स्नेहिल अभिवादन
अझेल नहीं न हैं हम
कहीं तो पाप अधिक हुआ है
तभी तो शेषनाग नें
अझेल नहीं न हैं हम
कहीं तो पाप अधिक हुआ है
तभी तो शेषनाग नें
मस्तक अपना हिलाया
धरती फट गई कहीं
समा गई इमारतें
नहीं समाया तो गुरूर
पापियों का..
अब बस आगे नहीं लिख सकती
आइए रचनाएँ देखें...
धरती फट गई कहीं
समा गई इमारतें
नहीं समाया तो गुरूर
पापियों का..
अब बस आगे नहीं लिख सकती
आइए रचनाएँ देखें...
सोचती हू्ँ...
अच्छा हो कि
मैं अपनी स्नेहसिक्त
अनछुई कल्पनाओं को
जीती रहूँ
अपनी पलकों के भीतर
ध्यानस्थ,चढ़ाती रहूँ अर्ध्य
मौन समाधिस्थ
आजीवन।
तुम तेज़ हो
तुम ओज हो
तुम रोशनी मशाल की
देखकर तुम्हें, ज़िन्दगी
जी उठी शमशान की
स्वप्न एक कच्ची उमर का
पलट के आज फिर आ गई २५ सितम्बर ... वैस तो तू आस-पास ही होती है पर फिर भी आज के दिन तू विशेष आती है ... माँ जो है मेरी ... पिछले सात सालों में, मैं जरूर कुछ बूढा हुआ पर तू वैसे ही है जैसी छोड़ के गई थी ... कुछ लिखना तो बस बहाना है मिल बैठ के तेरी बातें करने का ... तेरी बातों को याद करने का ...
चपरासी के दस पदों के लिए लगभग सात सौ आवेदकों का इंटरव्यू चल रहा था. कई एम्. .ए ,बी. ए. एम्.कॉम. एम् एस-सी. इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक डिग्री, डिप्लोमा धारक भी कतार में लगे हुए थे ,लेकिन उन्होंने अपनी उच्च शैक्षणिक योग्यता को छुपाकर न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता (कक्षा पांचवीं )के आधार पर आवेदन किया था और उस आधार पर इंटरव्यू में बुला लिए गए थे . चयन समिति के हम चार सदस्य जब प्रत्येक आवेदक की बोल चाल और उनके पहनावे के आधार पर जैसे-जैसे उनकी शिक्षा के बारे में पूछताछ करते थे ,यह खुलासा होता जाता था .
पुकार अब
हृदय तक नहीं जाती
नहीं जलती कोई आग
नहीं उठती कोई लहर
पुकार में नहीं दम या
हृदय में भाव हुए कम
या हो गए हम निष्प्राण
अब बस
आप लोग पढ़ने नहीं आते हैं
जाइए कल हम नहीं आएँगे
सादर
यशोदा
आप लोग पढ़ने नहीं आते हैं
जाइए कल हम नहीं आएँगे
सादर
यशोदा
बहुत सुंदर रचनाओं से सजी सांध्य प्रस्तुति दी।
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभारी हूँ।
दी कोई प्रतिक्रिया करे न करे पढ़ते सभी है इसलिए जरूर आइयेगा।
धरती फट गई कहीं
ReplyDeleteसमा गई इमारतें
नहीं समाया तो गुरूर
पापियों का..
मानव की प्रवृत्ति विचित्र है। मनुष्य को भली-भांति पता है कि महल हो या मिट्टी , दोनों को ही एक दिन पैरों के नीचे रौंदा जाता है। आज जो सारे सुख है, कल वही दुख भी हो सकता है। जीवन और जगत बड़ा अद्भुत है। आदमी न जाने किस डोर से बंधा है , फिर भी वह अभिमान के वशीभूत है...।
प्रस्तुति का प्रारंभ और क्षणिकाओं के साथ उसका समापन बहुत ही सुंदर रहा।
सादर
बेहतरीन रचनाएँ..
ReplyDeleteसादर..
सुन्दर संकलन।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार।
ReplyDeleteशुभ संध्या छोटी बहना
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर
सुंदर रचनाओं से सजी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसभी रचनाएँ लाजवाब ...
ReplyDeleteआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
सभी सार्थक रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
सभी रचनाकारों को बधाई।