स्नेहाभिवादन !
'सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में सभी रचनाकारों और पाठकों का हार्दिक स्वागत !
सुरमई सांझ के अभिनन्दन के साथ आपके अवलोनार्थ पेश हैं कुछ चयनित सूत्र ---
गूंज उठी थी ह्यूस्टन, थी अद्भुत सी गर्जन!
चुप-चुप सा, हतप्रभ था नेपथ्य!
क्षितिज के उस पार, विश्व के मंच पर,
देश ने भरी थी, इक हुंकार?
सुनी थी मैंने, संस्कृति की धड़कनें,
जाना था मैंने, फड़कती है देश की भुजाएं,
गूँजी थी, हमारी इक गूंज से दिशाएँ,
एक व्यग्रता, ले रही थी सांसें!
गहरा सा जो वास्ता था कोई
सच था , या वो धोखा था कोई
गहरी सी जिसकी गिरहैं हैं सारी
मीठी सी मिसरी हैं यादें सारी
खुद में समेट लिया है मैंने उनको
कोकून सा बांध लिया है खुदको
पकेगा इक दिन समय भी मेरा
बदल जाएगा ये रूप मेरा
दाल में बचा रहे रत्ती भर नमक
इश्क़ में बची रहें शिकायतें
आँखों में बची रहे नमी
बचपन में बची रहें शरारतें
धरती पर बची रहें फसलें
नदियों में बचा रहे पानी
मेरे सुर में तुम्हारा सुर मिले तो बात बने,
मैं बनूं सुर और ताल तुम बनो तो बात बने।
मैं बनूं गीत ,बोल तुम बनो तो बात बने,
मैं बनूं कविता ,रस तुम बनो तो बात बने।
मैं बनूं शब्द तुम अर्थ बनो तो बात बने।
मैं बनूं छंद तुम तुक बनो तो बात बने।
तुम जानती हो,
पूँजीवाद का बीजारोपण,
राष्ट्रहित में है ?
ज्ञानीजनों की यही ललकार है,
धनकुबेर जताते हैं,
अपने आप को बरगद,
उसकी छाँव में,
पनपता है,
शोषण का चक्र चक्रव्यूह,
और वे जताते है कि वे देते है
कुपोषित पौध को पोषण,
कमजोर-वर्ग-मध्यम-वर्ग को,
★★★★★
इजाजत दें... फिर मिलेंगे..
शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"
बेहतरीन संकलन
ReplyDeleteअच्छी रचनाएँ पढ़वाई आज..
ReplyDeleteसाधुवाद...
सादर...
बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति ... बधाई इस शानदार प्रयास के लिए 💐💐
ReplyDeleteसादर आभार 🙏
Deleteऔर बचा रहे बनारस....!!
ReplyDeleteबनारस का मैं भी हूँ।
एक बात कहना चाहता हूं कि अब काशी का बनारसीपन वैसा नहीं रहा... गंगा घाटों पर सुबह- शाम की वह मौज- मस्ती नहीं रही..हर हर महादेव का गली- गली में और मंदिरों में वैसा उद्घोष अब रहा . .धोती- कुर्ता और गमछा- लुंगी पहने लोगों की वह अलमस्ती की चाल अब न रही..चौखंबा एवं पक्के माहौल में वैष्णव भक्तों का वह उल्लास अब ना रहा.. हमारे घर के समीप वह अखाड़ा, वह कुआं और वे पहलवान भी अब ना रहे.. भांग बूटी और ठंडाई का वैसा दरबार अब न रहा..।
सादर...
प्रस्तुति बहुत सुंदर रही। अपने घर, छात्र जीवन, माँ गंगा की लहरों में सुबह- शाम की अठखेलियाँ और बनारस की याद आ गयी।
हर पर्व पर वाह ! बनारस बना रहो.. बस यह दुआ निकलती है।
शुभ संध्या दी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति 👌
मुझे स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आप का
सादर
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति के बधाई मीनाजी.
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
शानदार प्रस्तुति सखी,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई।
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं का संगम ।
सुन्दर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर सूत्र पिरोये है आपने दी.. सराहनीय प्रस्तुति। सभी रचनाएँ उत्कृष्ट है।
ReplyDeleteआभारी हूँ । इस मंच पर मैं भी सहभागी बन सका। धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति मीना जी
ReplyDeleteमीना जी बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति ... बधाई इस शानदार प्रयास के लिए. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसुन्दर संकलन के लिए म्हणत की हे उसके लिए बधाई बहुत बहुत आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए और हमेशा की तरह उत्साह बढ़ाने के लिए सच। ...बहुत हौंसला मिलता है आपके शब्दों से धन्यवाद