सीमा सिघल 'सदा'
विरला ही होगा
जो अपरिचित हो
इस नाम से....
सादर नमन उनको..
हमारे आग्रह पर उन्होनें प्रेषित की है
जो अपरिचित हो
इस नाम से....
सादर नमन उनको..
हमारे आग्रह पर उन्होनें प्रेषित की है
ये पाँच रचनाएँ...
दीदी के ही ब्लॉग से..
एक बार और आएँगी दीदी
अपनी पसंदीदा रचनाएँ लेकर
पर वे रचनाएँ उनके ब्लॉग की न होकर
अन्य ब्लॉग से होंगी..
दीदी के ही ब्लॉग से..
एक बार और आएँगी दीदी
अपनी पसंदीदा रचनाएँ लेकर
पर वे रचनाएँ उनके ब्लॉग की न होकर
अन्य ब्लॉग से होंगी..
तेरी बातों के गोलगप्पे
आज भी
मेरी ज़बान का ज़ायका
बदल देते हैं
खिलखिलाते लम्हों के बीच
वो मुस्कराती चटनी इमली की
मेरे पास सपने थे
तुमने उम्मीद बँधाई
मेरे पास हौसला था
तुमने पंख लगाये
मेरे पास
कुछ कर गुज़रने की
च़ाहत थी
तुमने मुझे
बुलंदी पे पहुँचाया !
आज मेरे पास कुछ लम्हे हैं
जिन्हें सौंपना चाहती हूँ
तुम्हें साधिकार
भविष्य के लिए मानो तो
जब कभी मुझे
जरूरत होगी उन कीमती लम्हों की
तुम उन्हें मुझे दुगना कर दे सको
तब्दीलियों की
बड़ी भूख हैं जिंदगी में
हैरान हूँ इसकी खुराक
हर रोज़ बढ़ जाती है
हज़म करना मुश्किल है
फिर भी कितना कुछ
पचाना पड़ता है
कई दफ़ा घूँट-घूँट
बहते आँसुओं के साथ !
बेटी .....
बेटी बाबुल के दिल का टुकड़ा भैया की मुस्कान होती है,
आँगन की चिड़िया माँ की परछाईं घर की शान होती है !
..
खुशियों के पँख लगे होते हैं उसको घर के हर कोने में
रखती है अपनी निशानियां जो उसकी पहचान होती हैं !
आदरणीय दीदी आभार
उन्होंने हमारा मान रखा
सादर
यशोदा
बेटी .....
बेटी बाबुल के दिल का टुकड़ा भैया की मुस्कान होती है,
आँगन की चिड़िया माँ की परछाईं घर की शान होती है !
..
खुशियों के पँख लगे होते हैं उसको घर के हर कोने में
रखती है अपनी निशानियां जो उसकी पहचान होती हैं !
आदरणीय दीदी आभार
उन्होंने हमारा मान रखा
सादर
यशोदा
ReplyDeleteदीदी की रचनाओं के शब्द सरल होने के बावजूद भी अत्यंत प्रभावशाली होते हैं। एक श्रेष्ठ कवि की यही विशेषता होती है, प्रणाम।
*****
आज दया-आर सागर की जयंती है। जिनकी
मृत्यु के बाद रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा, “लोग आश्चर्य करते हैं कि ईश्वर ने चालीस लाख बंगालियों में कैसे एक मनुष्य को पैदा किया!”
एक सर्वेक्षण में उन्हें सर्वश्रेष्ठ बंगाली बताया जा चुका है। एक ही मनुष्य में एक साथ अनेक गुण का विद्यमान होना , निश्चित ही उसे ईश्वर का प्रतिनिधि बना देता है। ऐसे महापुरुष को भला कौन नमन करना नहीं चाहेगा। उन्होंने किन परिस्थितियों में समाज सुधार के कार्य किये , इसे नयी पीढ़ी को निश्चित ही बताया जाना चाहिए।
ईश्वर चंद्र जी विद्या के सागर थें , बचपन में हम इसे भला कितना समझ पाते । हाँ, पाठ्य पुस्तक का वह अध्याय याद है , जिसमें एक जेंटलमैन ( युवक ) अटैची लेकर कुली कुली पुकार रहा था और ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी उसकी अटैची उठा गणतव्य तक पहुंचाते हैं। बाद में जब युवक ने उन्हें पहचाना और शर्मिंदगी महसूस की , तो उन्होंने उसे नैतिक शिक्षा का वह पाठ पढ़ाया था, जिसे हमारा सभ्य समाज भूलता जा रहा है। सच तो यह है कि जब हम अपनी जिम्मेदारी ही नहीं संभाल पाएंगे , तो फिर राष्ट्र का बोझ कैसे उठाएंगे।
******
मुझे कोलकाता का वह दृश्य आज भी नहीं भुला हूँ , जब महानगर की गलियों में जाने के लिए मां- बाबा हाथ रिक्शा पर बैठते थें। मुझे भी बैठने को जब कहते थे। लेकिन ,मेरा ध्यान रिक्शा चालक पर रहता था। वह किस तरह से चढ़ाई पर हाथ के साथ ही पेट और सीने के सहारे रिक्शा खींचता था । भावुक स्वभाव का होने के कारण जब कभी मैं जिद करने लगता था कि ऐसे रिक्शे पर नहीं बैठूंगा , तो एक बार बूढ़े से रिक्शेवाले ने कहा था कि छोटे बाबू यदि तुम नहीं बैठोगे, तब हम लोगों का क्या होगा।
एक दिन जब मैं माँ के साथ बारजे पर बैठा था, तभी देखा कि एक रिक्शे का रबड़ लगा लकड़ी का एक पहिया टूट गया और उस पर बैठा मोटूमल धड़ाम से सड़क पर जा गिरा। यह देख कर मैंने जोर से ताली बचा कहा बढ़िया हुआ और बैठ। परंतु माँ ने डांट पिलाई कि अब उस गरीब रिक्शेवाले का क्या होगा , तू यह नहीं सोचता..।
काश ! ऐसा कोई समाज सुधारक भी होता उन दिनों, जो हाथ रिक्शा चालकों की लाचारी, बेबसी और गरीबी को समझ और इस हाथ रिक्शा के प्रचलन को बंद करवा पाता।
बेहतरीन
ReplyDeleteलाजवाब संकलन। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर
ReplyDeleteएक ।
"दोस्त एक हो पर सच्चा हो"
ReplyDeleteआपकी रचना के सारे सुन्दर, अप्रतिम बिम्बों से परे यथार्थ को दर्शाती, अहसास कराती पंक्ति ... आभार आपका महोदया ... आज छदम् भीड़ की चाह रखने वाले लोगों के बीच ये संदेश दुहराने के लिए ...
सुंदर सूत्र संयोजन सदा जी के ब्लॉग से। आज वे किसी परिचय की मोहताज नहीं। उनके लेखन भावों से भरा है। आज की सभी रचनाएँ हृदयस्पर्शी हैं। सदा जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें । 🙏🙏💐🌷💐🌷💐
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संकलन।सभी रचनाएँ बेहतरीन और सराहनीय।सीमाजी आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteस्नेहिल प्रतिक्रियाओं के लिये आप सभी का 💕 वंदन अभिनन्दन ....
ReplyDeleteयशोदा जी आपका बहुत बहुत आभार
लाजबाब , सभी रचनाएँ हृदय स्पर्शी हैं और सही कहा आपने " दोस्त एक ही हो पर सच्चा हो "
ReplyDeleteसदा जी, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
लाज़वाब संकलन, सभी रचनायें बेहतरीन एवं दिल को छू जाती हैं!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना संकलन
ReplyDelete