Sunday, March 1, 2020

282 ...जीवन बढ़ता जाता कन्टकाकीर्ण मार्ग पर

सादर अभिवादन
आखिर चली ही गई फरवरी
इस बार एक दिन ज्यादा रुकी
जाना तो था ही
...
चलिए रचनाओँ की ओर...

सुलगती रही, इन्हीं आबादियों में, 
बहते रहे, तपते रेत के धारे...

सूखी हलक़, रूखी सी सड़क,
चिल-चिलाती धूप, रूखा सा फलक,
सूनी राह, उड़ते धूल के अंगारे,
वीरान, वादियों के किनारे,
दिन कई गुजारे!


वैमनस्य का कारण ....
उथल-पुथल क्यो मन के अंदर,
कोई न कारण जान सके।
उगता हुआ सूरज भी मन में,
कोई उजाला भर न सके।
मुश्किल से मत डरकर भागो,
डर से मिले न कोई छोर।
उठकर अपनी आँखें खोलो,
देखो आई सुंदर भोर।।


संभाल के रख लुंगी उस अंकुरित आस को 
उम्मीदों की पोटली के इक कोने में बाँध दूंगी
जब भी भूखो मरने लगेगी कोई उम्मीद फिर से
तोड़ के इक टुकड़ा उस चाँद के अंकुर का
निवाला बना मैं निगल जाउंगी .......
शायद ऐसे भूखी उम्मीदों का पेट भर पाउंगी


टेसू के फूल
फागुनी बयार में
लगे आग से!
.....
जीवन- गाड़ी
चलती, न थकती
अडिग मन !


जीवन बढ़ता जाता 
कन्टकाकीर्ण मार्ग पर
अकेले चलने में
दुःख न होता  फिर भी |
क्यूँ कि आदत सी
हो गई  अब तो
जिन्दगी में  अकेले रहने  की  |

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर अंक
    शुभकानाएं...
    सादर..

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी।

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  3. इस मंच का आभारी हूँ । इन बेहतरीन प्रस्तुति के मध्य मेरी रचना भी उपलब्ध है, शुक्रिया ।

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  4. उम्दा लिंक्स|मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी |

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  5. उम्दा प्रस्तुति।
    शानदार लिंक चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. Yashoda ji
    आप सयोंजन का कार्य बहुत निष्ठा से करती हैं। .. हर लिंक बहुत अच्छी रचना तक ले जाता है। .. हमेशा उत्साह बढ़ाती हैं आप
    आभार

    बहुत शानदार प्रस्तुति दी है आपने सभी लिंक बहुत ही आकर्षक , सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

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