्तपिपासु
मानवता के रक्षक हैं?
इंसानियत की बलि ...श्वेता सिन्हा
कंधे पर लटकाये
क्रांति का वाहक
उंगलियों पर नचाता
पीला कारतूस
दिशाहीन विचारों को
हथियारों के नोंक से
सँवारने का प्रयास,
ये रक्तपिपासु
मानवता के रक्षक हैं?
तो क्यों न ऐसा कुछ किया जाए
कि बिना गिलास भर उनसे संतरे का रस खरीदे हुए,
कि बिना दोने भर चटपटी चाट खाए हुए,
बिना रिक्शे पर बैठे हुए,
दाम चुकता कर दिया जाए
क्यों न इस बार
एक सौदा ऐसा किया जाए।
उस कल्पवृक्ष की, कल्पना में,
बीज, विष-वृक्ष के, खुद तुमने ही बोए,
थी कुछ कमी, तेरी साधना में,
या कहीं, तुम थे खोए!
प्रगति की, इक अंधी दौर थी वो,
खूब दौड़े, तुम,
दिशा-हीन!
प्रेम लगन में पागल मैं बेसुध गोपी सी,
तुम निष्ठर चंचल नटखट नंदलाला हो,
सर्द गहरी रातो का तन्हा मुसाफ़िर सा,
अलाव तपते हाथो का तुम सहारा हो,
खबरों की माने तो चीन के युन्नान प्रांत में एक व्यक्ति की
हंता नामक वायरस से मौत हो गई। इस खबर की पुष्टि चाइना के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने इस घटना की पुष्टि की है।
इस खबर के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर हड़कंप मच गया है। जानकारी के मुताबिक यह वायरस गिलहरी और
चूहों के संपर्क से फैल रहा है ये हंता वायरस चूहे खाने से
होता है हालाँकि ये कोरोना से कम खतरनाक है।
चलते-चलते
भाई सुशील जी का कुशलता भी लेते चलें
तेरा
तुझ को अर्पण
क्या
लागे मेरा
की
याद
आ रही हो
सभी को
जब
नौ दिशाओं
से
ऐसे
माहौल में
कुछ कहना
जैसे
ना कहना है
सिक्का
उछालने वाला
बदलने वाला नहीं है
चलते-चलते
भाई सुशील जी का कुशलता भी लेते चलें
तेरा
तुझ को अर्पण
क्या
लागे मेरा
की
याद
आ रही हो
सभी को
जब
नौ दिशाओं
से
ऐसे
माहौल में
कुछ कहना
जैसे
ना कहना है
सिक्का
उछालने वाला
बदलने वाला नहीं है
....
बस
कल फिर मिलते हैं
सादर
बस
कल फिर मिलते हैं
सादर
आभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteहमारी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार आपको भारतीय नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह सुंदर प्रस्तुती | सचमुच कोरोना ने जो एकांतवास दिया है वह किताबों को आह्लादित कर देगा | उन्हें अपना चाहनेवाले का स्नेहिल स्पर्श वर्षों बाद जो मिलेगा | सभी को नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteसुंदर संकलन. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeleteसही है किताबों की दोस्ती काम आ रही है 😊
ReplyDeleteअति सुंदर ।
ReplyDeleteरंग भरी रचनाओ का ये पिटारा शानदार हैं
तो क्यों न ऐसा कुछ किया जाए
कि बिना गिलास भर उनसे संतरे का रस खरीदे हुए,
कि बिना दोने भर चटपटी चाट खाए हुए,
बिना रिक्शे पर बैठे हुए,
दाम चुकता कर दिया जाए
बहुत उम्दा विचार हैं।
आभार