सादर अभिवादन...
कल हिन्दी दिवस था..
किसी ने पूछा कल..
कि हिन्दी को अंग्रेजी में क्या कहते हैं..
मैं ?वाचक की तरह देखा..
उसने स्वयमेंव कहा..
जैसे अंग्रेजी को अंग्रेजी में इंग्लिश कहते हैं..
अभी तक क्या लिखा गया है...एक नज़र..
भय ...अर्चना तिवारी
वृक्ष हो या कोई व्यक्ति
केवल स्थापित हो जाना भर ही संपूर्ण नहीं है
आवश्यकता होती है समय समय पर
जड़ों को पोषित होने की और नीरोगी होने की
वरना तो खोखलापन भी विस्थापित होने जैसा ही है....
"साहित्य का बढ़ता चीर" ... विभारानी श्रीवास्तव
छोटी कलम को आज से चार साल पहले एक संस्था की
जानकारी नहीं थी... हालांकि इक्कीस साल से उसी
शहर की निवासी थी। आज पच्चीस साल हो जाने पर
गली-गली में बस रहे छोटे-बड़े-बहुत बड़े कई संस्थानों
को जानने की कोशिश में थी कि शोर से उलझन में हो गई...
अपनी लगती है हिंदी.... नूपुर शाण्डिल्य
हिंदी
भाषा नहीं
नदी है,
जो अविरल
बहती है,
गंगा यमुना
कावेरी गोदावरी
चेनाब रावी
ब्रह्मपुत्र की तरह
जिंदगी गुलज़ार है... मुकेश गिरि गोस्वामी
जिंदगी गुलज़ार है मुझको तुमसे प्यार है
जिंदगी गुलज़ार है तु ही एक मेरा यार है
जिंदगी गुलज़ार है तेरी बेरुखी मेरे ऊपर वार है
जिंदगी गुलज़ार है तुझपे दिल ज़ार-ज़ार है
कूड़ा ....ओंकार
जब सब कुछ जल जाएगा,
ज़मीन समतल हो जाएगी,
तो नए तरीक़े से नया निर्माण होगा,
जिसमें न कूड़े के लिए जगह होगी,
न कूड़ा फैलानेवालों के लिए.
ऊँचाई एक भ्रम है.. प्रतिभा कटियार
जब मैं छोटी थी तब बहुत तेज़-तेज़ चढ़ा करती थी सीढ़ियाँ. एक सांस में झट से ऊपर जा पहुँचती थी, दूसरी ही सांस में सरर्र से नीचे. सीढियां उतरते हुए नहीं लगभग फिसलते हुए. खेल था ऊपर चढ़ना और नीचे उतरना. इस चढने और उतरने के दौरान बीच का हिस्सा कब गुजर जाता पता ही नहीं चलता. मुझे हमेशा पहली सीढ़ी और आखिरी सीढ़ी की अनुभति ही गुगुदाती थी. माँ की आवाज आती और मैं सर्रर्र से नीचे, पतंगों का खेल देखना हो सर्रर्र से ऊपर.
आज बस
दिग्विजय
कल हिन्दी दिवस था..
किसी ने पूछा कल..
कि हिन्दी को अंग्रेजी में क्या कहते हैं..
मैं ?वाचक की तरह देखा..
उसने स्वयमेंव कहा..
जैसे अंग्रेजी को अंग्रेजी में इंग्लिश कहते हैं..
अभी तक क्या लिखा गया है...एक नज़र..
भय ...अर्चना तिवारी
वृक्ष हो या कोई व्यक्ति
केवल स्थापित हो जाना भर ही संपूर्ण नहीं है
आवश्यकता होती है समय समय पर
जड़ों को पोषित होने की और नीरोगी होने की
वरना तो खोखलापन भी विस्थापित होने जैसा ही है....
"साहित्य का बढ़ता चीर" ... विभारानी श्रीवास्तव
छोटी कलम को आज से चार साल पहले एक संस्था की
जानकारी नहीं थी... हालांकि इक्कीस साल से उसी
शहर की निवासी थी। आज पच्चीस साल हो जाने पर
गली-गली में बस रहे छोटे-बड़े-बहुत बड़े कई संस्थानों
को जानने की कोशिश में थी कि शोर से उलझन में हो गई...
अपनी लगती है हिंदी.... नूपुर शाण्डिल्य
हिंदी
भाषा नहीं
नदी है,
जो अविरल
बहती है,
गंगा यमुना
कावेरी गोदावरी
चेनाब रावी
ब्रह्मपुत्र की तरह
जिंदगी गुलज़ार है... मुकेश गिरि गोस्वामी
जिंदगी गुलज़ार है मुझको तुमसे प्यार है
जिंदगी गुलज़ार है तु ही एक मेरा यार है
जिंदगी गुलज़ार है तेरी बेरुखी मेरे ऊपर वार है
जिंदगी गुलज़ार है तुझपे दिल ज़ार-ज़ार है
कूड़ा ....ओंकार
जब सब कुछ जल जाएगा,
ज़मीन समतल हो जाएगी,
तो नए तरीक़े से नया निर्माण होगा,
जिसमें न कूड़े के लिए जगह होगी,
न कूड़ा फैलानेवालों के लिए.
ऊँचाई एक भ्रम है.. प्रतिभा कटियार
जब मैं छोटी थी तब बहुत तेज़-तेज़ चढ़ा करती थी सीढ़ियाँ. एक सांस में झट से ऊपर जा पहुँचती थी, दूसरी ही सांस में सरर्र से नीचे. सीढियां उतरते हुए नहीं लगभग फिसलते हुए. खेल था ऊपर चढ़ना और नीचे उतरना. इस चढने और उतरने के दौरान बीच का हिस्सा कब गुजर जाता पता ही नहीं चलता. मुझे हमेशा पहली सीढ़ी और आखिरी सीढ़ी की अनुभति ही गुगुदाती थी. माँ की आवाज आती और मैं सर्रर्र से नीचे, पतंगों का खेल देखना हो सर्रर्र से ऊपर.
आज बस
दिग्विजय
वाह ! भाई साहब ,
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति भी किसी से कम कहाँ है।
अतः साहित्य सेव में लगे इस दम्पति को मेरा सादर प्रणाम।
वाह लाजवाब अंक।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
कल हिन्दी दिवस था..
ReplyDeleteकिसी ने पूछा कल..
कि हिन्दी को अंग्रेजी में क्या कहते हैं..
मैं ?वाचक की तरह देखा..
उसने स्वयमेंव कहा..
जैसे अंग्रेजी को अंग्रेजी में इंग्लिश कहते हैं..
आदरणीय दिग्विजय जी, यह ठीक नहीं है ।
इतना हँसाया आपने कि आंसू आ गए ।
फिर एक टीस सी उठी तो मन भ्रमित हो गया ।
हँसना था, या रोना था ?
फिर याद आ गया ।
भाषा ना किसी के बिगाड़ने से बिगड़ती ।
ना फलती-फूलती ।
हिंदी जो आज है ...घाट घाट का पानी पी का बनी है । किसी का लिखा याद आ गया ।
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है ।
दिग्विजय जी, सादर धन्यवाद ।
ReplyDeleteहिन्दी को सभी भाषा में हिन्दी ही कहते हैं
ReplyDeleteवो भाषा चाहे अमेरिकन हो या चाइनीज हो..
बढ़िया..
सादर..
अच्छे सूत्र जोड़े हैं।
ReplyDeleteआज का यथार्थ
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल की.आभार
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