सादर अभिवादन..
जय श्री गणेश..
सबका सदा कल्याण करें
सभी को सम भाव से
ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करें..
गत् वर्ष की गलतियों के लिए आज
समस्त संसार से क्षमा याचना भी करते हैं..
आज की रचनाएँ देखें....
आरम्भिक प्यार का आकर्षण ...शैल सिंह
मेरे खोये-खोये मन का सबब हो तुम
बसा नैनों में स्वप्न किये गजब हो तुम
लब की खामोशियों से घुटन तो न दो
करो प्यार प्रकट क्यूं नि:शबद हो तुम ।
फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...दिगंबर नासवा
अक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगा
बीज नई आशा के मन में बोयेगा
खींच लिए जायेंगे जब अवसर साधन
सपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगी
पल दो पल फिर ...
ख्वाब ....पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
अनदेखे ख्वाब कैसे, दिखाए हैं ख्वाल ने!
है वो चेहरा या है शबनम!
हुए बेख्याल, बस यही सोचकर हम!
हाँ, वो कोई रंग बेमिसाल है!
यूं ही हमने रंग डाले,
हाँ, जिन्दगी सवाल में! या नूर है,
हर घड़ी .....लोकेश नदीश
मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
आँगन तेरी आँखों का न हो जाये कहीं तर
डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से
वक़्त के तेज गुजरते लम्हों में ...संजय भास्कर
अक्सर जीवन कभी
इतनी तेज़ गति से
गुज़रता है
तब वह कुछ अहसास करने का
और समझने का
समय नहीं
देता पर जब कभी-कभी
जीवन इस कदर
ठहर जाता है
आज ताजा क्या है ...
बकवास
करने में
कौन सा
किसी को
व्याकरण
साथ में
समझाना
होता है
कौमा
हलन्त चार विराम
अशुद्धि
चंद्र बिंदू
सीख लेना
बोनस
बनाना होता है
.....
आज अब बस..
दिग्विजय..
आज की रचनाएँ देखें....
आरम्भिक प्यार का आकर्षण ...शैल सिंह
मेरे खोये-खोये मन का सबब हो तुम
बसा नैनों में स्वप्न किये गजब हो तुम
लब की खामोशियों से घुटन तो न दो
करो प्यार प्रकट क्यूं नि:शबद हो तुम ।
फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...दिगंबर नासवा
अक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगा
बीज नई आशा के मन में बोयेगा
खींच लिए जायेंगे जब अवसर साधन
सपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगी
पल दो पल फिर ...
ख्वाब ....पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
अनदेखे ख्वाब कैसे, दिखाए हैं ख्वाल ने!
है वो चेहरा या है शबनम!
हुए बेख्याल, बस यही सोचकर हम!
हाँ, वो कोई रंग बेमिसाल है!
यूं ही हमने रंग डाले,
हाँ, जिन्दगी सवाल में! या नूर है,
हर घड़ी .....लोकेश नदीश
मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
आँगन तेरी आँखों का न हो जाये कहीं तर
डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से
वक़्त के तेज गुजरते लम्हों में ...संजय भास्कर
अक्सर जीवन कभी
इतनी तेज़ गति से
गुज़रता है
तब वह कुछ अहसास करने का
और समझने का
समय नहीं
देता पर जब कभी-कभी
जीवन इस कदर
ठहर जाता है
आज ताजा क्या है ...
बकवास
करने में
कौन सा
किसी को
व्याकरण
साथ में
समझाना
होता है
कौमा
हलन्त चार विराम
अशुद्धि
चंद्र बिंदू
सीख लेना
बोनस
बनाना होता है
.....
आज अब बस..
दिग्विजय..
शुभ संध्या...
ReplyDeleteमिच्छामि दुक्कडम...
सादर...
बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteमुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
ReplyDeleteफ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
जो पुरुष अथवा स्त्री विधुर या फिर विधवा हैं यह हरितालिका पर्व उनको आज एक असहनीय वेदना दे ही जाती है, हर वर्ष।
क्योंं कि भीड़ भरे बाजारों में वे किसी अपने को ढ़ूंढते रह जाते हैं।
परंतु अशुभ समझ आज भी उनका तिरस्कार और उपहास होता ही है और फिर किसी एकांत में पड़े ये यूँ ही अपने ज़ख्मों को टटोलते रहते हैं।
सुंदर प्रस्तुति है सर जी।
प्रणाम।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर अंक। आभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteलाजवाब सांध्य मुखरित मौन...शानदार लिंकों से सजा.....।
ReplyDeleteलाजवाब सांध्य दैनिक सुंदर अंक संयोजन।
ReplyDeleteबहुत अच्छी सांध्य दैनिक प्रस्तुति
ReplyDeleteमौन वाकई मुखरित है ...
ReplyDeleteआभार मेरे गीत को जगह देने के लिए ...
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeletethanks gym motivaional quotes
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