सादर अभिवादन...तकनीकी त्रुटि...या फिर
चाँद ने ही परमीशन नहीं दी
प्रश्न है ...प्रश्न ही रहने दीजिए
प्रश्न तो लोक सभा
और विधान सभा में
पूछे जाते हैं...
चलिए सर खुजाते हुए आज की रचनाओँ की ओर..
मन काला तो क्या ...कुसुम कोठारी
मन काला तो क्या हुवा उजला है परिधान,
ऊपर से सब ठीक रख अंदर काली खान ।
बालों को खूब संवार दे अंदर जूं का ढेर,
ऊपर से रख दोस्ती मन में चाहे बैर ।
विधवा विलाप की तरह ...वन्दना गुप्ता
रावण हो या कंस
स्वनिर्मित भगवान
नहीं चाहते अपनी सत्ता से मोहभंग
और बचाए रहने को खुद का वर्चस्व
जरूरी है
आवाज़ घोंट देना
तुम बुहार न सको ...जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'
तुम बुहार न सको
किसी का पथ कोई बात नहीं,
किसी की राह में
कंटक बिखराना नहीं।
न कर सको किसी की
मदद कोई बात नहीं,
किसी की बनती में
रोड़े अटकाना नहीं।
चींटियाँ ....ओंकार
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता
चींटियों के मर जाने से,
पर चींटियों का जन्म हुआ है,
तो उन्हें जीने का हक़ है,
जीने के लिए लड़ने का हक़ है.
सौ हो जायें किताब एक छपायें
प्रश्न
सूझने जरूरी हैं
बूझने भी
कभी
मन करे
पूछ्ने
निकल कर
खुले मैदान में
आ जायें
..
इन्तजार है
आदेश का
यशोदा
चाँद ने ही परमीशन नहीं दी
प्रश्न है ...प्रश्न ही रहने दीजिए
प्रश्न तो लोक सभा
और विधान सभा में
पूछे जाते हैं...
चलिए सर खुजाते हुए आज की रचनाओँ की ओर..
मन काला तो क्या ...कुसुम कोठारी
मन काला तो क्या हुवा उजला है परिधान,
ऊपर से सब ठीक रख अंदर काली खान ।
बालों को खूब संवार दे अंदर जूं का ढेर,
ऊपर से रख दोस्ती मन में चाहे बैर ।
विधवा विलाप की तरह ...वन्दना गुप्ता
रावण हो या कंस
स्वनिर्मित भगवान
नहीं चाहते अपनी सत्ता से मोहभंग
और बचाए रहने को खुद का वर्चस्व
जरूरी है
आवाज़ घोंट देना
तुम बुहार न सको ...जयन्ती प्रसाद शर्मा 'दादू'
तुम बुहार न सको
किसी का पथ कोई बात नहीं,
किसी की राह में
कंटक बिखराना नहीं।
न कर सको किसी की
मदद कोई बात नहीं,
किसी की बनती में
रोड़े अटकाना नहीं।
चींटियाँ ....ओंकार
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता
चींटियों के मर जाने से,
पर चींटियों का जन्म हुआ है,
तो उन्हें जीने का हक़ है,
जीने के लिए लड़ने का हक़ है.
सौ हो जायें किताब एक छपायें
प्रश्न
सूझने जरूरी हैं
बूझने भी
कभी
मन करे
पूछ्ने
निकल कर
खुले मैदान में
आ जायें
..
इन्तजार है
आदेश का
यशोदा
मन काला तो क्या हुवा उजला है परिधान,
ReplyDeleteऊपर से सब ठीक रख अंदर काली खान ।
बस इतना ही समझ लिया जाए ठीक से, तो फिर ठोकर न खाना पड़े।
सामाजिक, राजनैतिक क्षेत्र में ही शुभचिंतकों में भी नकाबपोशों की परख हमें भावनाओं से ऊपर उठ कर करना चाहिए।
प्रणाम यशोदा दी ।
कुसुम दी की रचना पसंद आयी।
शुभ संध्या, सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुतीकरण
आभार यशोदा जी। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete
ReplyDeletethanks gym motivaional quotes