परसों देवी जी कैमरे के सामने थी
हिदायतें मिली
परसों ही सारी जांचे हुई
इन सभी परिणामों के साथ
आज सुबह से फिर कैमरे का सामना हुआ
पर आज अकेली नहीं थी वे
एक डॉक्टर और परिचारिका भी थी
मजबूती की जांच सम्पन्न हुई
कल से वे फिर आएँगी..
आज हमें सहन कर लीजिए...
हिदायतें मिली
परसों ही सारी जांचे हुई
इन सभी परिणामों के साथ
आज सुबह से फिर कैमरे का सामना हुआ
पर आज अकेली नहीं थी वे
एक डॉक्टर और परिचारिका भी थी
मजबूती की जांच सम्पन्न हुई
कल से वे फिर आएँगी..
आज हमें सहन कर लीजिए...
मैंने मृत्यु को बहुत करीब से
छूकर देखा है, मृत्यु के ख्याल को
मुठ्ठी में कसकर रखा है
बरसों तक, फिर उस डर से
आज़ाद हुई, बहुत तकलीफ सही
लेकिन आज़ाद हो गयी.
अब ख़ुशी है
जो हर वक्त
साथ रहती है, कुछ खोने का
डर जाता रहा.
गौरैया तुम सलामत रहो,
दाना चुगने नित आती रहो,
बड़े शहरों के छोटे घरों में
फुदकने चहकने के लिए ।
क्योंकि तुम हो शुभ शगुन
जीवन का सहृदय स्पंदन ।
इलाइची
जहां कायनात अपने अछूते रूप के साथ विराजमान है
इलायची, लौंग, दालचीनी, जावित्री, जायफल इत्यादि को पहली बार अपने उद्गम स्थलों पर विभिन्न रूपों में देख आश्चर्य से सबकी आँखें और मुंह कुछ देर के लिए तो मानो खुले के खुले रह गए। उत्पादन केंद्र की दूकान पर मंहगी होने के बावजूद मसालों की खूब खरीदारी हुई...!
खिली खिली साबुदाने की खिचड़ी बनाने के लिए सबसे पहले हमें साबूदाना सहीं तरीके से भिगोना होगा। यदि साबूदाना सही तरीके से नहीं भीगा तो खिचड़ी भी अच्छी नहीं बनेगी। सामग्री गिनने के लिए एक कप सेट कर लीजिए। उसी कप से सभी सामग्री गिन कर लीजिए।
अद्भुत है, कोरोना!
शायद, जरूरी है, इक डर का होना!
कर-बद्ध,
जुड़े रब से हम,
मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर है सूना,
है ये स्वार्थ,
या प्रबल है आस्था!
कहो ना!
काल की तरनि बहती जाती
तकता तट पर कोई प्यासा,
सावन झरता झर-झर नभ से
मरुथल फिर भी रहे उदासा !
झुक कर अंजुलि भर अमृत का भोग लगाना होगा
वक्त चुराना होगा !
....
अब बस
कल की कल देखेंगे
सादर
....
अब बस
कल की कल देखेंगे
सादर
बहुत सुंदर संकलन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संकलन। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।
ReplyDeleteशुक्रिया, इस सुन्दर संकलन का हिस्सा बनाने के लिए. सभी रचनाकारों को बधाई !
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